पहचान बनानी है तो खतरों से खेलना जरूरी है
यह कहानी है देश की पहली महिला स्काई डाईवर शीतल महाजन की, जिसने बिना किसी पूर्व ट्रेनिंग के नॉर्थ और साउथ पोल दोनों से जंप किया.
भारत, एक ऐसा देश जहां आज भी लड़िकयों के लिए दायरे सीमित हैं, इसलिए उनका खतरों से जुड़े खेलों में जाने के फैसलों पर ऊंगली उठाना लाज़िमी है। यह कहानी है देश की पहली महिला स्काई डाईवर शीतल महाजन की, जिसने बिना किसी पूर्व ट्रेनिंग के नॉर्थ और साउथ पोल दोनों से जंप किया और साथ ही अंटार्कटिका के ऊपर 10,000 फीट की ऊंचाई से फ्री फॉल जंप करने वाली पहली कम उम्र भारतीय महिला का खिताब भी हासिल किया, इतना ही नहीं उनका 19 अप्रैल 2009 में 13,000 फीट की ऊंचाई से जंप करना भी, महिलाओं की श्रेणी में एक रिकॉर्ड बन गया। भारत सरकार ने 2011 में शीतल महाजन को चौथे सर्वोच्च नागरिक अवॉर्ड पद्मश्री से सम्मानित किया।
19 सितम्बर 1982 में महाराष्ट्र के पुणे में जन्मी शीतल जब कक्षा 11वीं सी में पढ़ती थी, तभी से उनके सपने अपनी हमउम्र लड़कियों से जुदा थे। यह वह उम्र होती है जब किशोर अपनी भावी कॉलेज लाइफ को लेकर सपने बुनते हैं। क्या करना है, किस कॉलेज या सब्जेक्ट में जाना है, कैसा लाइफ-स्टाइल कैरी करना है, इससे ऊपर शायद ही कोई सोचता हो, लेकिन ऐसी आम सोच से जुदा शीतल ने स्क्वायड लीडर कमल सिंह ओबर का स्काई डाईविंग वीडियो देखकर अपना लक्ष्य निर्धारित किया। वह वीडियो देखकर उन्होंने दृढ़ संकल्प लिया कि वह भी स्काई डाईवर बनेगी और नॉर्थ पोल से जंप करेगी। सपना देखना आसान है, लेकिन उसे पूरा करना लगभग असंभव और जब सपना देखने वाली एक किशोरवस्था में लड़की हो, तो मुशिकलें और बढ़ जाती है। शीतल के साथ भी यही हुआ, परिवार और रिश्तेदारों को यह बात उनका बचपना लगी, लेकिन अपने पिता के साथ और विश्वास के चलते उन्होंने -37 डिग्री सेल्सियस के टैम्प्रेचर पर 2400 फुट की ऊंचाई से नॉर्थ पोल से स्काई डाईविंग की। इतनी ठंडे और चुनौतिपूर्ण स्थान से जंप करने का निर्णय वहीं ले सकता है, जिसमें खतरा उठाने का जज़्बा हो, जिसके अंदर अपनी पहचान बनाने की आग हो, जो दुनिया के परंपरागत मापदंडों को दरकिनार कर, खुद पर विश्वास करके अपनी अलग इबारत लिखने का दम रखता हो। शीतल महाजन ने जिस पल जान की परवाह न करते हुए नॉर्थ पोल से जंप किया, उसी क्षण निर्णय ले लिया कि वह साउथ पोल से भी जंप करेगी। सैकड़ों चुनौतियों को पार कर और जान हथेली पर रखकर इतनी ऊंचाई से एक बार जंप करने के बाद, आसान नहीं होता दोबारा अपनी जान को खतरे में डालना क्योंकि किस्मत एक बार साथ दे सकती है पर हर बार नहीं, लेकिन जिन्हें खतरों से खेलने का शौक होता है, वह किस्मत के भरोसे नहीं खुद के हौसलों के बल पर अपनी किस्मत खुद लिखते हैं, इसलिए दोबारा चुनौतियों को ललकार कर बिना किसी पूर्व ट्रेनिंग के शीतल महाजन ने दूसरी बार साउथ पोल से भी स्काई डाईविंग करके अपना नाम इतिहास में दर्ज कर दिया क्योंकि खतरों का सामना करके ही मिलती है पहचान।
शीतल महाजन जैसे खतरों से खेलने वाले बुलन्द हौसलों और मजबूत इरादों को माउंटेन ड्यू का सलाम। अगर आप भी ऐसे किसी बहादुर, जाबांज को जानते हैं तो उनकी कहानी हमारे साथ शेयर करें। https://www.facebook.com/mountaindewindia