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प्रतापगढ़ दुर्ग जहां छत्रपति शिवाजी ने बाघनख से चीर दिया था अफजल खान का पेट

महाराष्ट्र घूमने की प्लानिंग कर रहे हैं तो प्रतापगढ़ किले की सैर जरूर करें। जहां छत्रपति शिवाजी महाराज ने अफज़ल खां का पेट अपने बाघनख से चीर कर रख दिया था।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Tue, 14 Aug 2018 10:21 AM (IST)Updated: Tue, 14 Aug 2018 10:21 AM (IST)
प्रतापगढ़ दुर्ग जहां छत्रपति शिवाजी ने बाघनख से चीर दिया था अफजल खान का पेट
प्रतापगढ़ दुर्ग जहां छत्रपति शिवाजी ने बाघनख से चीर दिया था अफजल खान का पेट

सतारा जिले का प्रतापगढ़ किला समुद्र तल से 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। महाबलेश्वर हिल स्टेशन से महज 24 किमी की दूरी पर स्थित होने की वजह से पिछले कुछ सालों में ये एक बहुत ही लोकप्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन चुका है जहां लोग ट्रकिंग के लिए जाते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता और पराक्रम की कहानी बयां करने वाला ये किला और किन मायनों में खास है जानेंगे इसके बारे में।   

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प्रतापगढ़ किले का इतिहास

आसपास पहाड़ों और गहरी घाटी वाले महाबलेश्वर के नज़दीक प्रतापगढ़ किले की आन, बान, शान छत्रपति शिवाजी महाराज और अफज़ल खां की मुलाकात के समय से ही बरकरार है। मुलाकात से अफज़ल खां, शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुआ था और उनकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था लेकिन मौका पाते ही उसने शिवाजी के ऊपर पीछे से वार कर दिया। कपड़ों के अंदर लोहे का कवच होने की वजह से उन्हें किसी तरह की चोट नहीं आई थी। इसके जवाब में शिवाजी महाराज ने हाथों में पहने बाघनाख ने उस पर वार कर उसका पेट चीर दिया था।

किले की बनावट

प्रतापगढ़ किला शिवाजी की वीरता का प्रतीक है। किले के अंदर ही एक दूसरा किला भी था। दो भागों में बंटा इसका निचला किला 320 मीटर लंबा और 110 मीटर चौड़ा है वहीं ऊपरी किला 180 मीटर लंबा है। ऊपरी किले में महादेव का मंदिर है मंदिर के बिल्कुल सामने विशाल दरबार का आयोजन किया जाता था जिससे मंदिर के सामने बैठकर कोई किसी भी प्रकार का झूठ न बोल सके।

इन जगहों की भी करें सैर

भवानी मंदिर

ऐसा माना जाता है कि सन् 1661 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर में 50 फीट लंबे, 30 फीट चौड़े और 12 फीट ऊंचे खंभे लगे हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए नगाड़ा हॉल से होकर गुजरना पड़ता है जहां पर एक बड़ा ड्रम रखा हुआ है जिसकी गूंज खास उत्सवों पर सुनने को मिलती है। यहां मराठा सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने भाले और भी दूसरे  तरह के औज़ार देखन को मिलेंगे। मंदिर के अंदर आठ भुजाओं वाली देवी भवानी की साड़ी में मूर्ति विराजमान है। मंदिर में छत्रपति शिवाजी की तलवार भी रखी हुई है जिससे उन्होंने अकेले प्रतापगढ़ की लड़ाई में अफज़ल खां की सेना के 600 सैनिक मारे थे।

हनुमान मंदिर

शिवाजी महाराज के गुरू रामदास स्वामी ने इस मंदिर को यहां स्थापित किया था। मंदिर की खास बात है कि यहां विराजमान हनुमान जी का ऐसा रूप कहीं भी दूसरी जगह देखने को नहीं मिलता। 

महाबलेश्वर में कर सकते हैं एन्जॉय    

प्रतापगढ़ फोर्ट देखना बेशक एक अच्छा एक्सपीरियंस साबित होगा लेकिन यहां आकर महाबलेश्वर नहीं घूमा तो बहुत कुछ मिस करने जैसा होगा। वीकेंड में आप यहां रूककर पहाड़ों और घाटों और आसपास के खूबसूरत नज़ारों को एक्सप्लोर कर सकते हैं। वेना लेक में बोटिंग का मजा ले सकते हैं। इसके अलावा आर्थर सीट भी बहुत ही रोमांचक जगह है। इस जगह का नाम आर्थर सीट इसलिए पड़ा क्योंकि यहां सर आर्थर मालेट बैठकर सावित्री नदी को देखा करते थे, जिसमें एक घटना के दौरान उनकी पत्नी और बच्चे खो गए थे। विल्सन प्वाइंट महाबलेश्वर का सबसे ऊंचा प्वाइंट है जहां से उगते और ढलते सूरज को देखना वाकई यादगार होता है। 

कैसे पहुंचें

मुंबई से दूरी- 208 किमी

हवाई मार्ग- सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट पुणे है।

रेल मार्ग- वीर दसगांव यहां का सबसे पास रेलवे स्टेशन है। 

सड़क मार्ग- महाबलेश्वर से 24 किमी की दूरी पर है प्रतापगढ़, जहां दिन के समय जाना सही रहेगा। वैसे पनवेल से पोलाडपुर तक बसों की सुविधा भी मौजूद है। पोलाडपुर में आपको रूकना होता है इसके बाद वहां से वाडा गांव तक पहुंचना होता है जहां से कार बुक करके आप इसे किले तक आसानी से पहुंच सकते हैं।


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