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World Tourism Day 2019: शहरों की सैर करवाती किताबें

World Tourism Day 2019 घुमक्कड़ी का शौक हर किसी के मन में पलता रहता है मगर व्यस्तता अक्सर घर से निकलने नहीं देती। इस विश्व पर्यटन दिवस (27 सितंबर) पर जानें किताबों से देश की सैर..

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 27 Sep 2019 10:02 AM (IST)Updated: Fri, 27 Sep 2019 10:02 AM (IST)
World Tourism Day 2019: शहरों की सैर करवाती किताबें

आर. के. नारायण ने एक किताब लिखी थी 'मालगुडी डेज'। हालांकि मालगुडी लेखक की कल्पना का शहर है लेकिन यह किताब इतनी लोकप्रिय साबित हुई कि आज भी लोग जब दक्षिण भारत जाते हैं, तो किताब में वर्णित इस छोटे शहर या कस्बे को ढूंढने का प्रयास करते हैं। खुद लेखक ने एक बार इसके बारे में कहा था, 'लोग अक्सर पूछते हैं, यह मालगुडी है कहां? जवाब में मैं यही कहता हूं कि इसे दुनिया के किसी भी नक्शे में ढूंढा नहीं जा सकता।' यद्यपि शिकागो विश्वविद्यालय ने एक साहित्यिक एटलस प्रकाशित किया, जिसमें भारत का नक्शा बनाकर उसमें मालगुडी को भी दिखाया गया। इसके उलट इन दिनों लेखक हकीकत में बसे और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण शहरों व मेट्रो शहरों पर लिख रहे हैं, जो पाठकों को भी खूब पसंद आ रहे हैं। 

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राग-विराग दोनों रंग

विश्वनाथ घोष की वाराणसी पर आधारित किताब जल्द ही प्रकाशित होने वाली है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समृद्ध इस शहर पर पहले भी बहुत सारी किताबें लिखी गई हैं और आज भी खूब लिखी जा रही हैं। 'काशी का अस्सी' के उपन्यासकार काशीनाथ सिंह बताते हैं, 'बनारस के हजारों रंग हैं। यहां का बुनियादी रंग राग-विराग दोनों से बना हुआ है।' बनारस के इन्हीं रंगों को लेखक अपनी कहानियों में बार-बार पेश करते हैं। हाल में 'बनारस टॉकीज', 'काशी टेल', 'बनारस वाला इश्क', 'बनारस तेरा पानी अमृत' जैसी कई किताबें लिखी गई हैं, जिनमें या तो किताब के नाम के केंद्र में वाराणसी होता है या फिर पूरी कहानी बनारस की पृष्ठभूमि के इर्द-गिर्द ही रची होती है। 'बनारस टॉकीज' लिखकर युवाओं की पहली पसंद बन चुके सत्य व्यास कहते हैं, 'बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए मैं यह जान पाया कि यहां देश के विभिन्न राज्यों से युवा आते तो हैं, लेकिन जाते बनारसी रंग में ही हैं। ये युवा चाहे विश्व के किसी भी कोने में रह रहे हों, अपने जीवन से बनारस में बिताए वक्त को कभी निकाल नहीं पाते। बनारस का यही प्रभाव किताब के शीर्षक पर भी बना रहा।' सबसे दिलचस्प वाकया तो 'काशी टेल' किताब के साथ जुड़ा है। इसका नाम पहले 'खोया खोया चांद' था लेकिन प्रकाशक ने पाया कि काशी पर आधारित किताबें इन दिनों अधिक बिक रही हैं तो किताब का नाम बदलकर 'काशी टेल' रख दिया। 'काशी टेल' के लेखक ओमप्रकाश यायावर बताते हैं, 'किसी न किसी वजह से काशी हमेशा चर्चा में रहती है इसलिए पाठक भी इस शहर पर आधारित किताबें पढ़ना चाहते हैं।'

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दिल की नगरी दिल्ली

अंग्रेजी के लोकप्रिय कहानीकार खुशवंत सिंह ने दिल्ली में बहुत लंबा समय गुजारा इसलिए शहर के नाम समर्पित किया उपन्यास-'दिल्ली'। पिछले छह सौ साल में दिल्ली बार-बार उजड़ी और बार-बार उसे बसाया गया, इसे ही एक स्त्री पात्र के साथ जोड़कर उन्होंने यह बेहद खूबसूरत किताब लिखी। इसके अलावा, रस्किन बॉन्ड की 'दिल्ली अब दूर नहीं', कथाकार उदय प्रकाश की 'द वॉल्स ऑफ दिल्ली'ं, रजा रूमी की 'दिल्ली बाई हार्ट', मालविका सिंह की 'दिल्ली द फ‌र्स्ट सिटी' आदि किताबें भी भारत की राजधानी दिल्ली के अलग-अलग रूपों की कहानियां कहती हैं। दिल्ली पर उपन्यास 'हम आवाज दिल्लियां' लिखने वाली मीरा कांत जानकारी देती हैं, 'आजादी के लिए आंदोलन की शुरुआत चाहे मेरठ में हुई हो, पर इसका गढ़ तो दिल्ली ही था। इसलिए शीर्षक में दिल्ली का नाम आना जरूरी था।' युवा लेखक सत्य व्यास अपनी दूसरी किताब लाने तक बाजार की मांग को पहचान चुके थे। वे इस बात पर जोर देते हैं, 'दिल्ली दरबार' में कहानी का क्षेत्र दिल्ली था लेकिन तब तक यह बात भी जेहन में आ गई थी कि स्थान की थीम पर अगर किताब का नामकरण करूं, तो यह एक अलग और आकर्षक प्रयोग हो सकता है।'

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खास है नवाबों का शहर 

लखनऊ शहर पर आधारित किताबों की बात चलेगी, तो महान कथाकार प्रेमचंद की कहानी 'शतरंज के खिलाड़ी' की जरूर चर्चा होगी। इस कहानी में प्रेमचंद ने लखनऊ और अवध के नवाब वाजिद अली शाह के वक्त के भोग-विलास में डूबे लखनऊ को चित्रित किया है। लखनऊ पर आधारित किताबें 'लखनऊनामा' और 'शाम ए अवध' पूर्व प्रधानमंत्री और कवि अटल बिहारी वाजपेयी की पसंदीदा थीं। इनके अलावा, लखनऊ के नवाब, यहां की तहजीब, खान-पान, इमारतों, मीनारों पर 'दास्तान-ए-अवध', लखनऊ के रंग पर 'लखनऊ : ए सिटी बिटवीन कल्चर', 'द लाइफ एंड टाइम ऑफ द नवाब ऑफ लखनऊ' आदि कई किताबें हैं। आधुनिक हो चुके लखनऊ और कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखने वाले यहां के युवाओं पर हाल में लिखी गई किताब 'लखनऊ डोमेनियर्स' इन दिनों धूम मचा रही है। इसके लेखक अखिलेश मयंक कहते हैं, 'लखनऊ के जर्रे-जर्रे में एक ऐसा सम्मोहन है, जो यहां आने वाले हर इंसान को अपनी तरफ खींचता है। इस शहर ने मेरे साथ-साथ कई और लोगों को भी जीवनदृष्टि और पहचान दी है। यही वजह है कि मैंने अपना डेब्यू नॉवेल 'लखनऊ डोमेनियर्स' इसी शहर को केंद्र में रखकर लिखा।' निखिल सचान की 'यूपी 65' भी उल्लेखनीय किताब है।

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कोलकाता में अपनेपन का भाव

महान लेखक रवींद्रनाथ टैगोर के शहर कोलकाता पर भी खूब किताबें लिखी गई हैं। डोमिनिक लैपियर की किताब 'सिटी ऑफ जॉय' के अलावा, 'द एपिक सिटी', 'द कलकत्ता क्रोमोजोम', 'वॉकिंग कलकत्ता', 'कोलकाता: ए सोल सिटी' आदि किताबें भी पाठकों की पसंदीदा हैं। कोलकाता शहर पर 'लॉन्गिंग बिलॉन्गिंग' लिखने वाले विश्वनाथ घोष कहते हैं कि ऐतिहासिक और वाणिज्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण यह शहर समय-दर-समय काफी बदला है लेकिन पुरानेपन और अपनेपन का भाव अब तक यहां बरकरार है। इसीलिए इस शहर से मुझे प्यार है और पाठकों को भी।' विश्वनाथ ने चेन्नई पर भी 'टेमरिंड सिटी' लिखी है।

मसूरी के सौंदर्य पर किताबें

अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य को समेटे शहर मसूरी और उसी से सटे देहरादून पर भी काफी किताबें लिखी गई हैं। मसूरी के कण-कण से प्यार करने वाले मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड ने 'रोड्स टू मसूरी', देहरादून पर 'आवर ट्री स्टिल ग्रोज इन देहरा' लिख चुके हैं। रस्किन कहते हैं, 'जब मैं मसूरी रहने आया, तो मुझे यहां की प्रकृति और पहाड़ों से प्यार हो गया। मैं पहाड़ों के बीच ही रहने लगा और उनकी ही कहानियां लिखने लगा। कश्मीर पर भी 'कश्मीर द अनटोल्ड स्टोरी', 'कश्मीरनामा', 'कश्मीर डिस्प्यूट' आदि कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। असम पर आधारित इंदिरा गोस्वामी की किताब 'द शैडो ऑफ कामख्या' भी खूब बिकती है। बेस्टसेलर राइटर नवीन चौधरी मानते हैं, 'शहरों पर किताबें लिखने का एक बहुत बड़ा कारण अतीत के प्रति प्रेम है। हम सब विस्थापित लोग हैं, जो अपने गांव, कस्बे और शहर को छोड़ कर नौकरियों के लिए बड़े शहरों में जा बसे हैं। इसलिए जब लेखन की शुरुआत करते हैं, तो शहर केंद्र में होता है। मैंने इसी वजह से अपनी किताब 'जनता स्टोर' में जयपुर को कहानी का हिस्सा बनाया।


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