अयप्पा मंदिर के 'उल्सवम' को देखने देश-विदेश से भक्तों की उमड़ती है भीड़
केरल का अयप्पा मंदिर भक्तों का तीर्थस्थल है जहां तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही कठिन है लेकिन फिर भी हर साल यहां आने वाले भक्तों की संख्या में कोई कमी नहीं। जानते हैं इसके बारे में
अयप्पा का मंदिर नेरियामंगलम की खास पहचान का हिस्सा है। कस्बे के छोर पर बसे इस मंदिर में भगवान अयप्पा की पूजा होती है। हाल के महीनों में बहुचर्चित रहे सबरीमाला मंदिर जाने वाले स्थानीय लोग इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद अपनी तीर्थयात्रा पर निकलते हैं। मुख्यमंदिर के खुलने के साथ ही यहां शाम को प्रतिदिन 'दीपाराधन' शुरू हो जाता है। दीपाराधन के दौरान मंदिर को लोहे के फट्टों पर लगी दीपों से सजाया जाता है और शाम को उनमें तिल का तेल डालकर रोशनी की जाती है। पेरियार नदी के किनारे बने इस मंदिर की छटा दीपाराधन के दौरान देखने लायक होती है।
मंदिर पहाड़ियों की श्रृंखला के बीच में बना हुआ है। जहां तक पहुंचने का रास्ता थोड़ा कठिन है। घने जंगलों, पहाड़ों से होता हुए मंदिर तक पहुंचना तीर्थयात्रा के समान होता है। और ध्यान देने वाली बात यह है कि मंदिर तक केवल पैदल यात्रा करके ही पहुंचा जा सकता है। गाड़ियों के आवागमन की कोई सुविधा नहीं।
उत्सवम होता है खास
हर साल जनवरी में मकर संक्रांति के आसपास इस मंदिर में उत्सव मनाया जाता है, जिसे स्थानीय लोग 'उल्सवम' कहते हैं। वह उत्सव सात से लेकर दस दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें स्थानीय तथा पहाड़ी पर बसे मुतुवान आदिवासी समुदाय के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। मंदिर और उसके आसपास को सजाया जाता है। भजन-पूजन के अतिरिक्त, हर शाम वहां पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिनमें लोकगीत, नाटक, नृत्य आदि आते हैं। उन कार्यक्रमों के माध्यम से स्थानीय संस्कृति को गहराई से महसूस किया जा सकता है। उल्सवम का चरम मकर संक्रांति के दिन होता है। उस दिन सुबह से ही बड़ी पूजा की तैयारी आरंभ हो जाती है। शाम को झूमते-गाते लोग जुलूस के साथ निकलते हैं। मंदिर में एक बड़े हाथी के ऊपर अयप्पा की प्रतिमा को रखकर मंदिर की परिक्रमा की जाती है। इस दौरान बजने वाले 'चंडा' (स्थानीय ढोल) और तुरही की आवाज से गजब का समां बंधता है। उल्सवम अब भी ग्रामीण मेले की संस्कृति को बचाए हुए है, जहां गांव के लोगों की जरूरत का हर सामान बेचा जाता है। हर साल तकरीबन 4 लाख लोग मंदिर में भगवान अयप्पा का आशीर्वाद लेने आते हैं जिनमें भारतीय ही नहीं विदेशी भी शामिल होते हैं। इस मंदिर की मान्यता महज केरल ही नहीं दूर-दूर तक मशहूर है। कहते हैं नहा-धोकर व्रत रखकर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मुराद जरूर पूरी होती है।
कैसे जाएं?
सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन आलुवा 45 किलोमीटर दूर है, जो देश के सभी स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। करीबी हवाई अड्डे की बात करें तो कोचीन हवाई अड्डा 51 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोच्चि-धनुषकोटि मार्ग पर स्थित होने के कारण सड़क मार्ग की सारी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।