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    फिल्मों-सीरियल से अलग झांसी आकर देखें रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की असली झलक

    By Priyanka SinghEdited By:
    Updated: Thu, 15 Aug 2019 03:06 PM (IST)

    आजादी की 73वीं वर्षगांठ के शानदार मौके पर किसी अच्छी जगह घूमना चाह रहे हैं तो झांसी का बनाएं प्लान। जहां आकर आप रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से जुड़े हर पहलू को जान सकते हैं।

    फिल्मों-सीरियल से अलग झांसी आकर देखें रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की असली झलक

    'बुंदेले हर बोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी' सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियां गुनगुनाने भर से मन में देशभक्ति का एक अद्भुत संचार हो उठता है। अनेक किताबें, फिल्मों-सीरियलों के जरिए बयां हो चुकी है रानी के शौर्य की कहानियां। आज आजादी की 73वीं वर्षगांठ के शानदार मौके पर मनीष असाटी के साथ चलते हैं रानी के गढ़ झांसी के रोचक सफर पर...

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    झांसी बुंदेलखंड क्षेत्र का प्रवेश द्वार है। मध्य, पश्चिमी और दक्षिणी भारत के मध्य में स्थित यह जगह चंदेल राजाओं का गढ़ हुआ करता था। चंदेलों की चमक फीकी पड़ने के साथ ही यानी 12वीं सदी में इस शहर की रौनक कम होने लगी थी लेकिन 17वीं शताब्दी में दोबारा इसने अपनी खोयी गरिमा और चमक को पा लिया।

    झांसी के खास आकर्षण

    महाराज गंगाधर राव का समाधि स्थल: महाराजा गंगाधर राव की छतरी का निर्माण रानी लक्ष्मीबाई द्वारा 21 नवंबर 1853 को रानी लक्ष्मीबाई द्वारा उनके पति महाराजा गंगाधर राव के निधन के बाद करवाया गया था। 150 वर्ष पुरानी होने के बावजूद महाराजा गंगाधर राव की छतरी समय का सामना करते हुए खड़ी है। इसकी घुमावदार छत बारह कलात्मक नक्काशीदार स्तंभों पर टिकी है, जो उस समय की शानदार वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह छतरी अपने भावनात्मक आकर्षण के लिए बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों और पर्यटकों को आकर्षित करती है। यह स्थान उस समय के नायकों के प्रति गहरी श्रद्धा और देश भक्ति का जोश उत्पन्न करता है।

    रानी महल: झांसी का रानी महल एक शाही महल है। कोतवाली क्षेत्र में स्थित रानी महल दो मंजिला इमारत है। जिसकी छत सपाट है तथा इसे चौकोर आंगन के सामने बनाया गया है। आंगन के एक ओर कुआं और दूसरी ओर फव्वारा है। इस महल में छह कक्ष हैं, जिसमें प्रसिद्ध दरबार कक्ष भी शामिल है। यह कक्ष गलियारे के साथ-साथ बनाए गए हैं, जो एक-दूसरे के समानांतर चलते हैं। रानी महल में कुछ छोटे कमरे भी हैं। दरबार कक्ष की दीवारों को विभिन्न वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के चमकदार रंगों वाले चित्रों से सजाया गया है। झांसी पहुंचने पर लोग इसे देखने के लिए जरुर जाते है। दूर-दराज से पर्यटकों की संख्या यहां काफी होती है। यह महल रोजाना ही सुबह 7 बजे खुलकर शाम 5बजे बंद होता है। महल सोमवार को बंद रहता है।

    गणेश मंदिर: इस मंदिर का इतिहास किले के निर्माण के साथ जुड़ा है। इस मंदिर को रानी के पूर्वजों ने बनाया था। इसी मंदिर में महारानी लक्ष्मीबाई का विवाह महाराज के साथ हुआ था और उसी समय से बुंदेलखंड में पहली पूजा की प्रथा भी चल पड़ी थी।

    महालक्ष्मी मंदिर: झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई की कुल देवी का मंदिर है, जिसे महालक्ष्मी मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में झांसी की रानी सप्ताह में दो बार अपनी सहेलियों के साथ आती थीं। लेकिन दिवाली के अवसर पर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग इकट्ठे होकर इसी जगह जश्न मनाते थे। यहां आज भी लोग दर्शन के लिए भारी संख्या में उमड़ते हैं। यह मंदिर किले के समीप ही स्थित है।