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नेचर और वाइल्डलाइफ की खूबसूरत डेस्टिनेशन 'वयनाड', फोटोग्राफी के लिए भी बेस्ट लोकेशन

यात्राडायरी केरल का वयनाड जिला हरे-भरे जंगलों, जीव-जंतुओं और खूबसूरत वादियों से घिरा है।

By Sakhi UserEdited By: Published: Wed, 02 May 2018 04:23 PM (IST)Updated: Mon, 07 May 2018 11:24 AM (IST)
नेचर और वाइल्डलाइफ की खूबसूरत डेस्टिनेशन 'वयनाड', फोटोग्राफी के लिए भी बेस्ट लोकेशन
नेचर और वाइल्डलाइफ की खूबसूरत डेस्टिनेशन 'वयनाड', फोटोग्राफी के लिए भी बेस्ट लोकेशन

केरल का वयनाड जिला हरे-भरे जंगलों, जीव-जंतुओं और खूबसूरत वादियों से घिरा है। पहाड़ों, झीलों और टी गार्डन्स के अलावा इसके आकर्षण में चार चांद लगाते हैं वॉटर फॉल्स। ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह जगह जन्नत से कम नहीं। एक बार यहां जरूर जाएं।

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चेन्नई में 2015 में आई भयंकर बाढ़ के बाद क्षुब्ध मन और क्लांत शरीर को राहत देने के लिए हमने भगवान के देश कहे जाने वाले केरल की ओर रुख किया। यह अजीब विरोधाभास है कि प्रकृति के जिस रौद्र रूप ने मन:स्थिति विचलित कर दी थी, उसे राहत पहुंचाने के लिए भी प्रकृति की शरण में ही जाना था।

कर्नाटक, केरल के बॉर्डर पर स्थित वयनाड की खूबसूरती के बारे में काफी सुना था। सड़क के दोनों ओर फैली हरियाली को आंखें समेट ही रही थीं कि शाम ने अंधेरे की चादर ओढ़ ली। थोड़ी दूर बाद गाड़ी की गति धीमी हो गई, हाथियों का बड़ा सा झुंड सड़क पार कर मस्ती में जा रहा था। ड्राइवर ने बताया कि हम बांदीपुर नेशनल पार्क के बीच की सड़क से गुजर रहे हैं। यहां सभी गाडिय़ों को बिना हॉर्न बजाए और धीरे-धीरे गुजरने की सख्त हिदायत है। रात नौ बजे के बाद सड़क पर आवाजाही पूरी तरह से बंद हो जाती है। सड़क के दोनों तरफ शर्मीले, लजीले हिरणों के कई झुंड कुलांचे मारते दिखे। सरसराते हुए कितने ही सांप गुजर रहे थे। डर और कौतूहल ने यात्रा का रोमांच बढ़ा दिया था। जंगल खत्म हुआ और इंसानी बस्ती दिखी तो हमने पूछा, वयनाड कहां है? भाषा की दुविधा के बीच से जो बात उभरी, उससे पता चला कि वयनाड जिले का नाम है, जिसका हेडक्वार्टर कलपेट्टा है।

गाइड ने जो बताया...

रात गहराने लगी थी, लिहाज हमने कलपेट्टा के एक होटल में ठहरने के बारे में सोचा। वहां डिनर में हमने चेट्टीनाद चिकेन और रोटी ऑर्डर की। पीने के पानी का रंग कुछ लाल और गरम था। पूछने पर वेटर ने बताया कि पानी में स्थानीय जड़ी-बूटी मिली होती है, जो पाचन में सहायक होती है।

अगली सुबह आसपास घूमने के लिए हमने लोकल गाइड को साथ लेने का फैसला किया क्योंकि भाषा समझने में हमें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। मुनीर जो हमारा गाइड था, उसने बड़े जोश के साथ यात्रा की शुरुआत करवाई और वह अच्छी हिंदी बोल रहा था।

चेन वृक्ष

मुनीर ने गाड़ी में बैठते ही रोचक कहानी की शुरुआत की। कई साल पहले आदिवासी युवक करिनथन ने एक गुप्त रास्ते को खोजने में अंग्रेज इंजीनियर की मदद की। अंग्रेज के मन में धूर्तता समा गई और सारा श्रेय लेने की गरज से उसने आदिवासी की हत्या कर दी। उसके बाद जो भी उस गुप्त रास्ते से गुजरता, करिनथन का भूत उन्हें परेशान करता। अंत में पादरी ने पेड़ के चारों तरफ चेन बांध कर करिनथन की आत्मा को काबू में किया। हमारा पहला पड़ाव वही चेन वृक्ष था, जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।

पोक्कोड झील

भारत के नक्शे के आकार की ताजे पानी वाली यह झील पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस झील में नीले कमल और कुमुदिनी देखने को मिलते हैं। आसपास जंगल का विस्तार है, जहां कई जंगली पशु, पक्षी, कीट-पतंग देखने को मिलेंगे। झील, पक्षियों की चहचहाहट और फूलों की खूबसूरती बांध सी लेती है।

मीनमुत्ती वॉटरफॉल

झील के बाद आगे हम मीनमुत्ती वॉटरफॉल की तरफ बढ़े, जो कलपेट्टा से करीब 29 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था। यहां पहुंचने के लिए लगभग दो किलोमीटर का ट्रैक था। मैंने जूते नहीं पहने थे, बहरहाल हाथ में सैंडल उठाए काली पनीली, फिसलन भरी चट्टानों पर संभल-संभल कर रास्ता तय किया। पानी की गर्जन, पर्यटकों की हंसी और चिडिय़ों का कलरव. सब साथ-साथ हो लिए। मीन यानी मछली और मुत्ती मतलब अवरोध... यानी इस झरने ने मछलियों को अपने आगोश में बांध कर रखा हुआ है। $खूबसूरती ऐसी कि पूरे दिन यहां पानी से अठखेलियां करते हुए बिता सकते हैं।

कुरुवां द्वीप

नाम से जिज्ञासा हुई कि कहीं इस द्वीप का कौरवों से कोई संबंध तो नहीं पर ऐसा कुछ नहीं था। यह कबिनी नदी पर बना डेल्टा है, जहां जंगलों से घिरे कई छोटे-छोटे द्वीप हैं। यहां के घने जंगल मानवीय आबादी से रहित कई तरह के जीव-जंतुओं का सुरक्षित घर है। रास्ते भर तरह-तरह के पेड़ और वनस्पतियां एक अलग ही दुनिया से साक्षात्कार कराते हैं। आगे चलने पर नदी की धारा थी, जिन्हें कुछ उत्साही युवक-युवतियों ने तैर कर पार कर लिया था और फोटो खींचने की होड़ चल रही थी। कुछ घंटे बिता कर केरल पर्यटन विभाग की नौका से हम वापस लौट आए क्योंकि पांच बजते ही पूरा इलाका खाली करा लिया जाता है। शाम से यहां जानवरों की हुकूमत शुरू होती है। दोपहर के खाने के लिए हम एक स्थानीय निवासी के घर चले गए, जिन्होंने केले के पत्ते पर कई तरह के पारंपरिक व्यंजन परोस दिए और जायका ऐसा, जो आज भी नहीं भूलता।

बानासुर डैम

राजा बालि के पुत्र, बानासुर के नाम पर इस बांध का नामकरण हुआ, जो देश का सबसे बड़ा अर्थ या धरती बांध है। यह बहुत सुंदर पिकनिक स्थल है, जहां दूर पहाडिय़ां और जलाशय दिखाई देते हैं। पर्यटक स्पीड बोट और पेडल बोट पर आनंद उठाते हैं या फिर दूर-दूर तक फैले हरित विस्तार पर बैठ कर चाय या कॉफी का लुत्फ उठाते हैं। पास ही कॉफी, काली मिर्च, इलायची और अन्य गरम मसालों के पेड़ देखने को मिलते हैं। सबसे दिलचस्प था कुमकुम का पौधा, जिससे सिंदूर बनता है। रास्ते में दुकान से हमने कई तरह के गरम मसाले खरीद लिए।

थिरुनेल्ली मंदिर

ब्रह्मगिरि पहाडिय़ों से घिरा, भगवान विष्णु को समर्पित यह अत्यंत प्राचीन मंदिर, पत्थरों में एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति सा प्रतीत होता है। ऐसा सुनने को मिला कि ब्रह्मा जी एक बार इस इलाके से गुजर रहे थे। वहां के प्राकृतिक माहौल में ऐसे रमे कि खुद अपने हाथों से इस मंदिर का निर्माण किया। मंदिर में स्थापित विष्णु प्रतिमा वहीं एक आंवले के पेड़ से मिली थी, जिसे स्थानीय भाषा में नेल्ली कहते हैं। माना जाता है कि यहां बहने वाली पाप-नाशिनी धारा में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं।


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