खूबसूरत वादियों में बसा उत्तराखंड का अल्मोड़ा, शहर की भीड़भाड़ से दूर शांति मिलेगी यहां
अल्मोड़ा की बसावट का इतिहास चंद व कत्यूरी राजाओं से जुड़ा है। कत्यूरी शासकों का यहां वर्ष 1560 तक प्रवास रहा, मगर इस शहर ने असल आकार 1563 में चंद राजाओं के शासन से लेना शुरू किया।
कुमाऊं स्थित कुदरती सुंदरता से सराबोर और बर्फ से लकदक हिमालयराज का दर्शन कराने वाले हिल स्टेशन में से एक है अल्मोड़ा। देश की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक माने जाने वाले इस शहर में आएं तो यहां की मशहूर बाल मिठाई की सौगात ले जाना न भूलें। इस बार अल्मोड़ा के मनभावन सफर पर..
यह कर्मभूमि है नृत्य सम्राट पं. उदय शंकर की। इस स्थल से जुड़ा है नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू का भी। उत्तराखंड के अनमोल शहर अल्मोड़ा से जुड़ी हैं स्वामी विवेकानंद की यादें भी। इस शहर की खासियत ही ऐसी है कि हम यहां एक बार आने के बाद ही समझ जाते हैं कि देश को रंग-बिरंगी संस्कृतियों का गुलदस्ता क्यों कहा जाता है। अल्मोड़ा आकर आप जान सकेंगे कि यह प्राकृतिक रूप से तो सुंदर है। सैकड़ों वर्ष पूर्व चंद, कत्यूरी राजाओं से लेकर गोरखा व अंग्रेजों के दौर में भी अल्मोड़ा की अलग पहचान रही है।
मल्ला महल है कलक्ट्रेट हाउस
अल्मोड़ा की बसावट का इतिहास चंद व कत्यूरी राजाओं से जुड़ा है। कत्यूरी शासकों का यहां वर्ष 1560 तक प्रवास रहा, मगर इस शहर ने असल आकार 1563 में चंद राजाओं के शासन से लेना शुरू किया। यह शहर चंदों की राजधानी भी बना। राजा भीष्मचंद ने अल्मोड़ा को राजधानी बनाने का सपना देखा था, मगर खगमराकोट में उनके वध के बाद उनके पुत्र बालोकन्याण ने अल्मोड़ा को विकसित किया और अपने पिता के सपने को पूरा किया। इसी वंश के शासक राजा रूप चंद के समय में मल्ला महल की स्थापना हुई। उस जमाने में निर्मित मल्ला महल में आज के समय कलक्ट्रेट चलता है।
कटारमल सूर्य मंदिर
उत्तर भारत में कत्यूर वास्तुकृतियों में विशिष्ट स्थान रखने वाला कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा-रानीखेत मोटरमार्ग पर करीब छह हजार मीटर ऊंचे टीले पर स्थित है। इस मंदिर का नाम सौर संप्रदाय और सूर्य उपासकों में बहुत ही श्रद्धा के साथ लिया जाता है। मंदिर को कत्यूरियों ने बनाया था। नागर शैली में बना यह मंदिर आज भी दूर-दूर तक अपनी आभा बिखेरता है।
बेजोड़ और बेमिसाल चर्च
ब्रिटिश साम्राज्य के वैभवशाली अतीत का प्रतीक बडन मेमोरियल मेथोडिस्ट चर्च अल्मोड़ा के एलआर साह मार्ग पर स्थित है। यह चर्च फ्रांस में सृजित इंडो-यूरोपियन शैली में स्थानीय पत्थरों से निर्मित किया गया है। 1897 में चर्च अस्तित्व में आया। चर्च के विशाल कक्षों की बनावट इतनी बारीक व सुंदर है कि पहली नजर में एक ही बात निकलती है.. बेजोड़ व बेमिसाल।
अल्मोड़ा जेल में नेहरू की यादें
अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल से स्वतंत्रता आंदोलन की लौ जली थी। इस जेल में अंग्रेजों ने देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू, पं. हरगोविंद पंत और कामरेड पीसी जोशी जैसे महान देशभक्त कैद किए थे। आज भी जेल में पं. नेहरू द्वारा प्रयोग में लाए गए बर्तन, फर्नीचर, चारपाई, दीया, लकड़ी का चरखा, पीतल का लोटा, ग्लास व थाली आदि यादों के रूप में संजोकर रखे गए हैं। उल्लेखनीय है कि नेहरू अल्मोड़ा जेल में दो बार बंद रहे। उन्होंने भारत : एक खोज' के कुछ अंश भी यहां लिखे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी यहां आए थे। आजादी की अलख जगाने के लिए 1929 में उन्होंने अल्मोड़ा का दौरा किया। अगर आपको जेल के भीतर जाकर नेहरू की यादें देखनी हों, तो इसके लिए जिलाधिकारी से अनुमति लेनी पड़ेगी।
पं. उदयशंकर नृत्य अकादमी
अल्मोड़ा स्वामी विवेकानंद और नृत्य सम्राट पं. उदयशंकर की भी कर्मस्थली रही है। भारत को आध्यात्मिक विश्र्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने वाले स्वामी विवेकानंद तो तीन बार अल्मोड़ा आए। पहली बार 1890 में हिमालय दर्शन के दौरान यहां आए और यहां काकड़ीघाट के पास उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। वर्ष 1898 में स्वामी विवेकानंद के प्रवास का गवाह यहां स्थित थॉमसन हाउस है। तब स्वामी विवेकानंद ने देवलधार और स्याहीदेवी में ध्यान भी किया था। शहर के प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत होकर 1938 में पं. उदयशंकर यहां आए। उन्होंने इसे अपनी कला का केंद्र बनाया और वषरें तक नृत्य साधना को मूर्त रूप दिया। पं. उदयशंकर की स्मृति के रूप में अब अल्मोड़ा में नृत्य अकादमी स्थापित की गई है।
राजकीय संग्रहालय की शान
अल्मोड़ा के माल रोड के बीचोबीच राजकीय संग्रहालय और कला भवन है। कला प्रेमियों तथा इतिहास एवं पुरातत्व के जिज्ञासुओं के लिए यहां पर्याप्त सामग्री संजोयी गई है। इस संग्रहालय में पौराणिक धरोहरों को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। भारत रत्न पं. गोविंद बल्लभ पंत की स्मृति में संग्रहालय का निर्माण किया गया है। इस संग्रहालय में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी वस्तुओं को काफी खूबसूरती से संजोकर रखा गया है। यहां रखे गए कुनीद कालीन सिक्के यहां आने वाले सैलानियों के लिए खास आकर्षण हैं। कुनीद उत्तर भारत का एक शक्तिशाली व प्रख्यात जनजातीय समूह था। उस समय के कुल 15 सिक्के यहां मौजूद हैं।
ब्राइट इन कॉर्नर
अल्मोड़ा के बस स्टेशन से केवल दो किलोमीटर की दूरी पर एक अद्भुत स्थल है ब्राइट कॉर्नर। इस स्थान से उगते और डूबते हुए सूर्य का दूश्य देखने दूर-दूर से प्रकृति प्रेमी आते हैं। इंग्लैंड में स्थित ब्राइटन बीच के नाम पर इसका नाम ब्राइट बीच पड़ा है।
सिमतोला इको पार्क
अल्मोड़ा नगर से तीन किलोमीटर दूर स्थित पपरशैली के पास सिमतोला पार्क है। यह एक पिकनिक स्थल है। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं।
कसारदेवी मंदिर
शहर से करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर है कसारदेवी मंदिर। यहां से हिमालय की ऊंची पर्वत श्रेणियों के दर्शन होते हैं। इसका प्राकृतिक सौंदर्य देश-विदेश से आने वाले सैलानियों को खूब भाता है। ऊंचाई पर होने की वजह से कसारदेवी का तापमान भी ठंडा रहता है, इसलिए गर्मियों में यहां पर्यटकों की खासी भीड़ देखने को मिलती है। इस जगह पर मां कसारदेवी का मंदिर बना है। यहां एक बौद्ध मठ भी है।
गोलू देवता का देव दरबार
शहर से करीब आठ किमी दूर पिथौरागढ़ मार्ग पर है चितई मंदिर। इसे चितई गोलू देवता भी कहा जाता है। मंदिर में घोड़े पर सवार और धनुष-बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है। उत्तराखंड का यह प्रसिद्ध देव दरबार न्याय के लिए प्रसिद्ध है। लोग स्टांप पेपर पर अपनी समस्याएं लिखकर मंदिर परिसर में लगाते हैं। मान्यता है कि मंदिर का निर्माण चंद वंश के एक सेनापति ने 12वीं शताब्दी में कराया था।
जागेश्वर धाम
अल्मोड़ा से 35 किमी. दूर देवदार के जंगल के बीचोबीच स्थित है जागेश्र्वर धाम। यह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। सावन के महीने में यहां एक माह तक चलने वाला विशाल मेला लगता है। धाम में पाषाण शैली के भव्य देवालयों का निर्माण कत्यूरी और चंद राजाओं ने करवाया था। मंदिरों में बड़े-बड़े पत्थर पर पशु, पक्षियों व देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियां उकेरी गई हैं। वास्तुशिल्प एवं आलेखन के क्त्रम में लकुलीश व सकुलीश सबसे प्राचीन मंदिर माने गए हैं। बाबा के इस धाम की ख्याति दूर-दूर तक है।
सुकून चाहिए तो आइए बिनसर
अल्मोड़ा-बागेश्र्वर मोटरमार्ग पर स्थित बिनसर अभयारण्य एक ऐसा स्थान है जो अनछुए प्राकृतिक वैभव और शांत परिवेश के लिए जाना जाता है। देवदार के जंगलों के बीच हिमालय की श्रंखलाओं के अद्भुत दृश्य और घाटियां यहां से देखी जा सकती हैं। बिनसर से हिमालय की केदारनाथ, चौखंभा, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदाकोट और पंचाचूली चोटियों की करीब तीन सौ किमी. लंबी श्रृंखला दिखाई देती है।
पर्यटन विभाग के गाइड उपलब्ध
अल्मोड़ा और उसके आसपास के पर्यटक स्थलों की सैर के लिए पर्यटन विभाग गाइड उपलब्ध कराता है। वाहनों की पार्किंग के लिए नगर के बीचोबीच बहुमंजिला पार्किंग का निर्माण किया गया है। ठहरने के लिए अल्मोड़ा समेत कसार देवी, बिनसर में अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त निजी रिसॉर्ट के अलावा केएमवीएन, लोक निर्माण विभाग और वन विभाग के अतिथि गृह भी बने हैं।
नंदा देवी मंदिर
नंदा देवी मंदिर नगर के बीचोबीच स्थित है। बाजार से होते हुए एलआर साह रोड पर यह मंदिर स्थित है। नंदा देवी समूचे कुमाऊं और गढ़वाल मंडल की आराध्य देवी हैं। मंदिर का इतिहास एक हजार साल पुराना है। दीवारों पर बनाई गई कलाकृतियां पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इस मंदिर में हर साल नंदा देवी मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें चंद वंश के वंशज भी पूजा-अर्चना के लिए यहां पहुंचते हैं।
कैसे पहुंचें अल्मोड़ा
अल्मोड़ा हवाई मार्ग से जाना चाहते हैं तो कृषि विश्र्वविद्यालय पंतनगर स्थित हवाई अड्डे तक विमान से पहुंचा जा सकता है। यहां से अल्मोड़ा की दूरी 127 किमी. है। पंतनंगर से टैक्सी व उत्तराखंड परिवहन की बसें उपलब्ध रहती हैं। रेल मार्ग के लिए आपको रेलवे स्टेशन काठगोदाम आना होगा। काठगोदाम से अल्मोड़ा की दूरी 110 किमी. है। यहां से भी टैक्सी व उत्तराखंड परिवहन की बसें आसानी से मिल जाती हैं।
बरतनी होगी सावधानी
अल्मोड़ा शहर समुद्र तल से 5417 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए आपको यहां की घुमावदार सड़कों से सफर करना होगा। हालांकि इस सफर में यहां का प्राकृतिक सौंदर्य आपकी थकान को दूर करने का काम करेगा, लेकिन वाहन की गति नियंत्रित रखना जरूरी होता है।
बाल मिठाई और सिंगौड़ी का स्वाद
अल्मोड़ा की बाल मिठाई, सिंगौड़ी और चॉकलेट देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी खासे मशहूर है। लोग सौगात के रूप में यही तीन मिठाइयां लेकर यहां से जाते हैं। यहां बाल मिठाई बनाने का इतिहास लगभग सौ साल पुराना है। इसके स्वाद और निर्माण के परंपरागत तरीके को निखारने का श्रेय मिठाई विक्त्रेता स्व. नंद लाल साह को जाता है, जिसे आज भी खीम सिंह मोहन सिंह रौतेला और जोगालाल साह के प्रतिष्ठान संवार रहे हैं। बाल मिठाई को आसपास के क्षेत्र में उत्पादित होने वाले दूध से निर्मित खोए से तैयार किया जाता है। इसे बनाने के लिए खोए और चीनी को एक निश्चित तापमान पर पकाया जाता है। लगभग पांच घंटे इसे ठंडा करने के बाद इसमें रीनी और पोस्ते के दाने चिपकाए जाते हैं। जिसे बाद में छोटे-छोटे टुकडों में काटा जाता है। ऐसा ही स्वाद सिंगौड़ी का है। सिंगौड़ी मालू के पत्ते में लपेटी जाती है और इसे कॉन का आकार दिया जाता है। बात अगर व्यंजनों की करें तो यहां के परंपरागत व्यजनों का लुत्फ भी सैलानी आसानी से उठा सकते हैं। मडुवे की रोटी, भट्ट की चुड़कानी यहां के खास व्यंजन हैं, जो लगभग सभी होटलों में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
तांबे के बर्तन और ऊनी वस्त्रों की खरीदारी
सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की खूबी यहां का सबसे पुराना माना जाने वाला ताम्र उद्योग है। थाना बाजार स्थित टम्टा मोहल्ले में शिल्पी तांबे के बर्तनों और भगवान की प्रतिमाओं का ऐसा रूप देते हैं कि देखने वाले उनके हाथों की नक्काशी के कायल हो जाते हैं। अगर आप घूमने के लिए अल्मोड़ा आएं तो इस शहर की सौगात के रूप में तांबे के बर्तन या फिर मूर्तियां खरीदकर अपने साथ ले जाएं। माल रोड से मुख्य बाजार में प्रवेश करने पर लगभग 100 मीटर दाहिने हाथ की ओर आने वाले बाजार से तांबे के उत्पादों को खरीदा जा सकता है। इसके अलावा, पंचाचूली वूलन अल्मोड़ा में ऊनी कपड़े बनाने की प्रसिद्ध संस्था है। यह संस्था यहीं बनाए गए ऊन से ऊनी कपड़ों का निर्माण करती है। इन उत्पादों को खोजने में सैलानियों को दिक्कतों का सामना न करना पड़े, इसके लिए माल रोड समेत अनेक स्थानों पर पंचाचूली वूलन के आउटलेट्स भी खोले गए हैं। त्योहार के लिए लोग ऐपण का निर्माण करते हैं, जिन्हें घरों की देहरी पर लगाया जाता है। अगर आपको कुमाऊं की ऐपण कला साथ ले जानी हो, तो इसे भी यहां से ले सकते हैं।
शिवचरण पांडे, रंगकर्मी, अल्मोड़ा
इनपुट सहयोग : हलद्वानी से शमशेर सिंह नेगी, अल्मोड़ा से ब्रजेश तिवारी