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एडवेंचर के साथ-साथ रिलैक्सिंग के लिए मंडी शहर का ट्रिप जरूर करें प्लान

घूमने के अलावा हिमाचल की संस्कृति के दर्शन के लिए मंडी शहर आएं। भीड़ से दूर ये शहर रिलैक्सिंग और एन्जॉयमेंट दोनों के ही लिए है बेस्ट डेस्टिनेशन।

By Pratima JaiswalEdited By: Published: Fri, 20 Jul 2018 04:57 PM (IST)Updated: Sun, 22 Jul 2018 06:00 AM (IST)
एडवेंचर के साथ-साथ रिलैक्सिंग के लिए मंडी शहर का ट्रिप जरूर करें प्लान
एडवेंचर के साथ-साथ रिलैक्सिंग के लिए मंडी शहर का ट्रिप जरूर करें प्लान

 हिमाचल प्रदेश का मंडी शहर देश की विविधता व रंग-बिरंगी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। नई-पुरानी परंपरा को संजोए इस शहर में कुदरती खूबसूरती के साथ दिखते हैं आस्था और फैशन के अजब-गजब रंग भी। अनेक शिव मंदिरों के कारण शहर को 'छोटी काशी' या 'पहाड़ का वाराणसी' भी कहा जाता है। आज चलते हैं मंडी के खास सफर पर..अगर आप किसी खास खुशगवार स्थल की खोज में हैं तो चले आइए हिमाचल की गोद में बसे मंडी शहर में। जंजैहली घाटी, बरोट, कमरुघाटी, करसोग व ज्यूणी समेत यहां कई ऐसे प्राकृतिक स्थल हैं जहां एक बार जाएंगे तो आप बार-बार वहां आना चाहेंगे। यहां कई खूबसूरत झीलें भी हैं जो आस्था के साथ-साथ घुमक्कड़ी के शौकीनों को भी खूब लुभाती हैं। हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले इस शहर की संस्कृति अनूठी है। इसकी झलक आप यहां शिवरात्रि और होली उत्सव के दौरान देख सकते हैं। अकेले मंडी शहरी में ही 300 के करीब नए व पुराने मंदिर हैं, इसलिए इस शहर को कहा जाता है 'पहाड़ का वाराणसी'। सांस्कृतिक विविधताओं का शहर शिवरात्रि पर देश भर में धूम होती है लेकिन यहां इस उत्सव का रंग ही अलग है। सात दिन तक चलने वाला यह पर्व दुनियाभर में विख्यात है। इस दौरान यहां एक मेला लगता है जिसकी शुरुआत हर साल फाल्गुन के कृष्ण पक्ष के 13वें दिन से होती है। इस अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में करीब तीन सौ देवी देवताओं के साथ आने वाले देवलुओं से छोटी काशी देवध्वनि से गुंजायमान रहती है। महोत्सव के दौरान ऐसा लगता है कि सभी देवता उठकर यहां आ गए हों। इसी तरह यहां आप होली पर आएं तो एक विचित्र बात देखेंगे। वह यह कि यहां गैरों पर गुलाल व रंग नहीं डाला जाता है। देश के अन्य हिस्सों से एक दिन पहले यहां की गलियों में अबीर गुलाल उड़ता है। राजदेवता माधो राय की भागीदारी इस उत्सव को रियासत के राजा और प्रजा के रिश्तों की प्रगाढ़ता को उजागर करती है। माधोराय मंडी रियासत के राजदेवता रहे हैं। मंडी की होली राजा और प्रजा के बीच आपसी सदभाव और सौहार्द की प्रतीक भी है। 

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बॉलीवुड में धमक

ज्यादातर लोगों को मालूम है कि बॉलीवुड फिल्मों में चमक बिखेरने वाली फिल्म अभिनेत्री कंगना रनोट मंडी जिले के भांवला की निवासी हैं। अभिनेत्री ने मनाली में अपना आशियाना बना लिया है लेकिन उनका जन्म और प्रारंभिक पढ़ाई इसी जिले में हुई है। मशहूर संगीतकार एसडी कश्यप की बेटी शिवांगी पिता की तर्ज पर मुंबई में फिल्मों और टीवी सीरियल में संगीत निर्देशन ही नहीं, बल्कि अपनी आवाज का जादू भी बिखेर रही हैं। 'सावधान इंडिया' और 'हिप्प-हिप्प हुर्रे' जैसे टीवी सीरियलों में भी शिवांगी ने बतौर संगीत निर्देशक काम किया है। इसी तरह मंडी की शिवरंजनी सिंह की सुरीली आवाज का लोहा बॉलीवुड ने भी माना है। फिल्म 'हेट स्टोरी-3' में शिवरंजनी सिंह ने टाइटल सांग में आवाज दी थी। मंडी से पूर्व रणजी क्रिकेटर शक्ति सिंह की बेटी शिवरंजनी सिंह ने मात्र 21 साल की उम्र में ही बॉलीवुड में धाक जमाई है। 

फैशन का ट्रेंड सेटर

अब जब बॉलीवुड की शान कंगना रनोट का प्रदेश है तो मंडी क्यों न हो फैशन का ट्रेंड सेटर। पर बात इससे आगे की है। कहा जाता है कि हिमाचल में अगर कहीं से फैशन की शुरुआत होती है तो वह मंडी शहर ही है। इसलिए मंडी को हिमाचल के फैशन का ट्रेंड सेटर माना जाता है। शहर की सड़कों पर आप फैशन के तमाम रंगों को देख सकते हैं। बालों के स्टाइल से लेकर जूतों तक सभी फैशन व स्टाइल स्टेटमेंट से मिलते दिखेंगे। इन दिनों ट्रेंड में चल रहे प्लाजो, जंपसूट, प्रिंटेड टॉप को पहनने के तरीके आप यहां की युवतियों से सीख सकते हैं। मंडी के लोगों का रहन-सहन ही नहीं, खान-पान भी हिमाचल प्रदेश के अन्य शहरों से जुदा है। 

ट्रेकिंग के लिए आएं बरोट

प्रकृति की गोद में बसा बरोट गांव ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए भी बेहतर है। देवदार के हरे पेड़ों से घिरी यह घाटी मंडी शहर से करीब 73 किलोमीटर दूर है। वैसे तो शहर से यहां के लिए लगातार बसें चलती रहती हैं, लेकिन आप अपने वाहन या टैक्सी से भी यहां पहुंच सकते हैं। बरोट से बड़ा गांव (16 किलोमीटर) और बीड़ (49 किलोमीटर) तथा मंडी जिले का अति दुर्गम क्षेत्र बड़ा भंगाल (लगभग 3 दिन का रास्ता) ट्रेकिंग के लिए बहुत ही मशहूर स्थान है। आस-पास पहाडि़यों से घिरा बरोट एक छोटा सा गांव है, जहां से होकर ऊहल नदी गुजरती है। ऊहल नदी पर अंग्रेजों ने 1926 में बरोट बांध का निर्माण करवाया था। वर्तमान में 110 मेगावाट की शानन विद्युत परियोजना कार्य कर रही है। इस बांध को बनाने के लिए सन् 1926 में अंग्रेज इंजीनियर कर्नल बैटी ने एक रोप-वे ट्रॉली का निर्माण कराया था। इस ट्राली के जरिए बांध का सारा सामान जोगेंद्र नगर से बरोट पहुंचाया जाता था। यह ट्रॉली आज भी कार्य करती है। कांगड़ा और मंडी जिले को आपस को जोडऩे वाला संगम स्थल बरोट पहाड़ी आलू और राजमाह के लिए काफी विख्यात है। बरोट से जोगेंद्र नगर रेलवे स्टेशन चालीस किलोमीटर की दूरी पर है। बरोट में ठहरने के लिए हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग, वन विभाग के विश्राम गृह समेत होम स्टे व निजी होटल भी हैं।

नदी का खूबसूरत शहर

संस्कृत के विद्वान पाणिनी की पुस्तक अष्टध्यायी में इसे मंडवती नगरी कहा गया है। बौद्ध साहित्य में इस क्षेत्र को जौहर तथा संस्कृत साहित्य में मंडयिका के नाम से पुकारा जाता है, जिसका अर्थ खुला हॉल या गोशाला होता है। ब्यास नदी के तट पर बसे इस ऐतिहासिक नगर का अतीत वैभवपूर्ण रहा है। हिंदी के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह की कविता बनारस में पानी की लहरों, घाटों और मंदिरों की घाटियों के जो बिंब उभरते हैं ..वे मंडी शहर पर भी सटीक बैठते हैं। वहीं हिदी के मशहूर कथाकार मोहन राकेश के शब्दों में-मंडी अपनी नदी का खूबसूरत शहर है। हालांकि अब शहर की सूरत के साथ नदी की हालत भी बदल गई है। ब्यास नदी अब गंदा नाला बनकर रह गई है..जो बरसात के दिनों में ही अपने घाटों का स्पर्श कर पाती है। यह इस शहर के खुलेपन का ही परिणाम है कि हर आने वाले बदलाव को सहजता से स्वीकर कर लेता है। -मुरारी शर्मा, साहित्यकार 

130 साल का विक्टोरिया पुल 

शहर में बना विक्टोरिया पुल ब्रिटिश काल की याद ताजा कराता है। 1877 में मंडी रियासत के तत्कालीन राजा विजय सेन ने इसका निर्माण करवाया था। इतिहासकारों के अनुसार राजा विजय सेन ने अंग्रेजों द्वारा दिल्ली में आयोजित एक प्रतियोगिता में कार जीती थी और उस कार को मंडी तक लाने के लिए पुल का निर्माण करवाया गया था। इस पुल को इंग्लैंड में बने विक्टोरिया पुल की तर्ज पर बनाया गया है और इसका निर्माण भी उस वक्त के अंग्रेज इंजीनियरों ने ही किया था। इस पुल पर उस वक्त एक लाख का खर्च आया था और इंजीनियरों ने इसकी उम्र 100 साल निर्धारित की थी, लेकिन 138 साल बाद भी इस पुल की सेवाएं ली जा रही हैं। खास है ट्राउट मछलीमंडी जिले के बरोट में पाई जाने वाली ट्राउट फिश की मांग देशभर में है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर अन्य बड़ी हस्तियां ट्राउट की दीवानी रही हैं। चंडीगढ़ दिल्ली समेत देश के अन्य बड़े शहरों के पांच सितारा होटलों में ट्राउट की अच्छी खासी मांग रहती है। प्रदेश में हर साल करीब 167.100 टन ट्राउट का उत्पादन होता है। इसमें मंडी जिला के बरोट में मत्स्य विभाग के फार्म में सालाना करीब 2.5 टन और बरोट, जोगेंद्रनगर व जंजैहली के कुछ क्षेत्रों में निजी तौर पर करीब 42 मत्स्य पालक 100 टन ट्राउट का उत्पादन करते हैं। 

प्रसिद्ध मंदिरों की सैर

त्रिलोकीनाथ शिव मंदिर: नागरी शैली में बने इस मंदिर की छत टाइलनुमा है। यहां से आसपास के सुंदर नजारे देखे जा सकते हैं। यहां भगवान शिव को तीनों लोकों के भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। मंदिर में स्थित भगवान शिव की मूर्ति पंचानन है जो उनके पांच रूपों को दिखाती है। 

भूतनाथ मंदिर : शिवरात्रि का केंद्र मंडी के बीचों-बीच स्थित इस मंदिर का निर्माण 1527 में किया गया था। यह मंदिर उतना ही पुराना है जितना कि यह शहर। मंदिर में स्थापित नंदी बैल की प्रतिमा बुर्ज की ओर देखती प्रतीत होती है। पास ही नया मंदिर भी बनाया गया है। मंडी शिवरात्रि महोत्सव का केंद्र भूतनाथ मंदिर ही होता है। 

श्यामाकाली मंदिर : शहर से करीब एक किलोमीटर दूर टारना पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर को टारना देवी मंदिर भी कहा जाता है। राजा श्याम सेन ने 17वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण कराया था। 

ये झीलें आम नहीं हैं

कमरूनाग झील

यह झील मंडी जिले के तहत रोहांडा नामक स्थान से 6 किलोमीटर की पैदल व बेहद थका देने वाली चढ़ाई के बाद आती है। जिला मुख्यालय मंडी से करीब 40 किलोमीटर दूर समुद्रतल से करीब 9000 फीट की ऊंचाई पर सरनाहुली में स्थित इस झील का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। झील के बिल्कुल साथ ही है देव कमरूनाग का प्राचीन मंदिर। इस मंदिर के कारण ही झील को 'कमरूझील' की संज्ञा दी जाती है। देव कमरूनाग पांडवों के आराध्य देव हैं। 

रिवालसर झील 

 मंडी शहर से करीब 24 किलोमीटर दूर यह झील तीन धर्मों हिंदू, बौद्ध और सिखों का साझा तीर्थस्थल है। यह झील तैरने वाले टापुओं के लिए मशहूर है। इस झील में रंग-बिरंगी मछलियां हैं। यहीं पर बौद्ध गुरु पद्मसंभव ने बौद्ध धर्म की आधारशिला रखी थी। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के चरण इस धरा पर पडऩे से यह स्थल और भी महत्वपूर्ण बन गया। यहां एक गुरुद्वारा भी है। झील के साथ ही चिडि़याघर भी है। 

सुंदरनगर झील 

यह झील जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग-21 के साथ सुंदरनगर में है। यह झील बीबीएमबी प्रोजेक्ट द्वारा निर्मित पंडोह बांध से सुरंग द्वारा लाए गए ब्यास नदी के पानी के कारण बनी है। इस स्थान से फिर ब्यास नदी का पानी सुरंग द्वारा सलापड़ तक पहुंचाया जाता है, जहां ब्यास का पानी सतलुज नदी में मिल जाता है। यहीं पर 990 मेगावाट बिजली क्षमता वाले इस प्रोजेक्ट द्वारा बिजली का उत्पादन किया जाता है। आसपास हैं खास रहस्यमय है जंजैहली मंडी शहर से करीब 85 किलोमीटर दूरी पर बसी जंजैहली घाटी में भी ट्रेकिंग का लुत्फ लिया जा सकता है। यहां 2850 मीटर की ऊंचाई पर बना शिकारी देवी मंदिर आज भी लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है। आज तक कोई भी शख्स इस मंदिर की छत नहीं लगवा पाया है। कहा जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान मंदिर का निर्माण कराया था। सर्दियों में यहां बर्फबारी तो खूब होती है, लेकिन मां के स्थान पर कभी भी बर्फ नहीं टिकती है। पांडवशिला का विचित्र चट्टानजंजहैली से दो किलोमीटर पीछे पांडवशिला नामक स्थान आता है, यहां आप एक भारी-भरकम चट्टान के दर्शन कर पाएंगे जो मात्र आपकी हाथ की सबसे छोटी अंगुली से हिलकर आपको अचंभित कर देगी। इस चट्टान को महाभारत के भीम का चुगल (हुक्के की कटोरी में डाला जाने वाला छोटा-सा पत्थर) माना जाता है और इसकी पूजा भी की जाती है। 

भुलाह : गजब की सुंदरता

 जंजैहली से छह किलोमीटर की दूरी पर आता है रमणीक स्थल भुलाह, जिसे एक बार देख लें तो भूले से भी भूल न पाएंगे। भुलाह तक पक्की सड़क है। भुलाह ट्रैकरों, पर्यटकों व श्रद्धालुओं का पहला पड़ाव है। थोड़ा-सा मैदानी और चारों ओर से देवदार, बान आदि के पेड़ों से हरा-भरा होने के कारण इस स्थान की सुंदरता देखते ही बनती है। 

इस दही बूंदी का जवाब नहीं 

हलवाई अक्सर अपनी मिठाइयों के लिए मशहूर होते हैं, लेकिन मंडी के एक हलवाई ऐसे भी हैं, जिनकी मिठाइयों में तो दम है ही उनकी बनाई दही बूंदी ने भी उन्हें अलग ही पहचान दी है। दही बूंदी भी ऐसी कि जिसे कोई एक बार खा लेता है तो उसका मन बार-बार उसे खाने को ललचाता है। एक बार यह दही बूंदी खाने वाला दोबारा खुद इस दुकान की तरफ खिंचा चला आता है। मंडी के समखेतर बाजार में बाबा स्वीट्स में पिछले 70 साल से बनाई जा रही विशेष रेसिपी देखने को तो मामूली व्यंजन लगती है, लेकिन आज तक कोई दूसरा ऐसी दही बूंदी नहीं बना सका है। करीब 70 वर्ष पहले मंडी के शरण हलवाई ने समखेतर में दुकान कर अपना काम शुरू किया था और मिठाइयां बनाने के साथ वह दही बूंदी भी बनाया करते थे। अब शरण दास तो नहीं रहे, लेकिन इस दुकान और रेसिपी से उनका नाम आज भी जिंदा है। हर रोज दुकान पर दो क्विंटल दही बूंदी बनती है और देखते ही देखते बिक भी जाती है। 

सेपूबड़ी 

मंडी की शान से मशहूर सेपूबड़ी का जायका किसी धाम में न हो तो स्वाद अधूरा रहता है। उड़द की धुली दाल से तैयार होने वाली यह बड़ी शादियों का मुख्य व्यंजन है। इसे घर में भी तैयार किया जा सकता है, जबकि बाजार में यहां पैकिंग में खूब बिकती है। यहां कई लोग इसे कारोबार के रूप में भी अपनाते हैं। 

यहां करें खरीदारी 

यहां का मशहूर मार्केट है इंदिरा मार्केट। यहां आप खानपान से लेकर मोबाइल, कपड़ा व आभूषण तक हर प्रकार की वस्तुओं की खरीददारी कर सकते हैं। यहां हिमाचली उत्पादों के साथ-साथ आप फास्ट फूड से लेकर हर तरह के व्यंजनों का स्वाद ले सकते हैं। मार्केट का निर्माण इस तरीके से किया गया है कि सर्दियों के दिनों में भी यहां धूप का आनंद लिया जा सकता है।

सैर : कब और कैसे? 

वर्ष में किसी भी मौसम में यहां घूमने आया जा सकता है। बरसात के दिनों में मंडी की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं। ट्रेन के जरिये यहां पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन पंजाब के कीरतपुर साहिब में है। यहां से टैक्सी से आसानी से पहुंचा जा सकता है। सड़क मार्ग से भी यह शिमला, चंडीगढ़, पठानकोट और दिल्ली से जुड़ा हुआ है। मनाली, पालमपुर और धर्मशाला जैसे अन्य शहरों के लिए भी यहां से नियमित बस सेवाएं हैं। दिल्ली के कश्मीरी गेट आइएसबीटी से मनाली या मंडी के लिए नियमित रूप से बसें चलती हैं। चंडीगढ़ से 200 किलोमीटर दूर मंडी तक पहुंचने के लिए बस से करीब पांच घंटे लगते हैं जबकि अपनी गाड़ी या टैक्सी से करीब चार घंटे में पहुंचा जा सकता है। मंडी से निकटतम हवाई अड्डा साठ किलोमीटर की दूरी पर भुंतर में है। दिल्ली और चंडीगढ़ से यहां के लिए नियमित उड़ानें हैं। 

इनपुट सहयोग : हंसराज सैनी व सुरेंद्र शर्मा, मंडी   


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