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    एक ही जगह लेना है पहाड़, समुद्र, झील और बैक वाटर्स का मज़ा, तो निकल पड़ें कोल्लम की ओर

    केरल के दक्षिणी हिस्से में बसा है कोल्लम। यहां मौजूद हैं जीवन के विविधतापूर्ण रंग। एक तरफ विशाल जोशीला समुद्र है तो दूसरी ओर बैकवाटर्स भी हैं। चलते हैं कोल्लम के खास सफर पर..

    By Priyanka SinghEdited By: Updated: Wed, 22 Jan 2020 02:57 PM (IST)
    एक ही जगह लेना है पहाड़, समुद्र, झील और बैक वाटर्स का मज़ा, तो निकल पड़ें कोल्लम की ओर

    केरल आने के बाद आपको यहां के हर शहर में एक अलग रंग देखने को मिलेगा। कुछ ऐसा ही खूबसूरत है कोल्लम। जहां आधुनिक जीवनशैली और प्राचीन इतिहास को एक साथ जीता हुआ देख सकते हैं। यहां पर ब्रिटिश भारत के इतिहास की कई पहचान हैं तो उनके साथ-साथ विकसित हुई आधुनिक भारत और विशेषकर आधुनिक केरल की छवि तैयार करने वाले प्रतीक भी हैं। यहां आने के बाद आपका ध्यान इसकी प्राचीनता खींचेगी। इसके बाद आपको यह जगह अपनी प्राकृतिक बहुस्तरीय सुंदरता के कारण लुभा लेगी। आप एक ही जगह पहाड़ी, समुद्र, झील और बैक वाटर्स सबका आनंद ले सकते हैं।

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    रोचक है इतिहास

    कोल्लम का इतिहास बहुत रोचक है। रोमन साम्राज्य के दिनों से ही यह स्थान काफी प्रसिद्ध रहा है। उस समय प्रमुख व्यापारिक केंद्र होना इसका कारण था। दरअसल, प्राचीन 'स्पाइस रूट' का प्रमुख भाग होने के कारण इसे खूब महत्व मिलता रहा। चीन के साथ व्यापार संबंध होने के कारण दोनों ही स्थानों ने एक-दूसरे के यहां अपने केंद्र खोले, जैसे आजकल के दूतावास होते हैं। इब्ने-बतूता ने इस स्थान का जिक्र चीन के साथ व्यापार करने वाले पांच प्रमुख बंदरगाहों में से एक के रूप में किया है। यूं तो यूरोप के साथ इसका नाता पुराना था, लेकिन 1502 ई. में पुर्तगालियों ने कोल्लम में पहला व्यापार केंद्र स्थापित कर यूरोपीय बस्तियों की नींव रखी। इसके बाद डच और अंग्रेजों ने भी अपने व्यापारिक केंद्र बनाए। बाद में त्रावणकोर के राजा ने अंग्रेजों से संधि की और उन्हें अंग्रेजी सेना रखने का अधिकार मिल गया। इस संबंध ने कोल्लम को एक व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित किया।

    लोकजीवन के सहज रंग

    यह जगह व्यापार वाणिज्य के एक केंद्र के रूप में विकसित हुआ, इसलिए यहां के स्थानीय लोगों का संपर्क अलग-अलग भौगोलिक और सामाजिक मान्यता वाले लोगों से हुआ, जिसने इसकी वर्तमान सांस्कृतिक विविधता का पोषण किया। वैसे, यहां घूमते हुए प्राकृतिक छटा के अतिरिक्त जो बात ध्यान खींचती है, वह है यहां के स्थानीय निवासियों का सहज, उन्मुक्त और खुशनुमा जीवन। यहां ठहराव भरे जीवन का आनंद लेते लोगों के होठों पर मुस्कान है और पर्यटकों के स्वागत के लिए खुला दिल है। अपने खेतों में या फिर सड़क आदि पर कठिन श्रम करते हुए भी उनका इस तरह खुश दिखना किसी और लोक की वस्तु लगती है। शाम होते ही समूचा कोल्लम समुद्र की ओर चल पड़ता है, जहां जीवन के हर रंग देखने को मिलते हैं। यहां आएं तो इस सुहावने रंग को देखना और उसमें देर तक डूबने का वक्त जरूर निकालें।

    पुनालूर: लुभावना सौंदर्य

    पुनालूर कोल्लम से लगभग 40 किमी दूर है। यह अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। कोल्लम शहर से पुनालूर की ओर बढ़ते हुए आप प्रकृति के सौंदर्य को महसूस करते जाएंगे। दोनों ही स्थानों के बीच पैसेंजर ट्रेन चलती है। अपेक्षाकृत धीमी गति से चलने वाली ये गाडि़यां दोनों ओर बसे जीवन को बिना किसी पर्दे के हमारे सामने रखती है। रास्ते में अब भी पुराने बने हुए पुलों के निशान मिलते हैं। पुनालूर की असल पहचान यहां के एक पुल से है। दरअसल, यह पुल लटका हुआ यानी एक हैंगिंग ब्रिज है। अंग्रेजों ने इसे वर्ष 1877 ई. में बनवाया था। इस झूलते हुए पुल पर गाडि़यां भी चलती थीं।

    केरल का गेटवे: क्विलॉन

    पुराने समय में कोल्लम, क्विलॉन के नाम से जाना जाता था। कोल्लम रेलवे स्टेशन पर अभी भी यह नाम चलता है। अंग्रेजों के समय यह नाम काफी प्रचलित हुआ। कोल्लम संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है काली मिर्च! मालाबार तट के सबसे पुराने बंदरगाहों में से एक यहां भी है, इसलिए इसे 'केरल का गेटवे' कहा जाता था।कैसे जाएं, कब जाएं?

    कोल्लम रेल के माध्यम से देश के अन्य भागों से जुड़ा हुआ है। यहां सड़क मार्ग से भी जाया जा सकता है। नजदीकी हवाई अड्डा तिरुवनंतपुरम लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है। एलेप्पी से राष्ट्रीय जलमार्ग के रास्ते भी कोल्लम तक पहुंचा जा सकता है। यहां पर रहने के लिए लॉज से लेकर फाइव स्टार होटल तक हैं। झील में खड़े हाउसबोट और रिसोर्ट का आनंद अतुलनीय है। यहां आप किसी भी मौसम में जा सकते हैं।