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कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा

रंगों का सैलाब, कोसों तक चमचमाती श्वेत रेत, धंसती उभरती गद्देदार धरती, उस पर खिला पूरा चांद और हवाओं में गूंजती मधुर लोक धुनें... यह नजारा कहता है- मुझे देखो, मैं अद्भुत हूं, मैं कच्छ हूं...

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2015 03:07 PM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2015 03:15 PM (IST)
कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा

रंगों का सैलाब, कोसों तक चमचमाती श्वेत रेत, धंसती उभरती गद्देदार धरती, उस पर खिला पूरा चांद और हवाओं में गूंजती मधुर लोक धुनें... यह नजारा कहता है- मुझे देखो, मैं अद्भुत हूं, मैं कच्छ हूं...

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गुजरात के कच्छ में आयोजित रण-उत्सव इस बार 23 फरवरी, 2016 तक चलेगा। वैसे, जनवरी 2001 में कच्छ में आए भूकंप के बाद किसने कल्पना की थी कि यह क्षेत्र आज का पसंदीदा पर्यटन स्थल बन जाएगा। भूकंप और

तूफान के थपेड़ों को इस क्षेत्र ने कई बार सहा है। आज कच्छ निखरकर जगमगा रहा है। रण-उत्सव के दौरान यहां पर्यटकों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है। यहां टेंटों के अलावा, स्थानीय लोगों के घरों में भी ठहरने-खाने आदि की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। यह उत्सव सैकड़ों स्थानीय लोगों, कलाकारों और शिल्पकारों, टूर और ट्रैवल एजेंसियों की आय का जरिया है, वहीं कई अनिवासी भारतीयों के लिए भारत-भ्रमण का एक खूबसूरत कारण भी

बन जाता है। असमान मौसम, परती जमीन, खारा पानी, दूर तक रेगिस्तान, धूल भरी गर्म हवाएं... पर यहां के लोगों की जीवटता देखिए, प्रकृति की रुक्षता को इन्होंने अपनी कला से रंग-बिरंगा बना दिया है। मिट्टी के एक छोटे से कलश से लेकर यहां के घरों तक में यहां के लोगों की कलाप्रियता दर्शनीय है। उत्कृष्ट मिरर वर्क और चित्रों से सजी दीवारें, कच्छी कढ़ाई, एप्लीक वर्क और बांधनी से संवरे इनके मोहक परिधान और सॉफ्ट फर्नीशिंग। चटख रंग इनके जीवन में रंग भरते हैं शायद। हर कहीं बड़े पैमाने पर चटख रंगों का ही प्रयोग किया

जाता है। यहां की काष्ठकला अनूठी है, तो यहां के जेवरातों की अपनी ही शान है। चांदी और बनावटी गहनों की डिजाइनिंग बेमिसाल है। इनका खानपान भी विविधता भरा, चटपटा, तीखा और मीठा होता है। उतनी ही गहराई

है इनके गीत-नृत्यों और संगीत में। इस क्षेत्र में कई जनजातियां और घूमंतू जातियां- जनजातियां हैं, जिनके रहन-सहन और पहनावे में फर्क है। कच्छ में आप दुर्लभ वन्य प्राणियों और तकरीबन 200 प्रजातियों के प्रवासी

पक्षियों, खासकर फ्लोरिकन, हौबरा बस्टर्ड, फ्लेमिंगो को देखने का आनंद ले सकते हैं।

हम अपनी यहां की यात्रा की शुरुआत भुज से करते हैं, जो कि इस प्रांत का आधार शहर है। संस्कृति और कलाओं की दृष्टि से समृद्ध भुज में

कई दर्शनीय स्थल है, यहां से रण ऑफ कच्छ

ज्यादा दूर नहीं है। इसी मुख्यालय में वाइल्ड

ऐस सैंक्चुअरी, कच्छ डेजर्ट वाइल्डलाइफ

सैंक्चुअरी, नारायण सरोवर सैंक्चुअरी, बनी

ग्रासलैंड रिजर्व आदि है। इसके आसपास कई

दर्शनीय गांव जैसे टेरा फोर्ट विलेज, केरा फोर्ट

विलेज, लखपत आदि हैं। लखपत गुरुद्वारा

साहिब बहुत मशहूर है। पुरातत्व विभाग ने

इस गुरुद्वारा को संरक्षित स्मारक घोषित किया

है। भुज में सर्वप्रथम स्वामीनारायण मंदिर की

स्थापना वर्ष १८२२ में की गई थी। यहां स्थित

१८वीं सदी में निर्मित आईना महल के हॉल की

दीवारों पर जटित शीशे का सौंदर्य देखते ही

बनता है। इसी के पास स्थित है प्राग महल।

भुज फिल्म निर्माताओं को भी बहुत लुभाता है।

संजय लीला भंसाली की फिल्म हम दिल दे

चुके सनम, जे.पी. दत्ता की रिफ्यूजी और फिर

आमिर खान की लगान की शूटिंग भुज में की

गई थी। कच्छ की खाड़ी पर स्थित कांडला

भारत का एक प्रमुख वाणिज्यिक बंदरगाह है।

मांडवी मोहक समुद्र तट है। यहां लकड़ी के

जहाज बनाने का उद्योग है। कच्छ के राजा

महाराव श्री खेंगारजी ने अपने पुत्र विजयराज

के लिए यहां ग्रीष्मकालीन महल विजय विलास

पैलेस का निर्माण १९२० में शुरू करवाया

था, जो वर्ष १९२९ में बनकर पूरा हुआ। लाल

बालुई पत्थरों से निर्मित इसका वास्तुशिल्प

सराहनीय है। अतिप्राचीन धरोहरों के अलावा,

यहां के किले, स्मारक, बांध, नैसर्गिक सौंदर्य

और विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक

को देखना, समझना अपने आप में मूल्यवान

अनुभव है। यहां का हस्तशिल्प उल्लेखनीय

है। अजरखपुर अपने इतिहास और हस्तशिल्प

विशेषकर बांधनी के लिए मशहूर है।

रण उत्सव के दौरान धोरोदो में निर्मित यहां के

स्थानीय हट्स अर्थात भुंगा की तर्ज पर बने हुए

तंबुओं में दो दिन गुजारना, अलसुबह रण की

सैर, दूर तक चमचमाती श्वेत रेत, जो वास्तव

में नमक है, उस पर उगते सूर्य की लालिमा रंगों

का गजब संसार रचती है, आकाश में हल्की-

सी ध्वनि करते उड़ान भरते पक्षी, दूर तक

फैला रूपहलापन, हां, यह कच्छ है, जादुई...,

अद्भुत...।

राजश्री

कच्छ जाएं, तो रखें इन बातों का ध्यान...

भुज से कच्छ में कहीं भी जाने के लिए तमाम सुविधाएं

हैं। ध्यान रहे कच्छ काफी फैला हुआ और वृहत क्षेत्र

है। अत: बिना योजना और मार्गदर्शन के न घूमें।

छोटा रन, कच्छ वन्य प्राणी उद्यान, कच्छ संग्रहालय,

आईना महल, प्राग महल, भारतीय संस्कृति दर्शन,

पक्षी अभयारण्य, रोहा किला, विजय विलास महल,

हाजीपीर, ढोलावीरा, माता ना मढ़, रुद्रमाता

बांध, काला डुंगर में स्थित दत्तात्रेय मंदिर, लखपत,

नारायण सरोवर, मांडवी, भुज, जैनाबाद आदि

उल्लेखनीय पर्यटन स्थल हैं। रण ऑफ कच्छ ही

आपके लिए सबसे खूबसूरत दृश्य उपस्थित कर

देता है।

यहां कैमल या जीप सफारी कीजिए। टेंटो में ठहरिए

और सुबह तकरीबन साढ़े चार या पांच बजे उठकर

मॉर्निंग वॉक करते हुए यहां के अद्भुत सूर्योदय

का नजारा आपके जीवन का एक यादगार लम्हा

साबित होगा।

कैसे पहुंचे

कच्छ का प्रमुख शहर भुज है।

भुज में हवाई अड्डा है, जहां से

मुंबई के लिए उड़ानें हैं। न्यू

भुज रेलवे स्टेशन और

निकटतम गांधीधाम

रेलवे स्टेशन भारत के

प्रमुख शहरों से रेल

के जरिए जुड़ा हुआ

है। कच्छ गुजरात सहित

भारत के अन्य राज्यों के

प्रमुख शहरों से भी अच्छी

तरह जुड़ा हुआ है। कांडला यहां

का प्रमुख बंदरगाह और हवाई

अड्डा है।

कब जाएं

अक्टूबर से लेकर मध्य मार्च तक

सर्वश्रेष्ठ समय है। इन दिनों यहां की भोर

और रातें काफी ठंडी होती है, मगर

दोपहर में धूप तेज रहती है।

ध्यान रखें

पाकिस्तान के निकट होने के

कारण यह सीमावर्ती क्षेत्र है।

यहां के कई गांवों में जाने

के लिए अनुमति लेनी

पड़ती है।

क्या खरीदें

कच्छ अपने उत्कृष्ट

हस्तशिल्प के लिए

मशहूर है। नायाब कच्छी

कढ़ाई, एप्लीक वर्क,

मिरर वर्क, बांधनी से

सजे परिधान व सॉफ्ट

फर्नीशिंग, चांदी के

जेवरात व अन्य उपयोगी और सजावटी समान और

हल्के-फुल्के फर्नीचर तथा कई तरह के सजावटी

सामान, वॉल हैंगिंग, कढ़ाई की हुई रजाई, झूले

व इसके सामान, कठपुतलियां, कपड़े के खिलौने,

जूतियां, कढ़ाई किए हुए फुटवियर आदि खरीद सकते

हैं। कुछ जगहों पर बेहतरीन पटोला सिल्क साड़ियां

भी मिल जाती हैं।

खानपान

पूरा क्षेत्र शाकाहारियों के लिए खूब मजेदार है। यद्यपि

यहां भारत के अन्य कई प्रांतों के विपरीत व्यंजनों में

मीठा डालने का चलन है, जैसे- कढ़ी और ज्यादातर

सब्जियों में मीठा डाला जाता है। मगर कई तीखी

चटनियां, कच्चे लहसून का तीखापन, छाछ, खिसू,

मसाला खिचड़ी, बाजरे का रोटला और कई दालें

अलग मजा देती हैं। दूध के कई पकवान तैयार किए

जाते हैं। यहां भी तरह-तरह के नमकीन और नाश्तों

का प्रचलन है।


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