33 साल पहले भयंकर बाढ़ और कटाव के बाद कोसी ने बदली धार, मृतप्राय हो गईं सारी नहरें, किसान हलकान
कभी कोसी क्षेत्र में धान की फसल लहलहाती थी। लेकिन अब किसानों ने इससे तौबा कर ली है। दरअसल 1987 में आई प्रलयंकारी बाढ़ और भीषण कटाव के कारण कोसी ने अपनी धार बदल ली थी। इससे नहरों तक पानी नहीं पहुंच रहा है।
कटिहार [तौफीक आलम]। 1987 में आई प्रलयंकारी बाढ़ और भीषण कटाव के कारण नहर जल प्रवाह की दिशा में परिवर्तन के बाद जिले के फलका प्रखंड क्षेत्र की सभी नहरें मृतप्राय हो गई है। किसानों को पिछले 33 वर्षों से ङ्क्षसचाई के लिए नहर से पानी नहीं मिल पा रहा है। विधानसभा में मामला उठाए जाने के बाद अगस्त 2018 में नहरों में पानी तो छोड़ा गया। लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण 30 दिन भी नहर में पानी ठहर नहीं पाया। इसका कारण नहर की मरम्मत नहीं कराया जाना बताया गया। मरम्मत नहीं होने के कारण कई स्थानों पर नहर टूटने से आस पास के खेतों में लगी फसल हर साल जलमग्न होने से किसानों को नुकसान उठाना पड़ता हैै।
कभी इस क्षेत्र में गर्मा धान की फसल लहलहाती थी। लेकिन अब किसानों ने गरमा धान की खेती से तौबा कर ली है। दलहन, तिलहन, गेहूं आदि की खेती भी प्रभावित हुई है। ङ्क्षसचाई में खर्च अधिक आने से छोटे किसानों ने अपना खेत बंटाईदारी पर लगा दिया है। चुनाव दर चुनाव बीतने के बाद भी किसानों की ङ्क्षसचाई संबंधी समस्या का समाधान नहीं किया जा सका। सरकारी नलकूप का हाल भी खस्ता है। 1987 में आई बाढ़ से कई स्थानों पर तटबंध टूट गया था। बंरंडी नदी ने भी दो धारा बना ली थी। माइनर नहर मृतप्राय हो गई। क्षतिग्रस्त बांध की मरम्मत को लेकर वर्ष 2011 में कार्य प्रारंभ कराया गया। नहर किनारे अतिक्रमण के कारण भी नहरों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है।
क्या कहते हैं किसान
युवा किसान अमित कुमार, पवन कुमार, मो.जमील, अफरोज आलम, टुनटुन कुमार, बंटू शर्मा, विजय झा, नंदलाल साह, मो ह$कीम, सोनेलाल दास आदि ने कहा कि सरकार हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए प्रयासरत है। इसके परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। लेकिन नहर से ङ्क्षसचाई योजना का लाभ किसानों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। नहरों में पानी नहीं रहने एवं स्टेट ट््यूबवेल की हालत खस्ता रहने के कारण किसान पंङ्क्षपग सेट के सहारे अधिक खर्च पर फसलों की सिंचाई कर रहे हैं।