इडुकी का 'गेटवे' कहा जाने वाला ये ऑफ-बीट डेस्टिनेशन है अकेले घूमने के लिए बेहतरीन
दक्षिण भारत में छिपा है कुदरती खूबसूरती का नायाब खजाना। यहां कई ऐसी जगहें मौजूद हैं, जिन्हें लोग नहीं जानते, जैसे नेरियामंगलम। तो आज चलते हैं नेरियामंगलम के रोचक सफर पर
नेरियामंगलम.. एक ऐसा स्थान, जिसके तीन किनारों को पश्चिमी घाट ने घेर रखा है और नीचे उसके कदमों को प्रसिद्ध पेरियार नदी चूमती है। वहां सूरज की किरणें भी एक पल रुककर इस अनुपम दृश्य को देखने लगती हैं। पहाडि़यों पर फैली अथाह हरियाली के नीचे केले, अनन्नास, नारियल, कॉफी, काजू और काली मिर्च की फसलों का रंग मोह लेता है। दरअसल, नेरियामंगलम, पर्यटन की दुनिया में एक अनजाना नाम है। चाय बागानों वाला मुन्नार, पेरियार टाइगर रिजर्व वाला तेकड़ी, ऐतिहासिक सूर्यनेली या फिर चंदन के लिए प्रसिद्ध मरायूर तक जाने के लिए नेरियामंगलम से होकर गुजरना ही होता है। एर्नाकुलम जिले के इस छोटे से कस्बे को केरल के सबसे खूबसूरत जिले इडुकी का 'गेटवे' होने का गौरव हासिल है।
हवाई अड्डे या रेलवे स्टेशन से आने वाली गाडि़यां यहां रुककर थोड़ा सुस्ता लेती हैं। ड्राइवर पहाड़ी पर वाहन चढ़ाने से पहले अंतिम बार हाथ-पांव सीधे करते हैं। हनीमून पर जा रही दुल्हन के लिए कॉफी लाता दूल्हा मुस्कुराते हुए पहाड़ों से लटक आए बादलों को देखकर अपने कैमरे या मोबाइल को सेट करता है। यहां के लिए कोई भी सड़क पकड़ लें, वह जीवन से भरी हुई मिलेगी। एक सड़क, जो बस्ती की ओर जाती है, उसके दोनों ओर सड़क पर खुलते हुए घर मिलेंगे और मिलेगी प्यारी स्थानीयता। लोग शाम को अपने घरों के बाहरी हिस्से में दीपक जलाकर रखते हुए मिलेंगे, स्त्रियां पारंपरिक 'कसवु' साड़ी में सजी नजदीक के मंदिर में जाती मिलेंगी। अगर आप रविवार की सुबह इस कस्बे में कदम रखते हैं तो 'मास प्रेयर' के लिए स्थानीय चर्च में आए लोगों से सड़क भरी मिलेगी। नीचे पेरियार की ओर बढऩे पर मस्जिद दिखती है। गाहे-बगाहे वहां से भी इबादत की आवाजें आती हैं। इतने छोटे से स्थान में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई आबादी का इस तरह दूध में घुले पानी की तरह रहना अपने आप में कमाल की बात है। धार्मिक सहिष्णुता के हिसाब से नेरियामंगलम को विशिष्ट कहा जा सकता है।
शामें संतरी, मग्धि सुबह
बस्ती से नीचे जाने वाली सड़क नदी के तट पर ले जाती है। वह तट एक अलग ही दुनिया में प्रवेश करता है, जिसकी कल्पना साहित्य में हो सकती है या फिर जिन्हें चित्रों में ही देखा गया हो। आड़ी-तिरछी चट्टानों पर बहती पहाडि़यों से घिरी नदी की सतह पर ठीक बीचोबीच अस्त होता सूरज मन मोह लेता है। बरसात के बाद जब बांध को बंद कर दिया जाता है, तब मंथर गति से बहती नदी के बीच में पानी पर उल्टे लेटकर सूरज को ताकना मन में संतरी रंगत भर देता है। नदी के दोनों ओर पहाड़ों पर फैली हरियाली की छाया नदी में पड़ती है, ठीक उसी समय कोई नाव मछली पकडऩे के लिए निकल पड़ती है। यहां की शामें जितनी खूबसूरत होती हैं, सुबहें उतनी ही शांत और मग्धि। नदी के ऊपर पड़ा कोहरा और उसके बीच से निकलते दिन का खिलता हुआ रंग बहुत आकर्षक होता है। यहीं करीब इंचातोट्टी के पास कयाकिंग और दूसरे वाटर स्पोर्ट्स का आनंद ले सकते हैं। प्रकृति के बीच रोमांचक खेलों का साथ हो तो इससे सुंदर बात और क्या होगी।
ऐतिहासिक है यह पुल
मुनार को बाकी दुनिया से जोडऩे वाला नेरियामंगलम ब्रिज ऐतिहासिक होने के साथ-साथ अपनी बनावट में अनोखा है। उस पुल को त्रावणकोर के राजा के लिए अंग्रेज इंजीनियरों ने बनाया था। 1935 ई. में बना वह पुल अब तक उसी मजबूती से खड़ा है।
लोमड़ी के आकार की गिलहरी
नेरियामंगलम आने वाले लोग नेरियामंगलम पुल को पारकर इसके दोनों ओर पसरे जंगल में उतर सकते हैं। जंगल के इन हिस्सों में बड़े जानवर तो नहीं, लेकिन भांति-भांति के पक्षी और खास दक्षिण भारत में पाई जाने वाली बड़ी गिलहरी देखी जा सकती है। आप यह जानकर हैरान हो सकते हैं कि इन गिलहरियों का आकार लोमड़ी के बराबर होता है, लेकिन वे आम गिलहरियों की तरह ही पेड़ों पर कूदती-फांदती या पत्ते कुतरती रहती हैं। इन्हें यहां की स्थानीय भाषा में 'वले अन्नान' कहा जाता है।
जंगल में बहता झरना
राष्ट्रीय राजमार्ग 85 के दोनों ओर फैले जंगल की विशेषता है उनके भीतर से बहती पतली-पतली धाराएं, जो दूर कहीं किसी पहाड़ी से झरने की शक्ल में गिरती हैं। घने जंगल में पानी के उन सोतों के किनारे किसी चट्टान पर बैठकर प्रकृति के मौन में बह रहे पानी और गा रहे पक्षियों का कलरव सुनना अप्रतिम एहसास देता है। जंगल के ये हिस्से बड़ी तेजी से नीचे उतर जाते हैं, इसलिए बाहरी दुनिया से आ रही आवाजें कुछ सौ मीटर नीचे उतरने पर ही पीछे छूटने लगती है। जंगली सागवान के ऊंचे-ऊंचे वृक्षों के बीच से बहता झरना प्रकृति के वास्तविक सौंदर्य से साक्षात्कार करवाता है।
काजू के फलों की मीठी गंध
नेरियामंगलम कस्बे से पश्चिम की ओर बढऩे पर खेतों का साम्राज्य दृष्टिगोचर होता है। यह खेती थोड़ी अलग किस्म की है। आप जिन्हें कोई जंगली पेड़ समझते हैं, वे वास्तव में काजू के पेड़ निकलते हैं। काजू के पेड़ों में नवंबर-दिसंबर के महीनों में फूल आते हैं और मार्च में जाकर फल पकने लगते हैं। काजू का जो हिस्सा सूखे मेवे के रूप में काम आता है, वह दरअसल उसका बीज है, जो फल से बाहर लटका रहता है। मार्च से अप्रैल के महीने में काजू के फलों की मीठी गंध से यह रास्ता सराबोर हो जाता है। उन दिनों आने पर पेड़ों में लटके लाल-पीले फलों का स्वाद लिया जा सकता है। ये फल मीठे, कसैले और रस से भरे होते हैं। स्थानीय लोग इससे वाइन बनाकर बेचते हैं। रबड़ के पेड़ों से भी जंगल के होने आभास हो सकता है। पतली-सी काली सड़क के दोनों ओर खेतों में रबड़ के ऊंचे-ऊंचे पेड़ खड़े होते हैं। कुछ साल पहले तक रबड़ की अच्छी कीमत मिल जाती थी, लेकिन हाल के वषरें में मलेशियन रबड़ की आमद ने केरल के इस इलाके के रबड़ उत्पादकों को बुरी तरह प्रभावित किया है। कीमतों के कम होते जाने से उनका रुझान अनन्नास की खेती की ओर होने लगा है। किसान अपनी रबड़ की खेती उजाड़कर इस रसीले फल की पौध लगा रहे हैं। उन खेतियों के पार इंचातोट्टी का 'तूक पालम' अर्थात हैंगिंग ब्रिज आता है। नेरियामंगलम के उत्तर-पश्चिमी छोर से बहकर आती हुई पेरियार नदी के उस पार बसी आबादी के लिए बना यह पुल स्थानीय आकर्षण का केंद्र है। पहाड़ी के दोनों ओर बंधे इस पुल के आसपास के प्राकृतिक दृश्यों के सौंदर्य को भुनाने के लिए यहां अक्सर किसी न किसी मलयालम फिल्म की शूटिंग होती रहती है।
कब और कैसे जाएं?
असल में नेरियामंगलम उन चुनिंदा स्थानों में से है, जहां वर्ष में कभी भी जाया जा सकता है। हर मौसम का अपना ही आकर्षण है। बारिश के दिनों में लगभग हर सौ मीटर पर बहता हुआ एक झरना मिल जाता है। चारों ओर फैली गहरी हरियाली मिल जाती है। दिसंबर के बाद पेरियार नदी पर बने नजदीकी 'भूततानकेटु' बांध के फाटकों को बंद कर दिया जाता है। इससे पेरियार में बहुत सारा पानी जमा हो जाता है। यह पानी छोटी-छोटी नहरों के सहारे जंगल में घुस जाता है। यह समय नाव में बैठकर जंगल के भीतर के जीवन को करीब से देखने का होता है, जो अन्य किसी भी मौसम में संभव नहीं है। सबसे आकर्षक बात यह है कि इन सब के लिए कोई मारामारी नहीं है, तमाम पर्यटन स्थलों जैसा बाजारूपन भी यहां नहीं है। कोई स्थानीय नाविक तैयार हो जाए तो बहुत कम पैसों में इस तरह की यात्रा हो जाती है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन आलुवा 45 किलोमीटर दूर है, जो देश के सभी स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। करीबी हवाई अड्डे की बात करें तो कोचीन हवाई अड्डा 51 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोच्चि-धनुषकोटि मार्ग पर स्थित होने के कारण सड़क मार्ग की सारी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। यहां ठहरने के कई विकल्प मौजूद हैं, इनमें सरकारी व्यवस्था से लेकर नीलांबरी जैसी 3 स्टार होटल और सोमा बर्ड लगून जैसे लग्जरी स्टे से लेकर सविता जैसे उच्च श्रेणी के लॉज की सुविधा उपलब्ध है।