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Parenting New Rules: बच्चों को आगे बढ़ने और कामयाब बनाने में मददगार साबित हो रहे हैं पेरेंटिंग के ये नए नियम

Parenting New Rules जैसे-जैसे वक्त बदल रहा है पेरेंटिंग के तरीकों में भी कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। पहले की अपेक्षा अब पेरेंट्स बच्चों को लेकर उतने ज्यादा सख्त नहीं जिस वजह से उनका भी सही विकास हो रहा है।

By Priyanka SinghEdited By: Priyanka SinghPublished: Fri, 19 May 2023 01:05 PM (IST)Updated: Fri, 19 May 2023 01:05 PM (IST)
Parenting New Rules: बच्चों को पालने के नए नियम

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Parenting New Rules: बच्चे हैं तो शरारत करेंगे ही, खाने-पीने के लिए उन्हें कभी नहीं टोकना चाहिए, इससे उन्हें नजर लग जाती है, स्कूल चाहे जैसा भी हो अगर बच्चे के मन में पढ़ने की इच्छा होगी तो वह कभी भी पढ़ लेगा..ये कुछ ऐसे प्रचलित जुमले हैं जिन्हें हम बचपन से सुनते आ रहे हैं, लेकिन कल तक जिन बातों को पेरेंटिंग का पक्का नियम माना जाता था अब उन्हें सिरे से खारिज कर दिया गया है। इसके बदले अब बच्चों की परवरिश में नए तौरर-तरीकों को तरजीह दी जा रही है। जानते हैं कुछ ऐसे ही नए नियमों के बारे में..

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लाड-प्यार की सीमा

पहले लोग छोटे बच्चों के साथ अतिरिक्त रूप से लाड़-प्यार जताते थे। मिसाल के तौर पर चलना सीखाते हुए अगर बच्चा गिर जाए तो मां रोते हुए बच्चे को बहलाने के लिए जमीन को मारने लगती थी, लेकिन आज के पेरेंट्स यह समझते हैं कि चलना सीखने के दौरान बच्चे का गिरना स्वाभाविक है। ऐसे में उसके सामने बार-बार जमीन को मारने से बच्चे के मन में बदला लेने की भावना विकसित होगी और उसका आत्मविश्वास भी कमजोर होगा। इसलिए बेहतर होगा कि उसे खुद अपनी गलतियों से सीखने का मौका दिया जाए।

ओवर ईटिंग नहीं

पहले लगो यह मानते थे कि खाने के मामले में बच्चों को टोकना नहीं चाहिए। बच्चों के अच्छे शारीरिक विकास के लिए उन्हें भरपूर भोजन दिया जाना चाहिए पर अब ऐसा नहीं है। आज के पेरेंट्स को यह मालूम है कि कौन सी चीज़ें बच्चों की सेहत को नुकसान पहुंचा सकती हैं। वे ओवर ईटिंग की वजह से पैदा होने वाली ओबेसिटी की समस्या से भी वाकिफ हैं। इसलिए अब माएं अपने बच्चों को सही और संतुलित डाइट देना पसंद करती हैं।

सवाल पूछने की आदत

पहले चुपचाप सिर झुकाकर बड़ों की हर बात मानने वाले बच्चे ही अच्छे माने जाते थे। सवाल पूछने या तर्क-वितर्क करने वाले बच्चों को अनुशासनहीन समझा जाता था पर अब ऐसा नहीं है। आज के पेरेंट्स यह समझने लगे हैं कि उसी बच्चे के मन में सवाल होंगे जिसमें किसी भी विषय पर तार्किक ढंग से सोचने-समझने की क्षमता होगी।

काफी नहीं है सिर्फ पढ़ाई

पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोंगे बनोगे खराब। आज के जमाने में यह पुरानी। कहावत पूरी तरह से गलत साबित हो चुकी है। पहले बच्चों को केवल पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता था पर आज के पेरेंट्स इस बात को बखूबी समझते हैं कि अब केवल पढ़ाई से काम नहीं चलेगा। व्यक्तित्व के संतुलित विकास के लिए स्पोटर्स, म्यूजिक, डांस और पेंटिग जैसी एक्स्ट्रा एक्टविटीज में भी बच्चों को आगे रहना होगा।

पर्सनल स्पेस की अहमियत

एक दौर ऐसा भी था जब बच्चों खासतौर से टीनएजर्स की परवरिश के दौरान उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखना जरूरी माना जाता था लेकिन आज इस मामले में पेरेंट्स थोड़े उदार हैं। उन्हें मालूम है कि ज्यादा सख्ती बरतने पर बच्चे उनसे अपनी बातें छिपाने लगेंगे। इसलिए आज के माता-पिता अपने बच्चों को थोड़ी आजादी और पर्सनल स्पेस देने का फेवर करते हैं और ऐसा भी नहीं कि वो बच्चों को कुछ भी करने की मनमानी करने दे रहे हैं। वे उन पर निगरानी भी रख रहे हैं लेकिन इस ढंग से कि उन्हें किसी तरह की उलझन न महसूस हो।

बेटियों के प्रति उदारता

पहले बेटियों की परवरिश इस ढंग से की जाती थी कि वे कोमल, शांत और सहनशील बनें। इसलिए उन्हें शुरू से ही किचन सेट और डॉल से खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। क्रिकेट, हॉकी और बॉलीबॉल जैसे आउटडोर गेम्स से पेरेंट्स लड़कियों को दूर ही रखते थे। उन्हें ऐसा लगता था कि ऐसे स्पोटर्स से लड़कों के लिए ही बने हैं। पर आज के पेरेंट्स बेटों की तरह ही बेटियों को भी रफ एंड टफ बनाने में यकीन रखते हैं। वे उन्हें सेल्फ डिफेंस के लिए जू़डो-कराटे की ट्रेनिंग दिलवाते हैं। अब लड़कियां भी तरह-तरह की आउटडोर एक्टिविटीज में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। कुल मिलाकर अब बेटियों की परवरिश से जुड़ी स्टीरियोटाइप धारणाएं बदल रही हैं।

उपदेश देना है बेकार

पहले बच्चों को देखते ही माता-पिता उनसे यह कहना शुरू कर देते थे कि आजकल तुम पढ़ाई पर जरा भी ध्यान नहीं देते, तुम अपनी किताबें ढंग से क्यों नहीं रखते, जल्दबाजी में हमेशा तुमसे गलतियां होती हैं। ऐसी बातों से बच्चे बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं और वे उन पर अमल भी नहीं करते। अब पेरेंट्स इस बात को अच्छी तरह समझ चुके हैं कि बार-बार एक ही तरह के उपदेश सुनकर बच्चे उब जाते हैं इसलिए उनके सामने वही बातें दोहराने से कोई फायदा नहीं होगा। अगर हम वाकई बच्चों में अच्छी आदतें विकसित करना चाहते हैं, तो इसके लिए सबसे जरूरी है कि हम खुद में भी बदलाव लाएं।

Pic credit- freepik


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