Dussehra 2019: भारत में इन जगहों पर नहीं जलाया जाता रावण का पुतला, न ही होती है रामलीला
इंडिया में ज्यादातर जगहों पर दशहरे का पर्व रावण का पुतला दहन कर मनाया जाता है वहीं यहां कुछ ऐसी भी जगहें हैं जहां रावण को पूजा जाता है। जानेंगे इन जगहों के बारे में...
मां सीता का अपहरण कर उनको अपने महल में रखकर रावण ने अपना ही नहीं अपने परिवार और विशाल साम्राज्य तक का अंत कर दिया लेकिन पुराणों के अनुसार रावण, भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त था और इसी वजह से कई जगहों पर रावण की भी पूजा होती है। इनमें वो जगहें भी शामिल हैं जहां उनकी रानी मंदोदरी का मायका था, जहां रावण और मंदोदरी का विवाह हुआ था। तो आइए जानते हैं उन जगहों और उससे जुड़ी अन्य रोचक मान्यताओं के बारे में...
मंदसौर, मध्यप्रदेश
रामायण के अनुसार मंदसौर, रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका था। उस हिसाब से रावण यहां का दामाद था और यही वजह है कि यहां रावण का पुतला दहन नहीं होता, खासतौर से शहर के पुराने इलाकों में। यहां रावण की 35 फुट की एक ऊंची मूर्ति भी है।
बिसरख, उत्तर प्रदेश
नई दिल्ली से 30 किलोमीटर दूर स्थित छोटा सा गांव है बिसरख। इस गांव में न दशहरा मनाया जाता है न ही यहां रामलीला होती है। ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में इस गांव में ऋषि विश्र्शवा का जन्म हुआ था और उन्हीं के घर रावण का जन्म हुआ था।
मंदौर, राजस्थान
मंदौर वो जगह है जहां मंदोदरी और रावण का विवाह हुआ था। यहां के स्थानीय ब्राह्मणों का मानना है कि रावण यहां का दामाद है इसलिए यहां के लोग भी न ही रावण दहन करते हैं और न ही रामलीला मनाते हैं।
बैजनाथ, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बसा है बैजनाथ कस्बा। जहां लोग रावण का पुतला नहीं जलाते। यहां पर रावण की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि यहां रावण ने सालों तक बैजनाथ में भगवान शिव की तपस्या कर मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था। हां, यहां रामलीला बेशक मनाई जाती है लेकिन न ही रावण और न ही कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। लोगों का ऐसा मानना है कि जो कोई भी रावण का पुतला जलाता है उसके घर में किसी न किसी की अचानक मृत्यु हो जाती है।
पारसवाड़ी, गढ़चिरौली, महाराष्ट्र
पारसवाड़ी एक छोटा सा गांव है जिसमें गोंड जनजाति के तकरीबन 300 लोग रहते हैं और ये लोग रावण को भगवान की तरह पूजते हैं। इतना ही नहीं वो खुद को हिंदू नहीं, बल्कि रावणवंशज कहलाना पसंद करते हैं। उनका मानना है कि रावण गोंड जनजाति के राजा थे। और तो और वाल्मिकी रामायण में रावण को असुर नहीं माना गया है। तुलसीदास के रामायण में उन्हें असुर एक बुरे व्यक्ति बताया गया है।
कानपुर, उत्तर प्रदेश
कानपुर में एक ऐसा शिव मंदिर है जो रावण को समर्पित है। दशहरे के मौके पर दशानन मंदिर का दरवाजा भक्तों के लिए खोल दिया जाता है जहां वो अपनी श्रद्धा-भक्ति के साथ रावण की पूजा करते हैं। भक्तों का मानना है कि रावण असुरों के राजा नहीं बल्कि ज्ञानी, कुशाग्र बुद्धि वाले महापंडित थे।