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दुर्गापूजा से लेकर दशहरे की अलग ही रौनक देखने को मिलती है इन जगहों पर

गुलाबी ठंड के बीच दुर्गापूजा, दशहरा, दिवाली जैसे कई उत्सव हैं जिसे कुछ एक जगहों पर अलग ही रंग-ढंग से मनाया जाता है। जानेंगे किन जगहों पर जाकर इन फेस्टिवल्स को एन्जॉय कर सकते हैं।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Wed, 17 Oct 2018 01:09 PM (IST)Updated: Wed, 17 Oct 2018 01:09 PM (IST)
दुर्गापूजा से लेकर दशहरे की अलग ही रौनक देखने को मिलती है इन जगहों पर

फिजा में अजब सा रंग है, एक पवित्र-सी, आस्था भरी खुशबू फैली है। भादो की फुहार में भींगने के बाद प्रकृति अपना लिबास बदलने को आतुर है। हर मन गुलजार है क्योंकि क्या उत्तर भारत, क्या दक्षिण या देश का पूर्वी-पश्चिमी इलाका, हर तरफ बिखरने को है उत्सवी रंगों का उमंग। दुर्गोत्सव की धूम या डांडिया की थिरकन या दिवाली की रौनक, लोग पूरे उत्साह के साथ त्योहारों का आनंद ले रहे हैं। लेकिन कुछ जगहों पर ये उत्सव बहुत धूम-धाम के साथ मनाया जाता है जहां जाकर इन्हें देखने का अपना अलग ही मजा है।

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इन जगहों पर होती है दुर्गापूजा से लेकर दशहरे की अलग ही रौनक 

दुर्गोत्सव में कॉर्निवल की छटा

पश्चिम बंगाल भारत के अहम पर्यटन केंद्रों में शामिल है तो इसमें बड़ा योगदान यहां मनाया जाने वाला दुर्गा पूजा उत्सव भी है। यूं तो राजधानी कोलकाता अपनी लंबी सांस्कृतिक विरासत के कारण हर मौसम में गुलजार रहता है लेकिन दुर्गापूजा में कोलकाता की रंगत पूरी तरह बदल जाती है। महानगर इस दौरान मानो सड़क पर ही रहता है। ऊपर बाहर से आने वाले पर्यटकों की तादाद इसमें नया रंग भरती है।

रामनगर की निराली रामलीला

यह जानना कम रोचक नहीं कि देश में अभी भी कुछ रामलीला मंचन अपने पारंपरिक अंदाज में ही हो रहे हैं। बनारस के रामनगर की रामलीला की विशेषता ढाई सौ साल में भी नहीं बदली है। एक माह तक चलने वाली इस रामलीला मंचन को देखने वालों के लिए यह महज मंचन न होकर प्रभु से साक्षात्कार का एक जरिया सरीखा है। तकनीकी विकास के लंबे दौर के बाद भी रामनगर की लीला में आज तक माइक का प्रयोग होते न देखा, न ही सुना। बावजूद इसके भक्ति रसपान के लिए टूट पड़े मजमे पर जोरदार संवाद अदायगी भारी पड़ जाती है।

कुल्लू दशहरे का चुंबकीय आकर्षण

आठ दिनों तक चलने वाले हिमाचल के कुल्लू दशहरे के चुंबकीय आकर्षण से पर्यटक खीचे चले आते हैं। शहर का सबसे महत्वपूर्ण आकर्षण है 17वीं शताब्दी में कुल्लू के राजपरिवार द्वारा देव मिलन से शुरु हुआ महापर्व यानी कुल्लू दशहरा। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय लोक उत्सव कुल्लूमेला, नैना देवी में स्थानीय ही नहीं बाहर से आए पर्यटकों की बड़ी तादाद होती है। यह पर्व जहां कुल्लू के लोगों के भाईचारे का मिलाप है तो घाटी में कृषि व बागवानी कार्य समाप्त होने के बाद ग्रामीणों की खरीदारी का भी प्रमुख अवसर होता है। दशहरा केवल कुल्लू व हिमाचल का मेला नहीं बल्कि देव समागम, प्राचीन संस्कृति और विविधता में एकता का अध्ययन एवं शोध करने वालों के लिए भी बड़ा अवसर है। हजारों लोगों का हुजूम रंग-बिरंगे परिधानों में अलग-अलग फूलों के गुलदस्ते के समान लगता है। मेले के आरंभ में जिस दिन भगवान रघुनाथ की शोभयात्रा निकलती है, शहर में पांव तक रखने की जगह नहीं मिलती। ऐसा लगता है मानो मानव रूपी समुद्र में श्रद्धा की लहरें उमड़ रही हों।

मैसूर के ऐश्र्वर्य की झलक

भारत के सबसे साफ-सुथरे शहरों की सूची में भी अव्वल कर्नाटक के मैसूर का दशहरा भी खूब मशहूर है। ब्रिटिश वास्तुकार इरविन की खूबसूरत रचना भव्य मैसूर महल की सुंदरता दशहरे के दौरान अपने पूरे शबाब पर होती है। इंडो-अरेबिक शैली में बना यह महल दशहरा के दौरान और खूबसूरत हो जाता है। इन दिनों महल को तकरीबन 1 लाख बल्बों से सजाया जाता है।

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