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इंटरनेशनल योग फेस्टिवल ही नहीं ऋषिकेश आकर इन जगहों को भी कर सकते हैं एक्सप्लोर

ऋषिकेश में शुरू हो चुका है इंटरनेशनल योगा फेस्टिवल। तो अगर आप इसमें शामिल होने जा रहे हैं तो अपने प्रोग्रम से वक्त निकालकर गरुड़चट्टी का भी प्लान कर लें जो बहुत ही खूबसूरत जगह है।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 01 Mar 2019 01:42 PM (IST)Updated: Fri, 01 Mar 2019 01:42 PM (IST)
इंटरनेशनल योग फेस्टिवल ही नहीं ऋषिकेश आकर इन जगहों को भी कर सकते हैं एक्सप्लोर
इंटरनेशनल योग फेस्टिवल ही नहीं ऋषिकेश आकर इन जगहों को भी कर सकते हैं एक्सप्लोर

धार्मिक आयोजनों के लिए लोग ज्यादातर हरिद्वार और ऋषिकेश तक जाते हैं। दिल्ली वालों के लिए तो ये जगहें वीकेंड ठिकाना हैं लेकिन इस बार बात हो रही है ऋषिकेश से 9 किमी आगे गरुड़चट्टी की। प्रकृति के सानिध्य में कुछ पल बिताना हो तो यहां एक बार जरूर जाएं।

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हरिद्वार से वाया ऋषिकेश गरुड़चट्टी

हर की पौड़ी, भक्तों का तांता, घाट किनारे उमड़ा हुआ जनसैलाब ज्यादातर ऐसा ही होता है ऋषिकेश का नज़ारा। यहां आध्यात्मिकता में सरोबार विदेशी भी खूब नज़र आते हैं। जिधर नज़र दौड़ाओ, भीड़ ही भीड़। रंग-बिरंगे सामानों से सजी दुकानें, फल-सब्जियां, गाय-बकरियां, बाइक सवार युवा और दपंती, सैलानी और भक्तगण...सभी लाइन से अनुशासित होकर चलते रहते हैं। 

दूर से दिखता राम झूला और लक्ष्मण झूला हमेशा अपने करीब बुलाने का प्रलोभन देता रहता है। तो अगर आप पहली बार ऋषिकेश गए हैं तो इस झूले को जरूर देखने जाएं। और उसके बाद बढ़ चले आगे क्योंकि आगे है बहुत ही खूबसूरत मंजिल गरूड़चट्टी, जो ऋषिकेश से करीब 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजाजी नेशनल पार्क के पास और गंगा नदी के किनारे, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह जगह आपको अच्छी लगेगी। यहां पहुंचने के लिए नीलकंठ मंदिर वाले रास्ते पर जाना होता है लेकिन हरे-भरे जंगल आपको रास्ता भटकने को मजबूर कर देंगे। मीलों लंबी जन-विहीन सड़कें, बगल में उदास से पहाड़, नीचे एक तरफ गहरी खाई। मंजिल की तरफ बढ़ते हुए वीरान सी चाय की दुकान मिलना बहुत ही आम है।  आगे चलकर आप पहुंचेंगे गरूड़ मंदिर जिसके पास में ही एक नदी भी बहती है। 

कुमारथा गांव की ट्रेकिंग

अगली सुबह कुमारथा गांव ट्रेक की सैर पर जाएं। पहाड़ी गांव कैसे होते हैं, इसका खूबसूरत उदाहरण आप सामने देख पाएंगे। रास्ते में कितने ही गांव देखने को मिलते हैं जिन्हें आप करीब से देख सकते हैं। पथरीले, संकरे पहाड़ी रास्ते से होते हुए करीब दो किमी की चढ़ाई करने के बाद गांव पहुंचेंगे। रंग-बिरंगे, चिपके हुए से घर, घरों के आगे सूखते अनाज, गायें और बकरियां अपनी धुन में मगन। गांव वाले भी सैलानियों को देखकर बहुत खुश होते हैं। गांव में रहना आसान तो नहीं कि लेकिन सुकून और शांति यहां से बेहतर कहीं मिल भी नहीं सकती। 

 

गरुड़चट्टी झरना

गरुड मंदिर से 3 किमी पहाड़ी पर ट्रेक करने पर गरुड़चट्टी झरना है। यह जगह बहुत खूबसूरत है और यहां करीब 50 फीट की ऊंचाई से पानी गिरता है। पानी का गर्जन, पंछियों का कलरव, विशाल पेड़ों की हवा से छेड़छाड़, समा ऐसा कि घंटों का समय यूं ही बीत जाता है। बारीश के समय इस जगह का सौंदर्य भरपूर होता है। 

नीलकंठ मंदिर

मोहनचट्टी से नीलकंठ मंदिर 9 किमी दूर था। इस मंदिर की पौराणिकता का उल्लेख आपने कई जगह सुना होगा। ऐसा मान्यता है कि इसी जगह पर शिव जी ने विषपान किया था, जिससे उनका गला नीला पड़ गया था। इसलिए इस मंदिर का नाम नीलकंठ है। आस्था की डोर कितनी दूर-दूर से लोगों को यहां ले आती है। ईश्वरीय सत्ता के आगे हम सब नतमस्तक हो जाते हैं।

गरुड मंदिर

कौतूहल था कि गरुड़ की पौराणिक महत्ता क्या है? गरुड़ हैं विष्णु जी के वाहन। ये नकारात्मक शक्तियों के नाशक हैं, इसलिए इनकी पूजा होती है। ऋषि कश्यप इनके पिता और विनीता मां थी। महाभारत की एक कथा के अनुसार, अर्जुन ने एक बार शिकार के समय ऐसा तीर छोड़ा कि जंगल में भीषण आग लग गई और सर्प जल कर स्वाहा हो गए। उन्हें सर्प-दोष लगा, जिसकी मुक्ति के लिए उन्होंने गरुड़ देव की अराधना की। पता चला कि यहां काल-सर्प दोष निवारण की विशेष पूजा होती है और मंदिर में स्थित तालाब में मछलियां चढ़ाई जाती है। रावण जब सीता का हरण करके लंका ले जा रहा था तो जटायु ने यहीं उसका मुकाबला किया था। मंदिर की शांति और पवित्रता का आभास ठंडे सुकून से भर देता है।

पारंपरिक खाना

हर जगह का जायका अलग होता है। विविधता का यही रूप तो बेमिसाल है। कोशिश रहती हैं कि हर बार कुछ नायाब चखने को मिले और हुआ भी ऐसा। दोपहर के खाने में दाल कुछ अलग लग रही थी। पूछने पर पता चला कि ये फानू है। चने की दाल पीसकर उसमें जखिया के पत्ते डाले जाते हैं, इसके अलावा कुछ खास मसाले भी इसमें पड़ते हैं। जखिया बड़ी मुश्किल से दूरदराज ढूंढ़ने पर मिलता है। स्वाद खास और स्वादिष्ट इतना कि क्या कहना...। कितने ही स्वाद इतनी यात्राओं के बाद मन में घुल जाते हैं। नदी किनारे लगती सर्द हवा से खुद को बचाते, शॉल में लपेटते ढेरों यादें वापसी में साथ ले आ सकते हैं।


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