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काली मिर्च नहीं..काला सोना है यह मसाला, जिसे ढूंढ़ते हुए पुर्तगाली पहुंचे थे भारत

भारतीय रसोई का खास मसाला...काली मिर्च, स्वाद में तीखा जरूर होता है लेकिन खाने को जायकेदार बनाने में इसका कोई सानी नहीं। तो जानेंगे आज काली मिर्च के रोचक सफर के बारे में...

By Priyanka SinghEdited By: Published: Tue, 29 Jan 2019 04:01 PM (IST)Updated: Fri, 01 Feb 2019 08:40 AM (IST)
काली मिर्च नहीं..काला सोना है यह मसाला, जिसे ढूंढ़ते हुए पुर्तगाली पहुंचे थे भारत

जिन मसालों का आज हम अपने किचन में इस्तेमाल करते हैं, उनकी भी अपनी एक कहानी है। मसालों की यात्रा भी दुनिया की कहानी से कम पुरानी नहीं है। इन कहानियों से अर्थतंत्र, संस्कृति, राजनीति और साम्राज्यों की ताकत की कहानियां भी जुड़ी हैं..यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर भारत के मसालों की ख्याति यूरोप तक नहीं फैली होती तो शायद 16वीं सदी में पुर्तगाली व्यापारी और जहाजी वास्को डिगामा भारत नहीं आया होता। उनके पीछे पीछे फ्रेंच और अंग्रेज भी नहीं आए होते। ये मसाले थे, जिन्होंने मध्यकाल में भारत की यूरोपीय देशों के बीच एक अलग तरह की छवि बनाई, तो ये मसाले ही थे, जिनके व्यापार पर एकाधिकार के लिए विदेशी ताकतें अपने देश तक पहुंचीं, फिर उनकी महत्वाकांक्षाओं ने इस तरह विस्तार लिया कि उन्होंने इस देश के कुछ हिस्सों में अपना उपनिवेश स्थापित कर लिया। अपने वाइसराय यहां तैनात कर दिए। इसी में एक मसाला है- काली मिर्च। आपको लगता होगा कि यह छोटा-सा काला दाना क्या करता होगा, पर यकीन मानिए कि एक जमाने में यह काली मिर्च दुनिया भर में ताकत और पैसे का प्रतीक बनकर उभरी थी।

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काला सोना: यूरोपीय इसे काला सोना भी कहते थे। आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा काली मिर्च का उत्पादन हम करते हैं, लेकिन अफसोस कि यह उत्पादन घट रहा है और मांग तो खैर कभी इसकी कम होने वाली ही नहीं। केरल आज भी दुनिया का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां दुनियाभर के सबसे ज्यादा मसालों की खेती होती है और सबसे ज्यादा मसालों का व्यापार। हम उस मसाले पर ही ध्यान केंद्रीत करते हैं, जो आज भी मसालों का राजा है, अगर इसे मसाले से निकाल दें, तो मसालों की ठसक, स्वाद सब फीका पड़ जाता है। रंग बेरंग हो जाता है। यह है काली मिर्च का रुतबा। यह महत्व इसे यूं ही हासिल नहीं हो गया, बल्कि यूं कहें कि सैकड़ों सालों से इस मसाले के पारखियों और इस पर शोध करने वालों ने इसे इतने काम का माना है कि पूछिए मत। यह केवल रसोई का ही राजा नहीं है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता से लेकर एयर प्यूरीफिकेशन के काम में इसका महत्व साबित हो चुका है।

किसकी देन: काली मिर्च क्या उत्पत्ति कहां से हुई, कहां से यह भारत आई या क्या यह दुनिया को भारत की देन है? ये सब सवाल सैकड़ों सालों से पूछे जाते रहे हैं। हमारे घूमंतू पूर्वज इसे भारत तक लेकर आए। कुछ केरल का गरम और नम वातावरण मसालों की खेती के लिए सैकड़ों सालों से इसकी पैदावार के लिए आदर्श बना रहा। कुछ यह भी मानते हैं कि मालाबार तट पर काली मिर्च की पैदावार अधिक होती है, यकीनन इसके बीज समुद्र के साथ बहते हुए यहां आए होंगे और जमीन के संपर्क और यहां की आबोहवा का साथ पाकर खूब फले-फूले। जो भी हो, लेकिन दुनिया यही मानती है कि काली मिर्च मूल रूप से भारत की ही देन है। मध्यकाल में हमारी सबसे बड़ी पहचान यही मसाला रहा है, लेकिन यह भी पक्का है कि जिन मसालों को आज हम किचन का ही अनिवार्य अंग मानते हैं, उनका सबसे पहले उपयोग हमारे देश में चरक और सुश्रुत जैसे आयुर्वेद के जन्मदाताओं ने अचूक दवाइयों के रूप में किया था। आज भी आयुर्वेद पूरी तरह से इन्हीं मसालों से चिकित्सा के आधार पर टिका हुआ है।

काली मिर्च की यात्रा: काली मिर्च के फायदे इस कदर हैं कि हम अगर लिस्ट बनाएं तो हैरान रह जाएंगे। लेकिन हम यहां काली मिर्च की शानदार यात्रा के बारे में ही जानते हैं। केरल के पहाड़ी इलाकों में काली मिर्च के मध्यम दर्जे की पत्तियों वाले पेड़ बहुतायत से हैं। वहां लोग अपनी बड़ी-बड़ी जमीनों पर इसकी फार्मिंग का काम करते हैं। यह काम इतने बड़े पैमाने पर होता है कि गांव, शहरों और लाखों लोगों की जीविका और जीवन इससे चलता है। ऊंचे-ऊंचे पेड़ों पर ये पत्तियों के साथ हरे दानों के गुच्छों के रूप में लटकती रहती हैं। पेड़ पर चढ़कर लोग इन गुच्छों को तोड़ते हैं और फिर पैरों या मशीनों के जरिए इन छोटे हरे दानों को अलग किया जाता है। कड़ी धूप में इन्हें कई दिन सुखाने के बाद ये दाने स्वाद भरी काली मिर्च के रूप में आ जाते हैं। जिन इलाकों में यह काम होता है, वहां आसपास काली मिर्च की एक खुशबू फैली होती है। यह एयरफ्रेशनर का काम भी करती है। वातावरण को शुद्ध रखती है। काली मिर्च और सफेद मिर्च एक ही पेड़ से और इन्हीं हरे दानों से ही प्रोसेस की जाती हैं। काली मिर्च धूप में सूखने के कारण सूर्य की किरणों के साथ वातावरण की कई खूबियों को अपने अंदर सोख लेती है। हालांकि अब भी केरल में सबसे ज्यादा विदेशी व्यापार काली मिर्च का ही होता है और इससे बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा कमाई जाती है, लेकिन इसका खेती का एरिया कम होता जा रहा है, साथ ही उत्पादन भी। थाईलैंड और वियतनाम जैसे देश भी इसे बड़े पैमाने पर उगाने लगे हैं, लेकिन आज भी जो बात भारतीय काली मिर्च में है, वह किसी और में नहीं। यह काफी ऊंचे दामों में बिकती है।

काली मिर्च की तलाश: काली मिर्च की तलाश में अगर सबसे पहले वास्कोडिगामा कालीकट के तट पर पहुंचा, तो उसके पीछे पीछे पुर्तगालियों का लावलश्कर भी यहां आया। उन्होंने कोचिन में किले और कॉलोनियां तैयार कराईं। यहां के व्यापार पर एकाधिकार करना चाहा। उसके बाद यहां यहूदी, चीनी, फ्रेंच और अंग्रेज भी आए। सब काली मिर्च यानी इस काले सोने के लिए दीवाने थे, क्योंकि यूरोप में इसकी खपत बड़े पैमाने पर थी। एक जमाने में काली मिर्च का चलन करेंसी की तरह भी था। प्राचीन काल से ही भारत के बड़े व्यापारियों तक ने काली मिर्च के व्यापार को हमेशा महत्व दिया। काली मिर्च से ढेरों अलग-अलग तरह के मसाले बनते हैं, ढेरों व्यंजन इसके आधार पर बनाए जाते हैं। फेहरिस्त में अगर काली मिर्च आधारित खान-पान की लिस्ट बनाइए तो ये सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों में जाएगी। शाकाहार, मांसाहार, अचार, दाल, आटा और चावल से जुड़े जितने खानपान हैं, सबमें बगैर कालीमिर्च सब फीका है। आयुर्वेद की नजर में ये एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल तत्वों की प्रचुरता लिए होती है, इसका नियमित सेवन तमाम रोगों से दूर रखता है। अगर भारत की बात करें तो हमारे तो हर रस्मों-रिवाज, खाने-पीने और आर्थिक ढांचे पर हमेशा से इस छोटे से काले दाने का असर रहा है। गर्व किया जा सकता है कि दुनिया को मिला यह सबसे नायाब मसाला भारत की देन है। 


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