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झीलों पर तैरता एक ऐसा घर, जहां कपल अपने हनीमून को बना सकते हैं बेहद रोमांचक

पानी के ऊपर बहते इस घर से कुदरत के नजारों को नजदीक से देखने और महसूस करने का जो अनुभव होगा वो ताउम्र याद रहेगा।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Sun, 29 Jan 2017 01:03 PM (IST)Updated: Mon, 30 Jan 2017 12:36 PM (IST)
झीलों पर तैरता एक ऐसा घर, जहां कपल अपने हनीमून को बना सकते हैं बेहद रोमांचक
झीलों पर तैरता एक ऐसा घर, जहां कपल अपने हनीमून को बना सकते हैं बेहद रोमांचक

ढेर सारे रिश्तेदारों के बीच शादी की रस्में निभाने के बाद जब युवा जोड़े हनीमून के लिए निकलते हैं तो उन्हें एकांत स्थल और मनोरम दृश्यों की तलाश होती है और इन दोनों मानदंडों पर खरा उतरता है केरल का खूबसूरत शहर अलेप्पी। लॉर्ड कर्जन ने इसे पूरब का वेनिस करार दिया था। तो फिर क्यों नहीं हनीमून के लिए चुनें अलेप्पी और बैकवाटर में घंटों घूमती हाउसबोट के अनोखे अनुभव को ..

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कोच्चि की एक शांत सुबह और गेस्टहाउस की खिड़की के बाहर दिखता हरी घास का मैदान। पेड़ों पर चहचहाते हुए पक्षी और किचन के भीतर से आती करी पत्ते की सोंधी-सी खुशबू, लगता है जैसे नाश्ते की तैयारी शुरू हो गई है। एक तरफ उत्साह था अलेप्पी के बैकवाटर में हाउसबोट पर दिन भर सैर करने का, तो दूसरी तरफ उत्सुकता थी कि केरल की संस्कृति को जानने, यहां की कला को पहचानने और विशेष व्यंजनों का स्वाद चखने की। जल्दी से तैयार होकर नाश्ते की टेबल पर आए तो देखा कांच के पारदर्शी जग में गुलाबी पानी था जो हमारे पीने के लिए रखा गया था। पहली बार ऐसा पानी देखने पर कुक शामुगम से राज जानना चाहा तो भाषा की दीवार सामने आ गई। जैसे-तैसे अपना प्रश्न उस तक पहुंचाया तो उसने बताया कि यह पानी पदिमुखम के साथ उबाल कर बनाया है जो स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है।

तो यह पदिमुखम है क्या? पता चला एक पेड़ के तने का टुकड़ा है जिसके एक टुकड़े को पानी में उबाल लेते हैं। शायद यह कोई जड़ी है जो केरल के तेज मसाले वाले खाने को पचाने में सहायक साबित होती है। इडली, सांभर, अप्पम, चटनी और कटे हुए अन्नानास के साथ नाश्ता समाप्त कर हम निकल पड़े अलेप्पी के लिए।कोच्चि को कोचीन भी कहते हैं। यह केरल की व्यावसायिक राजधानी कही जाती है। अरब सागर के किनारे बसे इस शहर में कोच्चि सबसे पुराना बंदरगाह है। दिल्ली से कोचीन की तीन घंटे से ज्यादा की फ्लाइट है और कोचीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से अलेप्पी तक की दूरी 78 किलोमीटर है। कोच्चि के रास्ते कहीं-कहीं गोवा की गलियों जैसे नजर आ रहे थे। दोनों तरफ हरियाली से भरे बंगलेनुमा मकान और बल खाती सड़कें। खुशनुमा था सफर। अलेप्पी में जहां हमारी गाड़ी रूकी वहां पहले से बुक की गई हाउसबोट के लोग हमारे इंतजार में थे। वे उस किनारे तक ले गए जहां सैंकड़ों हाउसबोट अपने मेहमान के इंतजार में सज-धज कर खड़ी थी।

एक-दूसरे को हाथ देकर हम हाउसबोट में चढ़े तो सामने सोफे और कैन की कुर्सियों से ड्रांइग रूम सजा था। आगे डाइनिंग टेबल और बोट के दोनों और बैठने की जगह ताकि पानी के ऊपर बहते इस घर से कुदरत के नजारों को नजदीक से देखा जा सके और महसूस किया जा सके। झीलों की भूलभुलैया और मीठे पानी की नदियों के इस शहर अलेप्पी को पूरब का वेनिस भी कहा जाता है। समुद्र की उफनती लहरों को हर कोई कौतुक से देखता है लेकिन शांत और गहरे पानी की सुंदरता भी कम नहीं होती। दूर तक फैले बैकवाटर में जब हाउसबोट ने अपनी रफ्तार पकड़ी तो दोनों ओर नारियल के झुके पेड़ों के बीच बहते पानी में हमारा रोमांच भी आगे बढ़ निकला। अंबी बोट चला रहे थे और राजू हमारे लिए चाय पकौड़े बनाने में व्यस्त थे। केले के पकौड़ों के साथ और भी सब्जियों के मिक्स पकौड़े और गरम चाय जब हासिल हुई तो लगा सफर की सारी थकान उतर गई है। अब बारी थी प्रकृति के द्वारा उपहार में दिए दृश्यों को निहारने की और उन्हें अपने कैमरे में कैद करने की। साथ ही शुरू हुआ सेल्फी का दौर और हर एंगल से खुद को स्मार्टफोन में बंद कर लेने का शोर। पास से कोई और हाउसबोट निकलती तो उसमें बैठे देशी-विदेशी सैलानी उत्साह से हाथ हिला कर अभिवादन करते। किसी-किसी हाउसबोट के पहले तल पर डांस पार्टी होती हुई भी दिखी।

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बहरहाल हमारी हाउसबोट में टूू बेड रूम का एक घर था। साफ सफेद चादरें बेड पर बिछी हुई और साथ में वॉशरूम। लगता नहीं था कि हम घर से दूर पानी में तैरते हुए एक घर में सफर कर रहे हैं। इन हाउसबोट्स को कई दिन व रातों के लिए भी बुक किया जा सकता है। अगर हनीमून कपल यहां आना चाहें तो उनके लिए अलेप्पी एक वरदान से कम नहीं होगा। पानी के बीच उन्हें एक नया अनुभव होगा और खलल की कोई गुंजाइश ही नहीं है। अब राजू लंच परोसने के लिए कहने लगे। लंच में बेलस्प्राउट फिश तैयार की गई थी जिसे मसाले के साथ पूरा ही तला गया था। प्लेट में जमाई गई मछलियां वास्तव में आकर्षक लग रही थीं। चिकन में ज्यादा खासियत नहीं थी लेकिन बींस और गाजर-मटर की सब्जी को गलाने के बाद नारियल घिसकर डाल देना और उसे एक विशेष स्वाद दे देना हम उत्तर वासियों के लिए खासियत थी। पानी पर तैरते घर में यूं लंच करना निश्चित रूप से अद्भुत था। लंच के बाद गरम गुलाब जामुन। इसी बीच पता चला कि झींगा मछली की खेती यहां होती हैं और इसके कई प्रकार बैकवाटर में मिलते हैं। हमारी फरमाइश पर अंबी ने नाव को किनारे लगाया और एक टापू पर उतरने के लिए कहा। वहां बड़े-बड़े आइस बॉक्स में हर साइज की टाइगर प्रॉन्स थीं। अंबी की सलाह पर हमने टाइगर प्रॉन खरीदी और अब उसे खास मसालों के साथ पकाने का जिम्मा राजू का था। इसी टापू पर पेड़ से ताजा तोड़े गए मलाई वाले नारियल का पानी पीना और खुरच कर मलाई खाना भी कम आनंददायक नहीं था।

अलेप्पी भारत के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। इसका नाम अलापुझा भी है जो केरल का सबसे पुराना शहर है। इस शहर में जलमार्ग के कई गलियारे हैं जो वास्तव में एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में मदद करते हैं। बैकवाटर में हाउसबोट पर सैर करते समय दोनों ओर केरल का ग्रामीण जीवन भी देखने को मिलता है। पानी में कपड़े धोती महिलाएं। छोटी सी नौका में बैठकर जाल बिछा कर मछली पकड़ते पुरुष और दोनों और आयुर्वेदिक मसाज के लिए आमंत्रण देते पार्लर। झील में फली जलकुंभी जब हाउसबोट के इंजन में फंस गई और इंजन का कूलिंग सिस्टम खराब हो गया तो एक बार फिर किनारे लंगर फेंका गया और उसे दुरुस्त किया गया। यहां खेत भी थे और जलधारा भी। समुद्रतल से कोई 4 से लेकर 10 फीट नीचे खेती होती है यहां। इसी बीच शाम होने लगी और राजू ने टाइगर प्रॉन भी तैयार कर दी। दिखने में लाल-गुलाबी प्रॉन खाने में भी मजेदार बताई गई। शाम की चाय और स्‍नैक्‍स खत्म करते, आपस में रोमांच के क्षणों दोहराते और पिकेडली, रियल ड्रीम्स, एन क्रूज, लेमनार्ड लेक जैसे नामों वाली एक मंजिला, दो मंजिला हाउसबोट्स को पार करते हुए हमने भी वापसी की राह ली और किनारे को आ लगे।

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डूबते सूरज की सुनहरी किरणों में चमकता समुद्र जल एक यादगार शाम बन गया। इस सफर की दास्तां बस इतनी थी कि हर तरफ हरियाली और समंदर के ठहरे पानी में दौड़ती नाव अपनी थी। सुकून था, मजा था, मन में उत्साह इस कदर था कि बहते पानी से निकली हर राह की मस्ती दोगुनी थी।अलेप्पी के और आकर्षणनौका दौड़ हर सालअलेप्पी में हर साल एक नौका दौड़ का आयोजन होता है। हर नाव में करीब 100 से ज्यादा नौका चलाने वाले होते हैं जो तेज संगीत के साथ नौका दौड़ाते हैं। कहते हैं कि विजेता को चलवैजन्ती ट्रॉफी देने की परम्परा जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरू की गई थी। अगस्त महीने के दूसरे सोमवार को होने वाली यह प्रतियोगिता अब 60 से ज्यादा वषरें पुरानी हो गई है किन्तु अभी भी उतने ही उत्साह के साथ इसे आयोजित किया जाता है। अलापुझा का रेतीला बीच अलापुझा बीच एक लंबा रेतीला बीच है, जिस पर एक लाइटहाउस भी है। इस लाइट हाउस से पूरे शहर का नजारा और व्यस्त बंदरगाह दिखाई देता है।

मंदिर और चर्च

अलेप्पी के कई मंदिर और चर्च देखने वाले हैं जिनमें से अम्बालापुझा श्री कृष्ण मंदिर, मुल्लकल्ल राजेश्वरी मंदिर, चेट्टाकुलंगरा भगवती मंदिर, मन्नारासला श्री नागराज मंदिर व एडाथुआ चर्च, सेंट एन्डि्रयूज चर्च, सेंट सेबेस्टियन चर्च जैसे कई चर्च आकर्षण का केंद्र हैं।

देखें प्रवासी पक्षी

अलेप्पी के पथिरामन्नल द्वीप प्रवासी पक्षियों की कई प्रजातियों के लिये जाना जाता है। वेम्बनाड झील से घिरा यह द्वीप शानदार है।

कब जाएं

नवम्बर से मार्च के बीच अलेप्पी का मौसम अच्छा रहता है। यहां गर्मी ज्यादा पड़ती है। जून से लेकर सितंबर तक मानसून का समय होता है।

कैसे जाएं अलेप्पी

अलेप्पी के लिए बस, रेल और वायुयान की यात्रा की जा सकती है। कोची हवाईअड्डा यहां के लिए निकटतम हवाईअड्डा है जो मात्र 78 किलोमीटर की दूरी पर है। देश के प्रमुख शहरों से यहां के लिये सीधी बस एवं रेल सुविधाएं उपलब्ध हैं।

यशा माथुर


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