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स्वतंत्रता संग्राम में इन 3 जगहों का है विशेष महत्व, जानें इनका इतिहास

बात 19 मार्च 1919 की है। जब देश में रौलेट एक्ट लागू किया गया। इस कानून के तहत किसी को भी संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था।

By Umanath SinghEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 04:24 PM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 04:24 PM (IST)
स्वतंत्रता संग्राम में इन 3 जगहों का है विशेष महत्व, जानें इनका इतिहास
स्वतंत्रता संग्राम में इन 3 जगहों का है विशेष महत्व, जानें इनका इतिहास

दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। भारत आज अपनी आजादी की 74वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस मौके पर देश-दुनिया में उत्स्व मनाया जा रहा है। स्वतंत्र भारत में पहली बार ऐसा हो रहा है, जब न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वेयर और कनाडा के नियाग्रा जलप्रपात पर तिरंगा झंडा फहराकर आजादी का जश्न मनाया जाएगा।

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इस बात की आधिकारिक घोषणा इंडियन टोरंटो के ट्वीट से होती है, जिसमें कहा गया है कि कोरोना वायरस महामारी  के चलते एक साथ आजादी का जश्न नहीं मना पा रहे हैं।  आप सब सुबह में 10 इंडियन टोरोंटो के पेज पर लाइव ध्वजारोहण के साक्षी बन सकते हैं। भारत की आजादी में हर एक भारतीय का अहम योदगान रहा है। इसका प्रतीक देशभर में उपस्थ्ति शहीद स्थल और स्मारक हैं।  आइए उन स्थलों के बारे में जानते हैं-

जलियांवाला बाग़

बात 19 मार्च, 1919 की है। जब देश में रौलेट एक्ट लागू किया गया। इस कानून के तहत किसी को भी संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था। जबकि गिरफ्तार व्यक्ति के लिए अपील, दलील और वकील कुछ नहीं किया जा सकता है।

इस कानून के विरोध में 13 अप्रैल, 1919 को हजारों की संख्या में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सतपाल की रिहाई की मांग की। इस विरोध प्रदर्शन पर जेनरल डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवा दी थी। इस घटना में एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें बच्चे भी शामिल थे। यह स्मारक स्थल आज भी उपस्थित है, जो शहीदों की शहादत का साक्षी है।

इंडिया गेट

प्रथम विश्व युद्ध में और तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध में शहीद ब्रिटिश-इंडियन सैनिकों के सम्मान में इंडिया गेट बनाया गया है। इस युद्ध में तकरीबन 90 हजार भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। उनका नाम इंडिया गेट की दीवारों पर अंकित हैं। जबकि अमर जवान ज्योति 1971 में भारत-पाक के बीच हुए युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के सम्मान में बनाई गई है।

सेल्यूलर जेल

प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों की सल्तनत हिल गई। इससे अंग्रेजों को आभास हो गया कि क्रांतिकारियों से जीतना मुश्किल है। ऐसे में क्रांतकारियों को जन समुदाय से अलग रखने और कड़ी प्रताड़ना देने के लिए अंडमान निकोबार के पोर्ट ब्ल्येर में सेल्यूलर जेल बनाया गया, जिसे कालापानी की सजा भी कहते हैं। इस जेल में क्रांतिकारियों को कड़ी सजा दी जाती थी। अंग्रेजों की यातनाओं से हजारों क्रांतिकारी सेल्यूलर जेल से वापस लौट नहीं पाए। आज यह शहीद स्मारक स्थल के रूप में स्थित है और हजारों लोग सेल्यूलर जेल घूमने आते हैं।


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