गोवा: भारत में एक अनोखी संस्कृती से रूबरू कराता है ये छोटा सा राज्य
समंदर की ऊंची लहरें, बीच पर अटखेलियां करते पर्यटक, दूर तक फैली घनी हरियाली, गिरिजाघर, मस्तमौला लोग, पुर्तगाली रंग में रंगी स्थानीय संस्कृति, ये है गोवा।
ऐसा राज्य है गोवा
गोवा के बारे में सोचते ही जेहन में कुछ अलग सी तस्वीरें तैरने लगती हैं। उस पर मानूसन में गोवा एक नए रंग में रंगा नजर आने लगता है। बारिश की फुहारों के बीच यहां मिलते हैं आंखों को सुकून देने वाले अनगिन नजारे और रंग-बिरंगी संस्स्कृति की नायाब झलक दिखाते लोक उत्सव। गोवा को मुख्य रूप से दो हिस्सों मे बांट कर देखा जाता है -नॉर्थ गोवा और साउथ गोवा। नॉर्थ गोवा में जहां मौज-मस्ती है, बीच हैं और नाचते-गाते हिप्पी हैं, वहीं साउथ यानी दक्षिण गोवा में प्रकृति है, जंगल हैं, गांव हैं, नदियां हैं, झरने हैं, थिरकते-मस्ती में गाते-झूमते लोग हैं। यहां एक अलग लय है, सुर है। आमतौर पर गोवा को हम सब इसके बीचों यानी समुद्री किनारों के लिए और एक ऐसे राज्य के रूप में जानते हैं, जो कभी पुर्तगालियों का उपनिवेश रहा था लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती है। आज हम उस गोवा के बारे में बात कर रहे हैं जो पुर्तगालियों के भारत आने से पहले से धडक़ता रहा है यहां के स्थानीय लोगों के दिलों में, उनकी परंपराओं में, और उनके अनोखे त्योहारों में अनोखा पारंपरिक और आधुनिक संस्कृतियों का मिश्रण दिखाई देता है।
मानसून में ट्रैकिंग का मजा
वेस्टर्न घाट, जिसे पश्चिमी पठार भी कहते हैं मानसून में और भी खूबसूरत हो जाता है। 1600 किलोमीटर लंबी यह पर्वतश्रृंखला विश्व में जैविकीय विविधता के लिए पूरी दुनिया में आठवें पायदान पर आती है। इसीलिए यूनेस्को ने इसके 39 स्थानों को विश्व धरोहर के रूप में चिन्हित किया है। मजे की बात यह है कि यह वेस्टर्न घाट गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होकर महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। कुदरत के इस अनमोल खजाने का कुछ बेहद खास हिस्सा गोवा के दामन में भी फैला हुआ है जो कि बारिश के मौसम में ट्रैकिंग प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है। जब जंगलों में हरियाली के बीच ऐसे ही जगह-जगह बरसाती झरने फूट पड़ते हैं, तो पूरा जंगल एक तिलिस्मी महक से जाग जाता है। ऐसे जंगलों में ट्रैकिंग करने का असली मजा आता है। इन जंगलों में कई खूबसूरत वॉटरफॉल हैं, जैसे- कुमठा फाल्स, दूधसागर वॉटरफॉल, चोरला वाटरफॉल्स और पाली वॉटरफॉल।
कुदरत की अनोखी देन दूधसागर जल प्रपात
दूधसागर का शाब्दिक अर्थ होता है दूध का सागर। यह देश का पांचवा ऊंचा (ऊंचाई 310 मीटर) जल प्रपात माना जाता है। यह दक्षिण गोवा में कर्नाटक सीमा के पास पश्चिमी घाट की पहाडिय़ों में स्थित है। पश्चिमी घाट की पहाडिय़ां गुजरात से केरल तक पश्चिमी तट के समानांतर फैली हुई हैं। इनके एक तरफ समुद्र है, तो दूसरी तरफ प्रायद्वीपीय पठार। इस पठार से निकलने वाली सभी नदियां जब अरब सागर में मिलती हैं तो इन्हें पश्चिमी घाट की इन पहाडिय़ों को भी पार करना होता है। इन पहाडिय़ों में जलप्रपातों की भरमार है। देश के बाकी प्रपातों की तरह यह भी मानसून में अधिक दर्शनीय हो जाता है। मानसून में बारिश के कारण नदियों में पानी बरसने से जलप्रपात बेहद सुंदर हो उठते हैं। ऊंचाई के अलावा इसका दूसरा प्रमुख आकर्षण है इसके नीचे से रेलवे लाइन का गुजरना। 'चेन्नई एक्सप्रेस' फिल्म में इस प्रपात को बेहद शानदार तरीके से दिखाया गया है। साथ ही इसे खास बनाती है, इसका वन्य जीव अभयारण्य के भीतर स्थित होना। यह सदाबहार घने जंगलों वाले भगवान महावीर वन्य जीव अभयारण्य के अंदर स्थित है। मडगांव रेलवे स्टेशन से पूर्व 40 किलोमीटर दूर स्थित है कुलेम। यह एक छोटा-सा गांव और रेलवे स्टेशन है। कुलेम से दूधसागर की दूरी लगभग दस किलोमीटर है।
ट्रॉपिकल प्लांटेशन
गोवा की समृद्धि में यहां के ग्रामीण किसानों की मेहनत और कुदरत दोनों का ही बड़ा योगदान है। इसकी खूबसूरत तस्वीरें हमें देखने को मिलती हैं गोवा के उन गांवों में जहां ट्रॉपिकल प्लांटेशन किया जाता है। इन गांवों का रास्ता नारियल के ऊंचे-ऊंचे झाड़ों से होकर गुजरता है। ये नजारे पंजिम से सिर्फ 30-35 किलोमीटर के दायरे में ही हमें देखने को मिल जाते हैं। ऐसा ही एक गांव है केरी, जो पोंडा तहसील में पड़ता है। यहां ट्रॉपिकल स्पाइस प्लांटेशन यानी सुपारी, मसालों और काजू की खेती देखने को मिल जाती है। यहीं नजदीक काजू को प्रोसेस करने की फैक्ट्री भी देखी जा सकती है। इसके अलावा, यहां स्पाइस प्लांटेशन के लिए गाइडेड टूर की भी व्यवस्था है। यहां गांव में स्थानीय लोगों के साथ गोवा का फूड केले के पत्ते पर खाकर आप अपनी इस यात्रा को और भी यादगार बना सकते हैं।
गोवा की वाइल्ड लाइफ सैंचुरीज
गोवा-कर्नाटक के बॉर्डर पर स्थित कोटीगांव वाइल्ड लाइफ सैंचुरी नेचर का एक वरदान है गोवा राज्य को। आप इस खूबसूरत वाइल्ड लाइफ सैंचुरी में ठहर भी सकते हैं। इसके लिए आपको फारेस्ट ऑफिस में पहले से गेस्ट हाउस बुक करना होगा। आप इस सैंचुरी में हिलटॉप हाईकिंग कर सकते हैं। इस घने जंगल के भीतर रहने वाले गोवा के बहुत पुराने आदिवासी समुदाय वेलिप और कुनबिल लोगों से मिल भी सकते हैं। यह सैंचुरी नेचर लवर्स के लिए विशेष महत्व रखती है। यहां कुछ बेहद प्राचीन पेड़ मौजूद हैं। यहां का जंगल इतना घना है कि कहीं-कहीं तो सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंचती। भगवान महावीर वाइल्ड लाइफ सैंचुरी को आप दूधसागर वॉटरफॉल के साथ-साथ देख सकते हैं। 240 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैली यह सैंचुरी अपने में बहुत खास है। पीछे पहाड़ों की चोटी से निकल दूध की तरह चमकती सफेद पानी की धारा और आगे से पुल पर गुजरती भारतीय रेल सब मिलकर एक ऐसा दृश्य पैदा करते हैं कि इंसान कुछ देर तक तो अपने होश ही गंवा दे। यह सजीला दृश्य इसी वाइल्ड लाइफ सैंचुरी के अंदर का है। अगर आप ट्रेन में बैठ कर इस अनोखे दृश्य को देखना चाहते हैं तो कोंकण रेल के मैंगलोर से मारगाओ रूट पर ट्रेन से यात्रा करें और खिडक़ी से आती दूधसागर वॉटरफॉल की फुहार से भीगने का आनंद उठाएं। इस सैंचुरी में कई जंगल रिजॉर्ट और फॉरेस्ट गेस्ट हाउस भी हैं।
फिश फार्मिंग ट्रेल
गोवा के जीवन का अभिन्न अंग है फिश और यह यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय भी है। आखिर इस प्रदेश के पास 104 किलोमीटर लंबा समुद्री तट और लगभग 250 इनलैंड वॉटरवेज जो हैं। यहां पांच बड़ी नदियां भी हैं। जिस राज्य की 95 प्रतिशत जनता का मुख्य भोजन मछली हो, वहां पर फिशिंग फार्मिंग ट्रेल देखना तो बनता ही है। गोवा सरकार फिश फार्मिंग के लिए बड़ा योगदान देती है ताकि यहां के स्थानीय मछुवारों को सहयोग दिया जा सके। मछुवारों के गांवों में जाकर उनके बीच एक दिन गुजारना बहुत सुहावना है। मछली पकडऩे के आधुनिक और परंपरागत तरीकों को नजदीक से देखना भी एक अनुभव है। अगर आप सी-फूड के शौकीन हैं तो इन गांवों में जाकर कई प्राचीन तरीकों से पकी मछली और अन्य सी फूड का आनंद ले सकते हैं।
वाइट वॉटर राफ्टिंग
महादेई रिवर में मॉनसून की फुहारों के बीच जहां पूरा गोवा तर-बतर हो जाता है वहीं वाइट वॉटर राफ्टिंग के मतवालों के लिए जून माह से महादेई रिवर में गोवा टूरिज्म की ओर से वॉटर राफ्टिंग की अनुमति है। यह खूबसूरत सिलसिला सितंबर तक चलता है। महादेई रिवर वैली से यह यात्रा शुरू होती है। रोमांच से भरपूर इस वाइट वॉटर राफ्टिंग के संचालन का जिम्मा प्रोफेशनल्स के हाथों में होता है और सुरक्षा से संबंधित सभी पहलुओं की देखभाल पहले से ही सुनिश्चित की जाती है।