Article 142 का उपयोग कर सीधे तलाक का फैसला सुना सकता है सुप्रीम कोर्ट, एक्सपर्ट से जानें इसके बारे में सबकुछ
Article 142 आर्टिकल 142 के तहत सिर्फ तलाक ही नहीं बल्कि कई अन्य मामलों में तेजी से फैसला सुनाया जा सकता है। आर्टिकल 142 बेहद पॉवरफुल है जिसका उपयोग सिर्फ सुप्रीम कोर्ट कर सकता है। आइए जानते हैं इसके बारे में सभी जरूरी जानकारी।
नई दिल्ली, सलोनी उपाध्याय। Article 142: शादी दो लोगों के बीच ही नहीं, बल्कि दो परिवारों का भी मिलन भी है। लेकिन कई बार आपसी मनमुटाव, वैचारिक मतभेद और छोटी-छोटी बातें इतनी बढ़ जाती हैं कि बात तलाक तक पहुंच जाती है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक को लेकर आर्टिकल 142 का जिक्र किया, जिसके बाद तलाक के प्रोसीजर को लेकर कई सवाल उठे।
मौजूदा तलाक के कानून के तहत तलाक की अर्जी दायर करने पर कपल्स को कुछ महीनों का वेटिंग पीरियड दिया जाता है, जिसे कूलिंग पीरियड कहा जाता है। उसके बाद ही आगे की सुनवाई होती है, जो एक लंबा प्रोसेस है। यह वेटिंग पीरियड कुछ कपल्स के लिए फायदेमंद साबित होता है, तो कुछ के लिए पीड़ादायक। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने इसी वेटिंग पीरियड को कुछ मामलों के लिए कम करने का फैसला लिया है।
उच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर कपल्स के बीच सुलह की कोई गुंजाइश नहीं है, तो आर्टिकल 142 का प्रयोग करते हुए कूलिंग पीरियड को रद्द कर सीधे तलाक को मंजूरी दी जा सकती है। इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट न तो मामले को फैमिली कोर्ट को रेफर करेगा और न ही इस मामले में 6-18 महीने का वेटिंग पीरियड अनिवार्य होगा।
ऐसे में आर्टिकल 142 के बारे में आप के मन में भी कई सवाल उठे होंगे। इन सवालों को जवाब हासिल करने के लिए जागरण ने सुप्रीम कोर्ट के वकील शशांक शेखर झा से बातचीत की और जाना कि आखिर आर्टिकल 142 क्या है?
क्या है आर्टिकल 142?
आर्टिकल 142 के तहत सिर्फ तलाक ही नहीं, बल्कि कई अन्य मामलों में तेजी से फैसला सुनाया जा सकता है। आर्टिकल 142 बेहद पॉवरफुल है, जिसका उपयोग सिर्फ सुप्रीम कोर्ट कर सकता है यानी सुप्रीम कोर्ट कभी भी किसी भी स्टेप से आगे जाकर नागरिकों के मूल अधिकार और न्याय दिला सकता है। किसी भी नागरिक या किसी भी समुदाय को कोई दिक्कत हो रही है और इसके लिए कानून या संविधान में कोई प्रावधान नहीं है, तो इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट एक कदम आगे बढ़कर भी उनके लिए अलग से फैसला सुना सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई बार आर्टिकल 142 का उपयोग किया है, जहां न्याय का सुनिश्चित करना जरूरी समझा गया है।
क्या आर्टिकल 142 के तहत पति-पत्नी आसानी से तलाक ले सकते हैं?
हिन्दू मैरिज एक्ट के अनुसार, तलाक के मामले में 6 से 18 महीने के कूलिंग पीरियड का प्रावधान है। अगर पति-पत्नी तलाक लेना चाहते हैं, तो फैमिली कोर्ट में दो बार जाना पड़ता है। पहली सिटिंग के बाद 6 महीने का गैप होना चाहिए। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि कई बार आपसी तनाव या गुस्से में आकर कपल्स तलाक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटका देते हैं। ऐसे में उन्हें 6 महीने का समय दिया जाता है कि ताकि वे अपने रिश्ते को एक और मौका दें और तलाक लेने का फैसला बदल दें।
लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर शादी पूरी तरह से टूट गई है, यानी रिश्ते में कुछ नहीं बचा है, तो इस स्थिति में 6 महीने की वेटिंग पीरियड को भी खत्म किया जा सकता है और आर्टिकल 142 का प्रयोग करते हुए कपल को तलाक दिया जा सकता है।
आर्टिकल 142 में तलाक के लिए पूरी तरह से वेटिंग पीरियड को खत्म कर दिया गया है?
वेटिंग पीरियड को हमेशा के लिए खत्म नहीं किया गया है। दरअसल, आर्टिकल 142 का उपयोग तलाक के हर मामले में नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट इसे उन्हीं मामलों में इस्तेमाल करेगा, जिनमें पति-पत्नी के रिश्ते में कुछ नहीं बचा है। दोनों अगर साथ रहते हैं, तो इससे दोनों की मेंटल हेल्थ पर असर पड़ेगा। इस तरह के मामलों में सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 का इस्तेमाल कर कूलिंग पीरियड को रद्द करेगा और शादी को पूरी तरह से खत्म कर देगा।
संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को इतनी पॉवर दी है कि वह आर्टिकल 142 का इस्तेमाल कर हिन्दू मैरिज एक्ट में वेटिंग पीरियड को खत्म कर सकता है।
क्या यह सिर्फ स्पेशल केसेस में ही लागू होगा?
नहीं, ऐसा नहीं है कि आर्टिकल 142 हर उस मामले में लागू किया जाएगा जहां सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि किसी कपल का साथ रहना नामुमकिन है। हालांकि, इस आर्टिकल का उपयोग सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है, इसलिए मामला जब फैमिली कोर्ट और हाई कोर्ट से होकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचेगा, तभी इस आर्टिकल का उपयोग हो पाएगा।
हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत तलाक लेने का अभी क्या प्रोसेस है?
हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत तलाक के दो-तीन प्रोसेस हैं। पहला, जब कपल आपसी सहमति से अलग होना चाहते हैं और सेक्शन 13 के तहत तलाक की अपील करते हैं। ऐसे मामले में कोर्ट में पहली सुनवाई के दौरान कपल से पूछा जाता है कि क्या आप तलाक के लिए तैयार हैं, ऐसे में पति-पत्नी का जवाब ‘हां’ होता है। लेकिन फिर उन्हें दूसरी सुनवाई के लिए 6 महीने का वेटिंग पीरियड दिया जाता है।
दूसरी सुनवाई के दौरान भी पति-पत्नी अलग होने के लिए राजी होते हैं, तो इस आधार पर उन्हें तलाक दे दिया जाता है। लेकिन इसमें कपल को M.O.A यानी मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन पर साइन करना होता है। ये इसलिए होता है ताकि तलाक के बाद दोनों एक-दूसरे पर भविष्य में कोई आरोप नहीं लगाएं या सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के खिलाफ तीखी टिप्पणी न करें। अगर किसी पार्टी को मेंटेनेंस की आवश्यकता होती है, तो यह फैसला इसी दौरान हो जाता है। अगर कपल के बच्चे हैं, तो ये किसके पास रहेंगे या उनका खर्चा कौन उठाएगा या को-पैरेंटिंग होगी, इसका फैसला भी तभी होता है। तब इन बातों के आधार पर तलाक होता है।
दूसरे प्रोसेस में वन साइडेड तलाक के लिए भी कोर्ट में केस फाइल किया जा सकता है। अगर पति-पत्नी में से कोई एक अलग होना चाहता है, तो ऐसे में कोर्ट में अपील की जा सकती है। लेकिन अगर कोई एक तलाक नहीं लेना चाहता है, तो वह कोर्ट में जाकर डिफेंड कर सकता है। इस मामले में कोर्ट को अगर लगता है कि तलाक होना चाहिए, तो सेक्शन-13 के तहत अपना फैसला सुना सकता है।
क्या कुछ मामलों में जल्दी भी तलाक दिया जा सकता है?
बहुत सारे मामले ऐसे होते हैं, जिसके लिए कोर्ट के पास खास अधिकार होते हैं, जैसे कि CPC यानी सिविल प्रोसीजर कोड का सेक्शन 151, जिसके तहत वेटिंग पीरियड को खत्म किया जा सकता है।
उदाहरण के तौर पर पहली याचिका के बाद 6 महीने का वेटिंग पीरियड दिया जाता है, लेकिन अगर आपको ये पीरियड पूरा नहीं करना है, तो दो या तीन महीने का समय लेकर आप सीपीसी-151 की एप्लीकेशन देकर जल्द तलाक की अर्जी डाल सकते हैं। सीपीसी-151 का उपयोग सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही नहीं बल्कि डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, फैमिली कोर्ट और सिविल कोर्ट भी कर सकता है। यह आर्टिकल काफी पॉवरफुल माना जाता है।
मौजूदा तलाक के प्रोसेस में क्या दिक्कतें हैं?
सन 1956 से पहले हिंदू मैरिज एक्ट में तलाक का कोई प्रावधान ही नहीं था। इसे बाद में शामिल किया गया। हिन्दू मैरिज एक्ट में तलाक के पहली सुनवाई के बाद 6 महीने का वेटिंग पीरियड इसलिए दिया जाता है ताकि पति-पत्नी को अपने मामले को सुलझाने का समय मिले और तलाक के फैसले को बदलने का भी मौका मिले।