महिला नि:संतानता: करियर, देर से शादी, आधुनिक जीवनशैली से एग की गुणवत्ता में कमी

अक्सर ऐसा देखा गया है कि नि:संतान जोड़े अधिकतर सोंचते हैं कि टेस्ट ट्यूब बेबी आखिरी विकल्प है, जबकि ऐसा नहीं है।

By Tilak RajEdited By: Publish:Thu, 22 Feb 2018 01:14 PM (IST) Updated:Thu, 22 Feb 2018 02:10 PM (IST)
महिला नि:संतानता: करियर, देर से शादी, आधुनिक जीवनशैली से एग की गुणवत्ता में कमी
महिला नि:संतानता: करियर, देर से शादी, आधुनिक जीवनशैली से एग की गुणवत्ता में कमी

खराब एग से घट रही है प्रजनन क्षमता

करियर की अंधी दौड़, तनाव, डिप्रेशन, मोटापा, डायबिटीज आदि बदली हुई जीवनशैली के चलते महिलाओं के बढ़ती उम्र के साथ अण्डों में खराबी पाई गई है। कई महिलाओं में जेनेटिक व मेटाबॉलिक डिसआर्डर के कारण कम उम्र में भी अंडों की संख्या में कमी व उसकी गुणवत्ता में गिरावट सामने आ रही है, जिससे उनमें गर्भधारण की समस्या बढ़ रही है। शोध कहते हैं कि कुल शादियों के 15 फीसदी जोडों में प्रति वर्ष नि:संतानता की समस्या सामने आ रही है।

टोटके व झाड़-फूंक में समय न गवाएं

कई बार महिलाएं नि:संतानता संबंधी परेशानी के चलते टोने-टोटके व झाड़-फूंक में अपना किमती समय गंवा देती है। ऐसा देखा गया है कि 35 तक पहुंचते-पहुंचते महिलाओं की प्रजनन क्षमता घट जाती है। आज के युग में विज्ञान में काफी विकास हो चुका है, ऐसी महिलाओं को वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर मातृत्व सुख की ओर जल्द से जल्द बढऩा चाहिए।

महिला के अंडे की संख्या सीमित होती है

हर महिला के बचपन में ही यह तय हो जाता है कि उसके कुल अण्डों की संख्या कितनी होगी। हर महीने अण्डाशय में उस कोष से कुछ अण्डे खर्च हो जाते हैं। जैसे-जैसे महिला की उम्र बढ़ती है इन अंडों की मात्रा कम होती जाती है। जिस समय अण्डों की मात्रा शून्य हो जाती है, उस समय महिला का महीना बंद हो जाता है।

उम्र के साथ कम होती है गर्भधारण की संभावना

इंडियन मेडिकल एंड रिसर्च काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं में उम्र के साथ-साथ प्राकृतिक तरीके से गर्भवती होने की संभावना भी कम होती जाती है। 35 से नीचे यह दर 47.6 प्रतिशत होती है, वहीं 35 से 37 साल की उम्र में 38.9 फीसदी, 38 से 40 साल की उम्र में 30.1 और 41 से 42 साल की उम्र में 20.5 फीसदी महिलाएं ही गर्भवती हो पाती हैं।

मां बनने की उम्र में बदलाव

भारतीय समाज में लड़कियों के मां बनने की उम्र में भारी बदलाव हुआ है। पिछली पीढ़ी की लड़कियां 21 से 23 साल की उम्र में मां बन गई थीं, वहीं उनकी बेटियां 25 से 27 की आयु में मां बनी हैं या फिर इससे भी आगे की उम्र में। जिसके कारण महिला नि:संतानता दर में वृद्धि देखी गई है। मां बनने की उम्र में यह बदलाव शिक्षा और नौकरी के कारण आई है।

क्या है एग फ्रीजिंग तकनीक ?

वे महिलाएं जो कॅरियर, देर से शादी के कारण संतान प्राप्ति देर से करना चाहती है। वे महिलाएं आईवीएफ तकनीक अपनाकर अपना अंडा सालों तक सुरक्षित करवा सकती है- इस तकनीक को एग फ्रीजिंग कहा जाता है। इसमें महिला को 10 से 12 हार्मोन के इंजेक्शन लगाए जाते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा अंडों को बढ़ाया जा सके। बड़ी ही सावधानी से अल्ट्रासाउंड के जरिए इन अंडों को महिला के अंडाशय से बाहर निकाला जाता है। भ्रूण वैज्ञानिक इन अंडों की जांच कर उसे फ्रीजिंग प्रक्रिया के लिए तैयार करता है। फ्रीजिंग प्रक्रिया में इन अंडों को लिक्विड नाइट्रोजन में (-) १९६ डिग्री सेंटीग्रेड पर स्टोर किया जाता है, जिससे यह सालों तक वैसे ही रहते हैं। जिस समय महीला अपने अपने अंडों से संतान प्राप्ति करना चाहती है उस समय इन अंडों को बड़ी सावधानी से थोइंग प्रक्रिया के द्वारा वापस 3७ डिग्री सेंटीग्रेड पर लाया जाता है। सामान्य आईवीएफ प्रक्रिया द्वारा अंडे व शुक्राणु का निषेचन कर भ्रूण बनाया जाता है और 3-5 दिन बाद यह भू्रण महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।

महत्वपूर्ण जानकारी

डॉ. निताशा गुप्ता - नि:संतानता विशेषज्ञ, दिल्ली

दो बच्चे होने के बाद भी महिला अपने भ्रूण फ्रीज करा कर अपने परिवार बनाए रख सकती है। भविष्य में किसी दुर्घटना व बच्चों के गुजर जाने पर महिला अपने सुरक्षित भ्रूण से पुन: मां बन सकती है।

करियर के चलते मां बनने में देरी करने वाली महिलाएं भी एग फ्रीजिंग तकनीक अपना सकती है। इस तकनीक से सालों तक अंडे सुरक्षित रखे जा सकते हैं तथा महिला की बढ़ती उम्र का इन अंडों की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ता है। इस तकनीक के चलते वे महिलाएं जिनकी उम्र 40 व उससे अधिक है या जिनका महीना बंद हो चुका है, वे भी अपने अंडों से मां बन सकती है।

अगर किसी महिला को कैंसर रोग का पता लग जाए तो कैंसर का उपचार चालू करवाने से पहले उस महिला हो अपने अंडे सुरक्षित (फ्रीज) करा लेने चाहिए। किमोथैरेपी व रेडियेशन के चलते अंडाशय (जहां अंडे बनते हैं) की खराबी होने की संभावना रहती है। ऐसी महिलाएं कैंसर के उपचार के बाद सामान्य होने पर अपने सुरक्षित रखे अंडों से मां बन सकती है।

अंडाशय में एंडोमेट्रीयोसिस, चौकलेट सिस्ट, पीसीओडी, अनियमित महीना से महिलाओं में नि:संतानता हो सकती है।

अंडों के विकार-उपलब्ध उपचार

पीसीओडी-पीसीओएस

इसे पोली सिस्टिक ओवेरी डिजीज या सिंड्रोम भी कहते हैं। इसमें हार्मोन के असंतुलन की वजह से अंडाशय में गांठे (सिस्ट) हो जाती है, जिसकी वजह से महिलाओं में प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है। ऐसी महिलाओं को नि:संतानता का सामना करना पड़ता है। इससे पीडि़त लगभग 40-60 प्रतिशत महिलाओं में वजन बढऩा, शरीर पर बाल आना, महीना अनियमित होना व अंडे बढऩे व फूटने में दिक्कत पाई गई है। मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, 4 से 11 प्रतिशत महिलाएं पीसीओडी से पीडि़त हैं। ऐसी महिलाओं को किसी प्रकार के ऑपरेशन (सिस्ट रिमूवल, पीसीओडी ड्रिलिंग) कराने की जरूरत नहीं है, वे 1 से 2 वर्ष सामान्य तकनीक से संतान प्राप्ति के लिए कोशिश कर सकती है। 1 से 2 वर्ष में गर्भधारण न होने पर वे आईवीएफ जैसी अत्याधुनिक तकनीक भी करवा सकती है जो कि एक सफलत तकनीक के रूप में उभर कर सामने आई है।

प्रीमैच्योर ओवरियन फैलियर

कम उम्र में अचानक मासिक का बंद होना प्रीमैच्योर ओवरियन फैलियर कहलाता है, यह स्वाभाविक मेनोपॉज से अलग है। इसमें महिला का एफ.एस.एच. हार्मोन्स काफी बढ़ जाता है व अंडाशय में खराबी के चलते अंडा नहीं बन पाता है जिसके चलते मासिक धर्म बंद हो जाता है तथा गर्भाशय छोटा हो जाता है। ऐसी महिलाओं को विशेष हार्मोन की दवा देकर उनका महीना पुन: चालू किया जा सकता है, जिससे गर्भाशय का आकार सामान्य हो जाता है। अंडे न बनने के चलते ऐसी महिलाएं बाहरी अंडा (एग डोनर) की मदद से आईवीएफ प्रक्रिया अपनाकर खुद गर्भवती हो सकती है।

महीना बंद होना (मीनोपॉज)

ऐसा देखा गया है कि 35 तक पहुंचते-पहुंचते महिलाओं की प्रजनन क्षमता घट जाती है। 35 से 40 वर्ष की उम्र के दौरान अंडों की मात्रा व गुणवत्ता में कमी के चलते महिला का महीना अनियमित हो सकता है। 40 से 50 वर्ष की उम्र में अंडों के खत्म होने के कारण महिला का महीना बंद हो जाता है जिसे मीनोपॉज कहा जाता है। ऐसी महिलाएं हार्मोन की दवाई लेकर अपना महीना चालू रख सकती है, लेकिन अंडे के न बनने के कारण प्राकृतिक रूप से संतान प्राप्ति नहीं हो पाती है। कई महिलाओं में गर्भाशय का छोटा होना भी पाया गया है। इन महिलाओं को दवा देकर महीना पुन: चालू किया जा सकता है तथा आईवीएफ प्रक्रिया से बाहरी अंडा (एग डोनर) की सहायता से शरीर के बाहर भ्रूण बनाकर उसके गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जा सकता है जिससे वह संतान प्राप्ति कर सके।

ए.एम.एच. हार्मोन

बढ़ती उम्र के साथ अंडे बनने की दर घटती है। सांख्यिकी कहती है कि उम्र के साथ-साथ एक महिला में एएमएच वेल्यू भी कम होती जाती है। महिला में अंडे सीमित मात्रा में होते हैं और उम्र बढऩे के साथ-साथ इनकी मात्रा में कमी हो जाती है। एंटी मुलेरीन हार्मोन (ए.एम.एच.) एक ब्लड टेस्ट है जो कि महीने के किसी भी दिन कराया जा सकता है इससे यह पता चलता है कि महिला के अण्डाशय में अण्डे की मात्रा कितनी है। विदेशों में हुई शोध के अनुसार कम ए.एम.एच. में गर्भधारण की संभावना भी कम पाई गई है, ऐसी महिलाओं को समय न गंवा जल्द से जल्द फर्टिलिटी उपचार कराना चाहिए क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ यह ए.एम.एच. घटती है। सामान्य इलाज में सफलता न मिलने पर ऐसे मरीज आईवीएफ (टेस्ट ट्यूब बेबी) तकनीक अपना सकते हैं। कम ए.एम.एच. में महिला को फर्टिलिटी विशेषज्ञ की सलाह लेकर यह जानना जरूरी है कि उसके गर्भधारण की संभावना कौनसी प्रक्रिया (स्वयं के अंडे या डोनर अंडे) से कितनी रहेगी, जिसके आधार पर अपना निर्णय ले सकती है।

एन्डोमेट्रीओसिस

एंडोमेट्रिओसिस से पीडि़त महिलाओं में एंडोमेट्रिअल टिश्यू गर्भाशय के बाहर फैल जाते हैं। इससे माह में कई बार रक्तस्राव व मासिक धर्म के दौरान होने वाला रक्तस्त्राव भी सामान्य से अधिक हो सकता है तथा इसमें काफी दर्द भी होता है। कई बार दर्द इतना ज्यादा हो जाता है कि ऐसी महिलाओं को दूरबीन के ऑपरेशन की जरूरत पड़ती है व इंजेक्शन द्वारा उनका महीना कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाता है। यह बीमारी समय के साथ बढ़ती है और यह सीधी अंडों की गुणवत्ता को खराब करती है। ऐसी महिलाओं में चौकलेट सिस्ट की शिकायत भी पाई गई है। रिप्रोडेक्टिव एज ग्रुप की 6 से 10 फीसदी महिलाओं को एंडोमेट्रिओसिस प्रभावित करता है। एंडोमेट्रिओसिस में समय गंवाने पर अंडों की गुणवत्ता में कमी के चलते गर्भधारण में समस्या आ सकती है इसलिए सामान्य इलाज से गर्भधारण न होने पर ऐसी महिलाएं जल्द ही टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक अपना सकती है।

कई दम्पति अपने नि:संतानता की बीमारी अपने परिवारजनों से छुपाते हैं तथा शर्म के मारे डॉक्टर के पास सलाह लेने भी नहीं जाते, जिसके चलते वे अपना बहुमूल्य फर्टिलिटी पीरियड गंवा देते हैं। नि:संतानता आज अभिषाप नहीं, यह एक सामान्य बीमारी है जिसका इलाज वैज्ञानिक विधि से संभव है। शादी के एक वर्ष बाद अगर किसी दम्पति को संतान प्राप्ति में कठिनाई आ रही है तो उसे समय न गंवाए जल्द ही किसी अच्छे नि:संतान रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।

- डॉ. अरविंद, स्त्रीरोग विशेषज्ञ, इन्दिरा आई.वी.एफ., दिल्ली

अक्सर ऐसा देखा गया है कि नि:संतान जोड़े अधिकतर सोंचते हैं कि टेस्ट ट्यूब बेबी आखिरी विकल्प है, जबकि ऐसा नहीं है। हमारा मानना है कि अगर कोई जोड़ा 2 साल तक नि:संतानता का सामान्य इलाज करा चुके हैं तथा संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है तो आपको देरी ना करके टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक का विकल्प चुनना चाहिए। नहीं तो हो सकता है, उम्र के साथ आपके अण्डे की गुणवत्ता खराब हो जाए व डोनर एग के अलावा आपके लिए कोई विकल्प न बचे।

- डॉ. सागरिका अग्रवाल, स्त्रीरोग विशेषज्ञ, इन्दिरा आई.वी.एफ., दिल्ली

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