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भारत के वंडरलैंड इंफाल जायें तो ये जगह जरूर देखें

भारत का एक तिलिस्मी शहर है इंफाल जिसे आप विदेशी परीकथा 'एलिस इन वंडरलैंड' जैसा इंडिया का वंडरलैंड कह सकते हैं।

By molly.sethEdited By: Published: Mon, 21 Aug 2017 12:06 PM (IST)Updated: Mon, 21 Aug 2017 12:06 PM (IST)
भारत के वंडरलैंड इंफाल जायें तो ये जगह जरूर देखें
भारत के वंडरलैंड इंफाल जायें तो ये जगह जरूर देखें

क्‍यों जायें इंफाल

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हिमालय के पूर्वी सिरे पर उत्तर में फैली पर्वतमालाओं के बीच बसा है मणिपुर का शहर इंफाल। यहां खूबसूरत प्राकृतिक नजारों के बीच आप पाएंगे जीवंत उत्सवधर्मी लोग, सहेजी हुई प्राचीन धरोहरें और भारत की सतरंगी सांस्कृतिक परंपराओं की सुंदर झलक। यहां हरियाली से भरे मखमली पहाड़ों के बीच एक जादूई दुनिया सी बसी नजर आती है। यहां पहाड़ों की गोद मे बसे छोटे-छोटे गांवों से होकर गुजरना भी कम अचरज भरा अहसास नहीं। इस जगह की खूबसूरती के बयान मे सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि यहां के प्राकृतिक नजारे अभी तक अनछुए हैं। इस राज्य के पास प्राकृतिक का अमूल्य वरदान है। अगर आप ईको टूरिज्म में रुचि रखते हैं तो यह जगह आपके लिए स्वर्ग के समान है। पहाड़ों के बीचों बीच बसे अंडाकार कटोरे के आकार वाली जगह को देखकर आप बरबस कह उठेंगे सचमुच हमारा देश है रंग-बिरंगा और इसमें इंफाल का रंग है सबसे अलहदा, सबसे जुदा। तो इस जादू को देखने जरूर जायें इंफाल और इन खास जगहों को देखना ना भूलें। 

लेकेघास के तैरते टापू

इंफाल से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लोकटक लेक। यह मणिपुर की सबसे बड़ी फ्रेश वॉटर लेक है। इसमें तैरते हुए घास के टापू पाए जाते हैं। यह केवल लेक नहीं घर है लगभग 233 जलीय वनस्पतिक प्रजातियों का,100 से ज्यादा पक्षियों और 425 प्रजातियों के जंगली जीवों का। आप और भी हैरान होंगे जब पाएंगे इसी लेक के भीतर कई मछुवारों के गांव भी मौजूद हैं। यहां रहने वालों के लिए लोकटक लेक जीवनदायनी लेक हैं। पानी पर तैरते छोटे-छोटे घास के टापू किसी जादुई दुनिया के देश जैसे लगते हैं, जो आज यहाँ तो कल तैर कर कहीं और पहुंच जाते हैं। जैव विविधता से परिपूर्ण इस जादुई माहौल में एक और सुंदर जगह है जिसका नाम है सैंड्रा पार्क एन्ड रिजॉर्ट। यह एक टूरिस्ट लॉज है जहां पर सैलानी ठहर सकते हैं।

ईमा मार्केट मांओं का बाजार

इंफाल में बेहद खास है ईमा मार्केट। यहां के लोगों की मानें तो यह मार्केट सोलहवीं शताब्दी से अस्तित्व मे है। मणिपुरी समाज की रीढ़ की हड्डी मानी जाने वाली महिलाएं इस मार्केट का संचालन करती हैं। यह एशिया की सबसे बड़ी मार्केट है जिसे पूरी तरह से महिलाएं चलती हैं। यहां लगभग 4000 महिलाएं व्यापार करती हैं। मणिपुरी भाषा मे ईमा का मतलब होता है मां और यहां सही मायनों मे माएं ही हैं जो दुकाने चलती हैं। ईमा मार्केट के दो भाग हैं एक भाग में सब्जी, मछली, मसाले व घर का अन्य समान मिलते हैं। भांति भांति की मछलियाँ, फल-फूल, पूजा का समान, सूखे मसाला, मटके और ना जाने क्या क्या। अगर आप शॉपिंग करते करते थक गए हैं और भूख भी लगने लगी है तो यहीं मार्केट के बीचों बीच कोई ईमा आपको ताजी पकाई हुई मछली और भात भी खिला देगी। यहां छोटा-सा लाईव किचन चलाने वाली ईमा भी होती हैं जोकि मुनासिब पैसों में भरपेट भोजन उपलब्ध करवाती हैं। थोड़ी दूर जाने पर दूसरी मार्केट है जहां हाथ के बने कपड़े बिकते हैं। यहां से आप मणिपुर का पारंपरिक परिधान खरीद सकते हैं और वहीं पर सिलाई मशीन के साथ बैठी महिलाओं से सिलवा भी सकते हैं।

मापाल कंगजेबुंग

ईमा मार्केट के पीछे दुनिया का सबसे पुराना पोलो ग्राउंड बना हुआ है, जिसका नाम है 'मापाल कंगजेबुंग'। यहां के अधिकतर लोग आदिवासी जनजातियों से ताल्लुक रखते हैं। इसलिए उनके हाव भाव और खेलने के तरीके थोड़े 'वाइल्ड' हैं। यही वजह है कि यहां खेला जाने वाला पोलो खेल शुरूवात में बहुत आक्रामक होता था, जिसमें कोई नियम कोई कानून नही होता था। बस खिलाडियों को किसी भी तरीके से जीतना होता था। बाद में अंग्रेजों ने इस खेल को खेलने के नियम बनाए और समय के साथ यह खेल परिष्कृत होता गया। आज पूरे विश्‍व मे यह खेल अपनी नज़ाकत और नफ़ासत के चलते कुलिन लोगों की पहली पसंद माना जाता है। मणिपुर में इस खेल को हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय स्‍तर पर खिलाने के लिए संघाई फेस्टिवल के समय 10 दिनो के लिए टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता है। जिसमें पूरी दुनिया से टीमें आती हैं। इस खेल की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं की मणिपुर मे लगभग 35 पोलो क्लब हैं।

सतरंगी शिरोइ लिली

मणिपुर को देश की 'ऑर्किड बास्केट' भी कहा जाता है। यहाँ ऑर्किड पुष्प की 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। समुद्र तल से लगभग 5000 फीट की ऊंचाई पर स्थित शिरोइ हिल्स में एक खास प्रकार का पुष्प शिरोइ लिली पाया जाता है। शिरोइ लिली का यह फूल पूरी दुनिया मे सिर्फ मणिपुर में ही पैदा होता है। इस अनोखे और दुर्लभ पुष्प की खोज एक अंग्रेज फ्रैंक किंग्डम वॉर्ड ने 1946 में की थी। यह खास लिली केवल मानसून के महीने में पैदा होता है। इसकी ख़ासियत यह है कि इसे माइक्रोस्कोप से देखने पर इसमे सात रंग दिखाई देते हैं। फ्रैंक किंग्डम वॉर्ड द्वारा खोजे गए इस अनोखे लिली को 1948 में लन्दन स्थित रॉयल हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी ने मेरिट प्राइज से भी नवाजा था। हर वर्ष उखरूल जिले में शिरोइ लिली फेस्टिवल का आयोजन बड़ी धूम धाम से होता है। इसे देखने दूर दूर से लोग मणिपुर आते हैं।

शहीद मीनार

बीर टिकेंद्राजीत पार्क के बीचों बीच बनी यह शहीद मीनार अपनी मातृभूमि के लिए अंग्रेजों के खिलाफ वर्ष 1891 मे अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर आदिवासियों योद्धाओं की याद में बनाई गई है। मणिपुर मे पाए जाने वाले 34 प्रकार के आदिवासी जनजातियों का अपनी मातृभूमि से विशेष लगाव रहा है। यो कहें कि इन आदिवासी जनजातियों का प्रकृति के साथ एक अटूट रिश्ता है, जिसकी झलक इनके पूरे जीवन को देखने से मिलती है।

 

मणिपुर स्टेट म्यूजियम

पोलो ग्राउंड के साथ ही एक और महत्वपूर्ण जगह है मणिपुर स्टेट म्यूजियम। मणिपुर की ऐतिहासिक- सांस्कृतिक विरासत के नजदीक से दर्शन करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण जगह है। इस संग्रहालय में मणिपुर के राज परिवार के जीवन की झलक और यहाँ के आदिवासी जीवन की झलक एक ही छत के नीचे देखने को मिल जाती है। इस संग्रहालय का मुख्य आकर्षण है 78 फीट लंबी शाही बोट। छोटा-सा दिखने वाला यह संग्रहालय अपने में 34 आदिवासी जनजातियों व समूहों के जीवन से जुड़ी कुछ नायाब वस्तुओं को समेटे हुए है। यह संग्रहालय सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक ही खुलता है।

 

कांगला पैलेस

इंफाल सिटी के बीचों बीच एक नहर के दायरे के भीतर बना कांगला फोर्ट बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेता है। यह फोर्ट सदियों से मणिपुर की राजनीति का केंद्र रहा है। इसका शाही दरवाज़ा चीनी वास्तुकला से प्रभावित है। इसके भीतर एक म्यूजियम भी है, जिसका नाम कांगला म्यूजियम है। इस पैलेस पर यहां के 7 राजाओं ने राज किया है। आज इस पैलेस का कुछ भाग खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस पैलेस ने मणिपुर के राजशाही पाखांगबा का स्वर्णिम वैभव देखा और 1891 में आंग्लो-मणिपुर वॉर का अंधकारमय समय भी देखा है, जब मणिपुर को तीन दिशाओं से घेर लिया गया था। उस समय मे इंफाल की राष्ट्रीय धरोहर की बड़ी क्षति हुई। पैलेस के प्रांगण में बने दो सफेद कांगला-शा के विशाल स्टैचू भी तोड़ दिए गए थे। बाद में 2007 में दोबारा जीर्णोधर करके इसे स्थापित किया गया। कांगला-शा का मितिस समाज में बड़ा महत्व है। ऐसा माना जाता था कि जब भी महाराजा को कोई बड़ी चिंता आ घेरती थी तब इन राष्ट्रीय प्रतीकों की उपासना की जाती थी। यह मीतीस के राष्ट्रीय प्रतीक थे।

 

लॉर्ड सानमही टेंपल

यहीं कांगला पैलेस के प्रांगण मे कांगला-शा के नजदीक ही एक बहुत सुंदर मंदिर भी है, जिसका नाम लॉर्ड सानमही टेंपल है। इसका निर्माण प्रमिड वास्तुकला से मिलता जुलता है, मातेई समाज की आराधना पद्धति में प्रकृति का बड़ा महत्व है। ये लोग प्रकृति की हर चीज की पूजा करते हैं। यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। नदी, पहाड़, सूरज, चंद्रमा, जंगल, जीव जन्तु, सांप आदि इनके लिए पूजनीय हैं।

लेखन: डॉ. कायनात काजी, संपादन-संयोजन: सीमा झा


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