अराणमुला की शानदार विरासत का नायाब नमूना है यह मंदिर, जहां भोग में चढ़ाते हैं 60 तरह के पकवान
केरल का अराणमुला जितना खूबसूरत है उतना ही ऐतिहासिक विरासत से संपन्न। जिसकी एक झलक आप यहां के पार्थसारथी मंदिर मंदिर आकर देख सकते हैं। जानेंगे क्या है इस धार्मिक स्थल में खास।
शिल्प को समर्पित अराणमुला एक ऐसी जगह है जो खासतौर से अपनी सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है, लेकिन विडंबना यह है कि इसके बारे में जितनी खबर होनी चाहिए थी उतनी है नहीं। तो वहां के ऐसे ही एक नायाब जगह के बारे में आज हम जानेंगे...
पार्थसारथी मंदिर
अराणमुला की ऐतिहासिक विरासत का आधार स्तंभ है यह मंदिर। केरल की पारंपरिक शैली में निर्मित यह मंदिर बहुत भव्य और साफ-सुथरा है। कृष्ण को समर्पित यह मंदिर पंबा नदी के तट पर बना है। इसके वास्तुशिल्प को देखते ही शिल्पकारों की दूरदर्शिता साफ पता चलती है। बाढ़ से बचने के लिए उन्होंने इस मंदिर को काफी ऊंचाई पर बनाया है। शबरीमला मंदिर में अयप्पा की पूजा शुरू होने से पहले निकाली जाने वाली शोभा यात्रा का एक पड़ाव यह मंदिर भी होता है। इसी मंदिर में त्रावणकोर के राजा द्वारा दी गई अयप्पा की सोने की पोशाक भी रखी रहती है, जिसे दिसंबर के अंत में यहां से पूरे विधि-विधान के साथ शबरीमला ले जाया जाता है। यह मंदिर अपने 'वल्ला सद्या' अर्थात ओणम के भोज के लिए विख्यात है। ओणम के दौरान इस भोज का आयोजन किया जाता है। इसके लिए मलयाली कैलेंडर के 'चिंगम' महीने की 'अष्टमी रोहिणी' का दिन तय है। उस दिन इस भोज का आयोजन होता है। यह भोज एक विशाल भंडारे की तरह होता है, जिसमें साठ से ज्यादा व्यंजन परोसे जाते हैं। यह सब कृष्ण के भक्तों द्वारा दान में दी गई सामग्रियों से तैयार होता है। प्रसिद्ध गायक केजे येसुदास भी यहां पर होने वाली सद्या में एक दिन के भोज का खर्च वहन करते हैं। पार्थसारथी मंदिर में प्राचीन काल से ही ओणम के अवसर पर सद्या का आयोजन होता आ रहा है।
कब और कैसे?
अराणमुला जाना केरल में किसी भी अन्य स्थान की यात्रा करने के समान ही आसान है। नजदीकी रेलवे स्टेशन चेंगनूर है और हवाई अड्डा तिरुवनंतपुरम! इन सभी जगहों से यहां आने के लिए टैक्सी और बस की सुविधा आसानी से अवेलेबल है। यहां मानसून के समय आएं या बाद में, मौसम सही रहता है। इतिहास से ज्यादा छेड़छाड़ न करते हुए इस स्थान की पुरानी पहचान को अक्षुण्ण रखा गया है।