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गरमा-गरम खाएं या हफ्ते भर बाद, उत्तराखंड की इस मिठाई का कभी नहीं बदलता स्वाद

उत्तराखंड का आध्यात्म सौंदर्य परिवेश संस्कृति जनजीवन हर एक चीज़ बहुत ही खास है और उतना ही खास है यहां के अरसा का स्वाद। जिसे हफ्ते भर बाद भी खाएं तो स्वाद नहीं बदलता।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Tue, 24 Dec 2019 08:00 AM (IST)Updated: Mon, 23 Dec 2019 03:00 PM (IST)
गरमा-गरम खाएं या हफ्ते भर बाद, उत्तराखंड की इस मिठाई का कभी नहीं बदलता स्वाद
गरमा-गरम खाएं या हफ्ते भर बाद, उत्तराखंड की इस मिठाई का कभी नहीं बदलता स्वाद

अरसा...यह नाम सुनकर आप भ्रमित न हों। हम किसी समय की बात नहीं कर रहे हैं, यह तो उत्तराखंड की बेहद खास मिठाई है। स्वाद ऐसा कि एक बार खा लें तो इसकी मिठास भूल नहीं पाएंगे। स्वाद और सेहत से भरपूर इस पकवान की खासियत यह है कि इसे गरमा गरम खाएं या एक महीने बाद, स्वाद में कोई फर्क नहीं मिलेगा। अरसा आपके मुंह में कुछ ऐसी मिठास घोल देगा।

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अस्सालु बन गया अस्सा

अरसा को पहले अरसालु कहते थे, वो कैसे? दरअसल इसके पीछे भी दिलचस्प कहानी है। जगदगुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिरों का निर्माण करवाया था। इसके अलावा गढ़वाल में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका निर्माण शंकराचार्य ने ही करवाया था। इन मंदिरों में पूजा करने के लिए दक्षिण भारत के ब्राह्मणों को रखा जाता है। कुछ जानकार कहते हैं कि नौवीं सदी में दक्षिण भारत से ये ब्राह्मण जब गढ़वाल आएं तो अपने साथ एक मिठाई अरसालु लेकर आए थे। क्योंकि लंबे समय तक रखने के बाद भी खराब नहीं होती थी, इसलिए वो पोटली भर-भरकर अरसालु लाया करते थे। धीरे-धीरे इन ब्राह्मणों ने स्थानीय लोगों को भी इसे बनाने की कला सिखाई और इस तरह गढ़वाल पहुंचकर अरसालू बन गया अरसा। इसे बनाने के लिए गढ़वाल में गुड़ इस्तेमाल होता है, जबकि कर्नाटक में खजूर गुड़ का प्रयोग किया जाता है। धीरे-धीरे ये गढ़वाल की लोकप्रिय मिठाई बन गई।

स्वाद और सेहत से भरपूर

इसे बनाना है बहुत ही आसान। जिसमें चावल को साफकर उसे अच्छी तरह धोने के बाद तीन दिनों के लिए पानी में भिगोकर छोड़ दिया जाता है। भिगोने के बाद इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि 24 घंटे बाद उसका पानी बदलना है। तीन दिन बाद चावल को पानी से निकालकर सूती कपड़े के ऊपर सुखा लेंगे। पानी सूख जाने के बाद उसे मिक्सर में दरदरा पीसते हैं। चावल के उस दरदरे आटे में गुड़, दही और घी को मिलाकर अछ्छी तरह गूंथ लिया जाता है।

अब आटे को गीले कपड़े से ढ़ककर 12 घंटे के लिए छोड़ देते हैं। उसके बाद इस आटे में तिल डालकर फिर गूंथा जाता है और छोटी-छोटी लोई बनाकर मनचाहे शेप में ढाला जाता है। एक कढ़ाही में मध्यम आंच पर घी गर्म कर अरसा की गोलियों को सुनहरा होने तक उसमें तलते हैं। चाहें तो आप इन्हें गरमा-गरम खाएं या फिर सप्ताह भर बाद... न स्वाद बदलेगा न सेहत पर कोई कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 


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