300 वर्ष पुराना है बंभई कुटी का इतिहास

औरंगाबाद। गोह का बरपा गांव ऐतिहासिक है। इसे बंभई कुटी बरपा के नाम से जाना जाता है। यह

By JagranEdited By: Publish:Sun, 23 Apr 2017 03:07 AM (IST) Updated:Sun, 23 Apr 2017 03:07 AM (IST)
300 वर्ष पुराना है बंभई कुटी का इतिहास
300 वर्ष पुराना है बंभई कुटी का इतिहास

औरंगाबाद। गोह का बरपा गांव ऐतिहासिक है। इसे बंभई कुटी बरपा के नाम से जाना जाता है। यहां बीते नौ मार्च को यज्ञ का आयोजन कर प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस गांव का इतिहास ज्ञात है। यहां ठाकुरबाड़ी अर्थात राम जानकी मंदिर है। बजरंग बली की प्रतिमा स्थापित की गई है। कुछ पुरानी प्रतिमाओं के साथ नई प्रतिमा स्थापित की गई है। पुराने मंदिर के पास ही नया मंदिर बनाया गया। सुर्खियां इस कारण भी मिली कि बिहार के राज्यपाल रामनाथ को¨वद ने कार्यक्रम को संबोधित किया था। रामदर्शी शर्मा एवं मोहन शर्मा ने बताया कि मंदिर का पुराना भवन जर्जर हो गया था। इसलिए नया बनाया गया। देवेश कुमार ने बताया कि करीब 300 साल पहले मुगलकाल में चांद और बिजली नाम के सहोदर भाई यहां रहते थे। राज करते थे ¨कतु जनता पर अत्याचार करते थे। ग्रामीणों ने उनको भगाने के लिए संघर्ष किया। गांव में किवंदती है कि इस संघर्ष में करीब सवा किलो जनेऊ निकला था। संघर्ष तीखा होता गया और अंतत: दोनों भाइयों को समीप के कुआं में कूदकर अपनी जान त्यागनी पड़ी। उसी समय से यहां मंदिर है।

यूं पड़ा बरपा नाम

गोह के विधायक मनोज शर्मा मानते हैं कि यह पूरा इलाका अध्यात्मिक क्षेत्र रहा है। भृगुरारी स्थान ऐतिहासिक और अध्यात्मिक केंद्र है। यहां का मंदिर तो महत्वपूर्ण है ही प्राचीन सामग्री भी मिलते हैं। बंभई कुटी बरपा भी इसी क्षेत्र का आध्यात्मिक प्रतिनिधित्व करता है। मोहन शर्मा, पतिराम शर्मा, कामेश्वर शर्मा, दिलीप शर्मा एवं देवेश कुमार कहते हैं कि भृगु ऋषि जाप करने आए थे। उनकी तपस्या सफल रही और उन्हें आराध्य ईश्वर से वरदान प्राप्त हुआ, जिस कारण गांव का नाम बरपा पड़ा।

chat bot
आपका साथी