करेला बनी आदिवासी बस्तियों में कड़वी दारू की दवा

बांका। बिलासी बांध और पहाड़ की तलहटी में जंगल के बीच कई आदिवासी बस्ती है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 22 Sep 2018 09:51 PM (IST) Updated:Sat, 22 Sep 2018 09:51 PM (IST)
करेला बनी आदिवासी बस्तियों में कड़वी दारू की दवा
करेला बनी आदिवासी बस्तियों में कड़वी दारू की दवा

बांका। बिलासी बांध और पहाड़ की तलहटी में जंगल के बीच कई आदिवासी बस्ती है। महादेव स्थान, पिरौटा, दुमकाडीह, ¨सगरपुर, कुर्थीबारी आदि गांव में अधिकांश आबादी जनजाति परिवारों की है। अबतक जनजाति परिवारों का यह गांव अवैध शराब निर्माण के लिए बदनाम रहा। घर-घर चूल्हा पर शराब चुलाई का काम चलता था। शराब बनाना, पीना और इसे चोरी छुपे बेचना इन परिवारों की जीविका का जरिया था। पर शराबबंदी के बाद इन गांवों में नया सवेरा आया है। पहाड़ की तलहटी में इनकी मेहनत देख आप दंग रह जाएंगे। लगभग बेकार पड़ी भूमि अभी सब्जी उत्पादन का हब बन गया है। भागलपुर और सुल्तानगंज तक के सब्जी व्यापारी रोज इन जंगलों में पहुंच सब्जी खरीद रहे हैं। वनवासी की मेहनत उनके खेतों में फल रही सब्जियों से दिख रही है। खास कर करेला उत्पादन ने गांव में नई क्रांति ला दी है। करेला की कड़ुवाहट कड़की दारू की दवा बन गयी है। हर परिवार अपने बीघा आधा बीघा जमीन पर करेला लगा कर अच्छी आमदनी कर रहा है। पहाड़ किनारे करेला खेती के लिए हर खेत में रस्सी का बना स्टैंड मनमोहक नजारा पैदा कर रहा है। खास कर महादेव स्थान का दोनों टोला ने बांका में सब्जी उत्पादन का सारा रिकार्ड तोड़ दिया है।

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तीन साल पहले राजीव ने की शुरुआत :

शराबबंदी के बाद महुआ शराब निर्माण पर पुलिस की पहरेदारी बढ़ गई थी। तब तीन साल पूर्व महादेव स्थान गांव में राजीव कोल ने पहले पहल इसकी शुरुआत की। राजीव की शुरुआत ने तीन साल के दौरान गांव में उद्योग का रुप ले चुका है। रामप्रसाद मरांडी, परमेश्वर मरांडी, कंपा मुर्मू, धनेश्वर मुर्मू, मंझली मुर्मू, संजू कोल सब के जीने का सहारा अब केवल करेला उत्पादन है।

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मजबूरी में करेला ने दिखाया रास्ता:

महादेव स्थान के संजू कोल ने बताया कि पिछले कई साल से गांव में खेती बंद थी। मक्का लगाने पर जंगली सूअर इसे होने नहीं देता था। लोगों ने खेती छोड़ दी। अधिकांश युवा परदेश में कमाते थे। घर रहने वालों का रोजगार महुआ शराब बनाना था। शराब बंद होने के बाद जीविका के लिए करेला उत्पादन सहारा बना। अब हालत यह है कि परदेश रहने वाले कई युवा भी घर लौट कर खेती में जुट गए हैं। करेला को जंगली सूअर भी क्षति नहीं पहुंचाता है।

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बड़े बदलाव का संकेत :

आदिवासी सांस्कृतिक मंच के जिलाध्यक्ष जे हांसदा कहते हैं कि महादेव स्थान उनका भी गांव है। यह खुशी की बात है कि आदिवासी समाज अब शराब से दूर होने का प्रयास कर रहा है। सचमुच करेला उत्पादन ने गांव में नई क्रांति लाई है। कई युवा परदेश में मजदूरी छोड़ गांव लौटे हैं। पिरौटा वन समिति के उपेंद्र यादव बताते हैं कि महादेव स्थान के लोगों की खेती आसपास में चर्चा का विषय है। वनवासी परिवार की इतनी बेहतर सब्जी की खेती पहली कभी नहीं दिखी। दूसरे गांव के लोग भी इस मॉडल को अपना रहे हैं।

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