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अनोखे इतिहास के साथ खूबसूरती को करीब से देखने के लिए 'हेमकुंड साहिब' की करें यात्रा

सिखों ही नहीं हिंदुओं के भी पवित्र स्थलों में शामिल हेमकुंड साहिब की यात्रा क्यों है खास और क्या है इसके पीछे का इतिहास, जानें यहां।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Mon, 30 Jul 2018 11:33 AM (IST)Updated: Mon, 30 Jul 2018 11:37 AM (IST)
अनोखे इतिहास के साथ खूबसूरती को करीब से देखने के लिए 'हेमकुंड साहिब' की करें यात्रा
अनोखे इतिहास के साथ खूबसूरती को करीब से देखने के लिए 'हेमकुंड साहिब' की करें यात्रा

हिमालय की यात्रा के दौरान सिर्फ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और नदियों के ही नहीं कई छोटे-बड़े मंदिरों के भी दर्शन होते हैं। अपनी-अपनी कहानी समेटे इन मंदिरों में अपार श्रद्धा और भक्ति का अंदाजा यहां नज़र आने वाली भीड़ से लगाया जा सकता है। वैसे तो उत्तराखंड में सैकड़ों मंदिर देखने को मिलते हैं लेकिन कुछ एक स्थान ऐसे हैं जिनका नाम और पहचान पूरे दुनिया भर में है। ऐसे ही जगहों में शामिल है 'हेमकुंड साहिब'। जो न सिर्फ सिखों बल्कि हिंदुओं के भी पवित्र स्थलों में से एक है। चारों ओर बर्फ के पहाड़ों से घिरे इस गुरुद्वारे की ऊंचाई समुद्र तल से 4329 मी है। जिसके दर्शन के लिए देश-विदेश से हर साल हजारों की संख्या में भक्तगण आते हैं।

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हेमकुंड साहिब के पास ही लक्ष्मण जी का मंदिर है। सात पर्वत चोटियों से घिरे हुए इस गुरूद्वारे तक पहुंचने के लिए घांघरिया से ट्रैकिंग का ऑप्शन भी है आपके पास, जो बेशक थोड़ा मुश्किल है लेकिन साथ ही मजेदार भी। ट्रैकिंग के दौरान पहाड़ और उसके आसपास के खूबसूरत नज़ारे आपके सफर को बनाएंगे और भी सुहाना और यादगार।

हेमकुंड साहिब का इतिहास    

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित हेमकुंड साहिब, सिखों के दसवें गुरु, श्री गुरू गोविंद सिंह को समर्पित है। जिसका उल्लेख गुरु गोविंद सिंह जी की आत्मकथा में भी मिलता है। लेकिन इस जगह के बारे में काफी समय बाद लोगों को पता लगा। दसवें ग्रंथ के अनुसार, पांडु राजा इस जगह पर अभ्यास योग करते थे। संत सोहन सिंह, जो सिख धर्म का उपदेश दिया करते थे उन्हें एक बार उपदेश देने के दौरान गुरु गोविंद सिंह के तपस्या स्थल का ख्याल आया और उनके मन में इस जगह को खोजने की इच्छा जागृत हुई। काफी खोजबीन के बाद उन्हें अपने गुरू के पवित्र स्थल के दर्शन हुए।  

हेमकुंड साहिब की यात्रा

गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब की यात्रा शुरू होती है। यहां तक आप आराम से गाड़ी द्वारा पहुंच सकते हैं। पैदल जा रहे हैं तो हैंगिंग ब्रिज के जरिए अलकनंदा नदी को पार करके गोविंदघाट तक पहुंचा जा सकता है। गोविंदघाट से घांघरिया तक पहुंचने के लिए 13 किमी की खड़ी चढ़ाई वाले रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है। इसके पार करने के बाद बाकी 6 किमी का रास्ता थोड़ा और मुश्किल है। ऊंचे-नीचे, पथरीले रास्तों और बर्फ से ढ़के पहाड़ों से होते हुए हेमकुंड साहिब के दर्शन का एहसास ही अलग और खास होता है।

कैसे पहुंचे

रेलमार्ग- देहरादून का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जॉली ग्रांट है। जो गोविंदघाट से 292 किमी दूर है। जिसके लिए आपको यहां बसें और टैक्सी आसानी से मिल जाएंगी। 

हवाई मार्ग- अगर आप ट्रेन से सफर करने की प्लानिंग कर रहे हैं तो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो गोविंदघाट से 273 किमी की दूरी पर है। यहां से लगातार बसें चलती रहती हैं जिससे गोविंदघाट तक पहुंचा जा सकता है। 

कब आएं- चारों ओर पहाड़ों से घिरे होने की वजह से यहां ज्यादातर महीने बर्फ ही जमी रहती है और अक्टूबर महीने की शुरूआत में इसके कपाट बंद कर दिए जाते हैं। तो सुहावने मौसम के साथ ही यहां की खूबसूरती को देखने के लिए मार्च से जून के बीच की प्लानिंग बेहतर रहेगी।      


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