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जिंदगी न मिलेगी दुबारा...एक स्वर्ग को देखने का सुख है यहां

इस प्राकृति ने कई इतने खुबसूरत सी चीजें हमें प्रदान की है कि हम अगर इसके करीब जाऐं तो हमें ये एहसास होगा कि स्‍वर्ग यही है। ऐसे ही एक स्‍वर्ग सी खुबसूरत जगह का हम आज जिक्र कर रहें हैं, वह है लेह लद्दाख । अगर आप घुमने का

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2015 01:18 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2015 02:53 PM (IST)
जिंदगी न मिलेगी दुबारा...एक स्वर्ग को देखने का सुख है यहां
जिंदगी न मिलेगी दुबारा...एक स्वर्ग को देखने का सुख है यहां

इस प्राकृति ने कई इतने खुबसूरत सी चीजें हमें प्रदान की है कि हम अगर इसके करीब जाऐं तो हमें ये एहसास होगा कि स्‍वर्ग यही है। ऐसे ही एक स्‍वर्ग सी खुबसूरत जगह का हम आज जिक्र कर रहें हैं, वह है लेह लद्दाख । अगर आप घुमने का प्रोग्राम बना रहें हैं तो लेह लद्दाख से सुन्‍दर जगह नहीं हो सकती ।
लद्दाख में कई स्थानों पर मिले शिलालेखों से पता चलता है कि यह स्थान नव-पाषाणकाल से स्थापित है। पहली शताब्दी के आसपास लद्दाख कुषाण राज्य का हिस्सा था। बौद्ध धर्म दूसरी शताब्दी में कश्मीर से लद्दाख में फैला। उस समय पूर्वी लद्दाख और पश्चिमी तिब्बत में परम्परागत बोन धर्म था। सातवीं शताब्दी में बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने भी इस क्षेत्र का वर्णन किया है। 17वीं शताब्दी में लद्दाख का एक कालक्रम बनाया गया, जिसका नाम ला ड्वाग्स रग्याल राब्स था। इसका अर्थ होता है लद्दाखी राजाओं का शाही कालक्रम। इसमें लिखा है कि इसकी सीमाएं परम्परागत और प्रसिद्ध हैं। 1850 के दशक में लद्दाख में यूरोपीय प्रभाव बढा और फिर बढता ही गया। भूगोलवेत्ता, खोजी और पर्यटक लद्दाख आने शुरू हो गये। भारत ने श्रीनगर-लेह सडक बनाई जिससे श्रीनगर और लेह के बीच की दूरी सोलह दिनों से घटकर दो दिन रह गई। हालांकि यह सडक जाडों में भारी हिमपात के कारण बन्द रहती है।

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लद्दाख में कहीं भी जाने के लिए सबसे पहले आपका लेह पहुंचना आवश्यक है. क्योकि, लेह कोई रेल नहीं जाती तो आप दो रास्तों से होकर जा सकते हैं पहला हिमाचल प्रदेश - मनाली और दूसरा जम्मू - श्रीनगर और कारगिल होते हुए। जम्मू - श्रीनगर के लिए भारतीय रेल सेवा भी है दोनों शहरो लेह के लिए बसे उपलब्ध है। लेकिन सड़क मार्ग से जाने के लिए आपको ये जानना आवश्यक है की मार्ग खुला है तथा भूस्खलन या हिमपात जैसी कोई समस्या नहीं हो। या फिर कभी कभी श्रीनगर में कर्फ्यू की स्थिति भी हो सकती है। उससे बचके लेह पहुँचने का तीसरा मार्ग है हवाई। दिल्ली और श्रीनगर से लेह के लिए नियमित उड़ाने है। जिनकी आप अग्रिम बुकिंग करके सड़क मार्ग में न जाने से बचा समय लेह में व्यतीत कर सकते हैं।

लद्दाख में कहाँ जाये और कैसे -

लेह शहर को केंद्र बनाकर लदाख को आसानी से चारभागों में विभाजित किया जा सकता है। आप चार दिशाओं में नुब्रा, कारगिल तथा ज़न्स्कर, पेन्गोंग तथा सोमिरिरी की तरफ जा सकते हैं लेह के पुराने बस स्टैंड से लगभग रोज कुछ स्थानीय छोटी बसें आस पास के गाँवों में जाती हैं वहीँ बसें शाम को या फिर अगली सुबह लौट के लेह वापस आती है ये बसें किसी भी मठ ( monastery ) जाने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। इसके अतरिक्त जम्मू-कश्मीर राजकीय बसें कारगिल, दिस्कित, पांगोंग, मनाली, इत्यादि भी जाती हैं क्योंकि इनमे से अत्यधिक बसें रोज नहीं जाती आपको इनके हिसाब से ही अपनी यात्रा योजना बनानी पड़ती है। अगर आप किसी टैक्सी से जाना चाहे तो, आपको बाजार में कई पर्यटन एजेंसियों आदि से भी बात कर सकते है, आमतौर पर उनके पास बहुत से लोग अकेले-दुकेले आते रहते है अगर आप इनसे बातचीत कर लें तो जब भी कोई टैक्सी इत्यादि जाए, वो आपको बता देते हैं ।

कहाँ रहे-

लेह में गर्मी के सीजन में यात्रियों का तांता लगा रहता है। होटल हर जगह की तरह यहाँ लेह में भी काफी महेंगे होते हैं लेकिन लेह में रहने वाले लोग यात्रियों तथा परिभ्रमण के अभ्यस्त हैं इसलिए यहाँ कई होम-स्टे की भी कोई कमी नहीं। जहाँ आप 400-500 रुपये में रह सकते हैं और कुछ घरों में ब्रेकफास्ट और डिनर की सुविधा भी है आप एडवांस में कुछ दिनों की बुकिंग करके यहाँ आने के बाद अपने सुविधानुसार अपने लिए रहने की उपयुक्त जगह ढूँढ सकते है। छोटी जगहों का भी यही हाल है हालांकि अकेले के लिए आपको कमरे कभी महेंगे भी पड़ सकते है. ऐसे में आप टेंट इत्यादि भी ले सकते हैं या फिर कुछ जगहों पर आप अपने टेंट भी लगा सकते हैं।

ऊंचाई पे ऑक्सीजन कम होने पे बीमार होने की समस्या

हिमालय में कहीं भी चढाई करते समय ये एक समस्या जरूर सामने आ सकती है और वो है high alititue sickness यानि की, ऊंचाई पे ऑक्सीजन कम होने की वजह से सांस लेने की समस्या, सिर में दर्द और कई अन्य तकलीफें। लदाख का लेह शहर 11000 ft की ऊंचाई पर स्थित है। लद्दाख पहुँचने के 2 ही रास्ते है, एक है हवाई रास्ता, और दूसरा, 2 सड़क मार्ग, एक श्रीनगर और दूसरा मनाली। जब आप सड़क मार्ग से यात्रा करेंगे तो आपको हाई altitude की समस्या कम होगी, क्योंकि आप ये अधिकतम ऊंचाई धीरे धीरे चढ़ते हैं। लेकिन यदि आप हवाई मार्ग से लेह पहुँच रहे हो तो आप पहले ही दिन चक्कर आने या बुखार जैसे लक्षण पा सकते है।

ऐसे में क्या करें?

पहला ये कि, पहुँचते ही घूमने जाने की बजाय पहले दिन अच्छे से नींद ले और आराम करें, इससे आपका शरीर भली भांति नयी ऊंचाई पर व्यवस्थित होगा तथा उसकी प्रक्रिया भी नियमित होगी।

ट्रैकिंग और अन्य एडवेंचर स्पोर्ट्स

लद्दाख में कई छोटे-बड़े ट्रेक हैं जिनमे से आप आपनी सुविधा एवं समयानुसार कोई भी ट्रेक चुन सकतें है। मगर ध्यान रखें कि लदाख में सामान्यत कोई भय न होने के बाद भी, अकेले ट्रेक करना उचित नहीं होग। क्योंकि कई जगहों पर आपको मीलों तक कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा, इसलिए लेह पहुंचने के बाद आप या तो स्थानीय ट्रैकिंग संस्थाओं के साथ ट्रेक कर सकते हैं अथवा कुछ लोग जो खुद ट्रैकिंग की योजना बनाकर जा रहे हों उनके साथ हो लें।

काम करना या फिर स्वयंसेवी विकल्प

अगर आप लद्दाख कई हफ़्तों या महीनों के लिए जा रहे हों तो आप वहां काम भी कर सकते हैं। जैसे कि स्कूल में इंग्लिश या गणित पढ़ाना। किसी फार्म की देखभाल करना इत्यदि। आप वहां किसी ट्रैकिंग एजेंसी में गाइड भी बन सकते है। इन सभी के लिया आप लद्दाख पहुँच कर स्थानीय लोगो से संपर्क करें।

सुरक्षा तथा कैसे रखें संपर्क

लद्दाख में कई बार कई दिनों तक बिजली नहीं आती, दूर की जगहों जैसे की नुब्रा तथा ज़न्स्कर इत्यादि में फ़ोन भी नहीं चल्ते। फिर भी लद्दाख भारत भर की कई जगहों से ज्यादा सुरक्षित है। स्थानीय लोग बड़े ही भले तथा मददगार हैं इसलिए अभी भी किसी भी समस्या के समय आप यदि मूल निवासियों से सहायता मांगे तो वो हमेशा आपकी मदद करेंगे।

आप यदि पोस्टपेड फ़ोन लेके जायें तो कई सर्विस प्रोवाइडर्स जैसे एयरटेल, वोडाफ़ोन इत्यादि का फ़ोन काम करेगा। अगर आप लम्बे समय तक रहना चाह रहे हो तो वहीँ का बीएसएनएल फ़ोन ले लें। ज्यादातर बाजारों में इन्टरनेट कैफ़े भी हैं तो आप उनके जरिये अपने प्रियाजनो से संपर्क रखें। तथा स्थानियों लोगो से जान पहचान बनाये और उनके बारे में जाने। आप शायद ही अकेले महसूस करेंगे और आपकी यात्रा अत्यंत सफल रहेगी।

[ प्रीति झा ]


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