प्रकृति के भीगे भीगे नजारों का मजा लेना है तो आयें सिक्किम
चलिए आज चलते हैं सिक्किम के खूबसूरत पर्यटन स्थलों की सैर पर।
बंजाखरी वॉटरफॉल
गंगटोक शहर से मात्र 10-12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस वॉटरफॉल के नज़दीक पहुंचने का रास्ता भी बहुत सुंदर है। पहाड़ी घुमावदार रास्तों से होते हुए इस वॉटरफॉल तक पहुंचा जाता है। यह रंका मोनेस्ट्री के रास्ते में पड़ता है। यह पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है। बंजाखरी वॉटरफॉल के पीछे नेपाली समुदाय के बीच प्रचलित एक कहानी है। यह कहानी इसके नाम से जुड़ी है। वन का अर्थ है-जंगल और नेपाली भाषा में जाखरी का अर्थ है-साधु। स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां जंगल में एक साधु तपस्या करते थे। उनके नाम पर ही इस वॉटरफॉल का नाम बंजाखरी पड़ा है। इस जगह को आप एक अम्यूजमेंट पार्क के रूप में भी देख सकते हैं।
जमा हुआ झरना!
अगर आप नवंबर-दिसंबर में गंगटोक जाएंगे तो आपको नजदीक ही कुछ ऐसा देखने को मिलेगा, जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी। जी हां, यहां है फ्रोजन वॉटरफॉल यानी जमा हुआ झरना। यह नजारा गंगटोक से थोड़ा ऊपर नाथुला पास की ओर जाने पर बीच में देखने को मिलता है। आमतौर पर प्रकृति के ऐसे नजारे उन खुशनसीब लोगों को देखने को मिलते हैं जो कि हिमालय की ऊंचे-ऊंचे शिखरों पर ट्रेकिंग करने जाते हैं। लेकिन सिक्किम में ये नजारे एक आम टूरिस्ट को भी देखने को नसीब हो जाते हैं और वह भी बिना मुश्किल ट्रेकिंग किए हुए। छंगू लेक से ऊपर जाने पर बाबा हरभजन सिंह की समाधि से लगा हुआ ही एक वॉटरफॉल इन दिनों जम कर बर्फ में तब्दील हो जाता है। आप बड़ी आसानी से सड़क मार्ग से अपनी गाड़ी दौड़ाते हुए यहां तक पहुंच सकते हैं। यह वॉटरफॉल सफेद शीशे की तरह चमक रहा होता है। इससे निकालने वाली पानी की धाराएं भी जम जाती हैं। भारत में आम टूरिस्ट को यह अद्भुत नजारा केवल यहीं देखने को मिलता है। इसे आप कभी भुला नहीं पाएंगे।
अविश्वसनीय कहानी बाबा हरभजन टेंपल की
कुछ कहानियां इतनी अविश्वसनीय होती हैं कि जब तक उन्हें अपनी आंखों से न देख लिया जाए, विश्वास नहीं होता। लेकिन भारत ऐसी हजारों कहानियों की धरती है। बाबा हरभजन की समाधि भी ऐसी ही एक कहानी का जीता-जागता उदाहरण है। गंगटोक से 25 किलोमीटर दूर छांगू लेक और नाथुला बॉर्डर के बीच मे पडऩे वाली यह समाधि गवाह है उस विश्वास की, जिसे आज भी यहां तैनात सैनिक सच मानते हैं। बात 1968 की है। हरभजन सिंह पंजाब रेजिमेंट के एक सिपाही थे। उनकी नियुक्ति यहां इंडो-चाइना बॉर्डर पर थी। एक दिन हरभजन सिंह पेट्रोलिंग करते हुए पानी की एक तेज धारा में बह गए और उनकी वहीं मृत्यु हो गई। कुछ दिन बाद वह अपने एक साथी के सपने में आए और समाधि बनाने की बात कही। सेना के जवानों ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए मिलकर यहां उनकी समाधि बनाई। कहते हैं कि बाबा हरभजन की आत्मा आज भी बॉर्डर पर पेट्रोलिंग करती है और उनकी उपस्थिति का अनुभव हिंदुस्तानी ही नहीं, चीनी सैनिकों को भी होता है। आज इस घटना को कितने साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी यहां के लोग मानते हैं की बाबा जीवित हैं और यहां उनका कमरा बना हुआ है जिसमें उनकी यूनिफॉर्म रोज प्रेस करके लटकाई जाती है जो कि अगले दिन पहनी हुई हालत में मिलती है। समुद्र तल से 13000 फीट की ऊंचाई पर बाबा हरभजन की समाधि के दर्शन किए जा सकते हैं। चारों ओर से पहाड़ों से घिरी यह समाधि एक रमणीक स्थल है। यहां सैलानियों के लिए एक कैफे और सोवेनियर शॉप भी मौजूद है।
छांगू लेक
इसका एक नाम तसोमगो लेक भी है। यह एक ग्लेशियर लेक है। गंगटोक से लगभग 35 किलोमीटर दूर नाथुला बॉर्डर की ओर जाने वाली सड़क जवाहर लाल नेहरू रोड पर समुद्र तल से 12000 फीट की ऊंचाई पर बनी एक खूबसूरत लेक है। इसका आकर अंडाकार है और गहराई लगभग 50 फीट है। इसके चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ हैं। इन्हीं पहाड़ों के बर्फ के पिघलकर आने वाले पानी से यह लेक बनी है। सर्दियों के मौसम मे यह लेक जम भी जाती है। यहां जाने के लिए एक दिन पहले जिला प्रशासन से अनुमति लेनी होती है। आप जब गंगटोक जाएं तो अपने होटल वाले को पहले ही दिन सूचित कर दें। गंगटोक के सभी होटल आने वाले सैलानियों के लिए परमीशन का इंतजाम कर देते हैं। अपने साथ 2 फोटो और पहचान पत्र ले जाना न भूलें। यहां जाने के लिए सुबह जल्दी निकलें, क्योंकि इतनी ऊंचाई पर होने पर दोपहर के बाद यहां मौसम अचानक बदल जाता है। छांगू लेक का मुख्य आकर्षण है याक की सवारी। आप जब यहां जाएं, तो याक की सवारी का आनंद ज़रूर उठाएं।
नाथुला बॉर्डर
नाथुला पास समुद्र तल से 14,140 फीट की ऊंचाई पर पड़ता है। चीन के साथ भारत की यह एक व्यापारिक सीमा है। इस पास के दूसरी ओर तिब्बत पड़ता है। यह रास्ता प्राचीन सिल्क रूट के नाम से भी जाना जाता था। भारत-चाइना के बीच यह एकमात्र बॉर्डर है, जहां तक टूरिस्ट पहुंच सकते हैं। दोनों ओर सेना तैनात रहती है। आप इस बॉर्डर पर जाकर चीनी सैनिकों के साथ हाथ मिला सकते हैं, फोटो खिंचवा सकते हैं।
हनुमान टोक
गंगटोक में कई दार्शनिक स्थल हैं लेकिन उन सबके बीच हनुमान टोक सबसे अलग है। यह सिर्फ एक मंदिर नहीं है, बल्कि एक ऐसा पॉइंट है, जहां से खूबसूरत कंचनजंघा चोटियों के दर्शन सबसे साफ होते हैं। इसीलिए गंगटोक आने वाला हर सैलानी यहां आना नहीं भूलता। शहर से 25 किलोमीटर पूर्व में स्थित यह स्थान समुद्र तल से लगभग 11000 फीट की ऊंचाई पर है। यहां हनुमानजी का एक सुंदर मंदिर है।
लाल बाजार में शॉपिंग
गंगटोक मे शॉपिंग करने के कई विकल्प मौजूद हैं। महात्मा गांधी रोड पर पूरा का पूरा मार्केट सजा हुआ है। अगर आप थोड़ी बचत करना चाहते हैं तो महात्मा गांधी रोड के आखिरी सिरे तक चहलकदमी करते हुए चले जाएं। वहीं पर लाल बाज़ार है, जो कि यहां के लोगों का लोकल बाजार है। इस बाजार से लिड वाला टी मग जरूर खरीदें। यह सिक्कमी मग यहां की पहचान है। गंगटोक से आप तिब्बती कार्पेट खरीद सकते हैं। यहां भूटिया लोग हाथ से बने ऊनी कपड़े बेचते हैं। गंगटोक से तिब्बती बुद्धिस्ट पेंटिंग्स जिन्हें 'तांगकस' कहते हैं खरीद सकते हैं। यहां के लोग मानते हैं कि ये पेंटिंग्स घर में गुडलक लेकर आती हैं। गंगटोक मे बनी लगभग सभी मोनेस्ट्री के बाहर एक छोटा सा बाजार सजा होता है, जहां से आप हैंडीक्राफ्ट खरीद सकते हैं। गंगटोक से सिक्किम के इकलौते चाय बागान टेमी टी गार्डेन की ऑर्गेनिक चाय भी खरीदी जा सकती है, जहां की चाय पूरे विश्र्व में मशहूर है।
सिक्किम के सतरंगे स्वाद
सिक्किम घर है कई जातियों का जिनमें प्रमुख हैं नेपाली, भूटिया, तिब्बती और लेपचा जनजाति। ऐसे में यहां इन सभी के खाने चखने को मिल जाते हैं। सिक्किम हिमालय का हिस्सा है और भारत का पहला ऑर्गेनिक फार्मिंग राच्य भी, इसलिए यहां के खाद्य पदाथरें में शाक-सब्जियों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में होता है। यहां पर रहने वाले लोग नेपाल, भूटान और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों से आकर बसे हैं इसलिए इनके खाने भी उसकी खुशबू लिए हुए हैं। यहां मुख्य रूप से मोमो (स्टीम्ड डंपलिंग), टमाटर का अचार, थूपका (नूडल सूप), किन्मा करी (फर्मेंटेड सोयाबीन), गुंड्रूक आंड सींकी सूप (फर्मेंटेड वेजिटेबल सूप), गुंड्रूक का अचार, ट्रेडीशनल कॉटेज चीज, छुरपई का अचार, छुरपई-निंग्रो करी, सेल रोटी (फर्मेंटेड राइस प्रोडक्ट), शिमी का अचार, पक्कु (मटन करी), आंड मेसू पिकल (फर्मेंटेड बंबू शूट) आदि मिलते हैं। इनके खानों में भांति-भांति के मीट, मछली और साग शामिल हैं।
सैर: कैसे और कब?
गंगटोक पहुंचने के लिए रेल न्यू जलपाईगुड़ी तक जाती है। उससे आगे का रास्ता सड़क मार्ग से 4 से 5 घंटे में तय किया सकता है। बागडोगरा एयरपोर्ट से हेलीकॉप्टर द्वारा बड़ी आसानी से यह सफर मात्र 35 मिनट में तय किया जा सकता है। इसके लिए पहले से बुकिंग करनी होती है।
लेखन: डॉ. कायनात काजी