नारी सशक्तिकरण: परिवार की बन गई पतवार
कुरावली कस्बे के मुहल्ला फर्दखाना के मनोज कुमार जैन कस्बे में ही स्टेशनरी की दुकान चलाते थे। मनोज कुमार के तीन बेटियां ही थीं। 2 मई 2012 को बीमारी के चलते मनोज जैन का निधन हो गया।
नाम है कशिश। संवेदनशीलता से ओतप्रोत कशिश ने अपने नाम की सार्थकता को बरकरार भी रखा। पापा का साया उठ जाने के बाद पूरे परिवार के लिए पतवार बन गई। भरण-पोषण के एकमात्र जरिया स्टेशनरी की दुकान संभाल ली। बड़ी बहन की शादी कर दी और छोटी को उच्च शिक्षा दिला रही है। और हां, खुद भी पढ़ रही है।
कुरावली कस्बे के मुहल्ला फर्दखाना के मनोज कुमार जैन कस्बे में ही स्टेशनरी की दुकान चलाते थे। उनके पिता मानिक चंद्र दुकान भी इसमें सहयोग करते थे। मनोज कुमार के तीन बेटियां ही थीं। 2 मई 2012 को बीमारी
के चलते मनोज जैन का निधन हो गया।
बेटे की मौत ने बुजुर्ग मानिक चंद्र को हिलाकर रख दिया। 90 साल की उम्र में मानिक चंद्र दुकान पर बैठ नहीं पाते थे। पूरे परिवार के भरण-पोषण के लिए दुकान ही एकमात्र सहारा थी। मनोज के निधन के बाद दुकान पर ताला लगा तो परिवार के लिए दिक्कतें होने लगीं। उस दौरान मनोज की बड़ी बेटी नैंसी और दूसरे नंबर की कशिश पढ़ाई कर रही थी। छोटी बेटी निहारिका की उम्र बेहद कम थी।
भरणपोषण में ज्यादा दिक्कत आने पर मनोज की पत्नी सुधा और दूसरे नंबर की बेटी कशिश ने दुकान संभाल ली। सुबह सुधा दुकान पर बैठतीं तो बीए कर रही कशिश कॉलेज से लौटने के बाद दुकान पर बैठती। मां-बेटी की मेहनत से दुकान अपने ढर्रे पर आने लगी। बीते वर्ष 23 जनवरी को बुजुर्ग बाबा मानिक चंद्र ने भी अंतिम सांस ली। इस मुश्किल घड़ी में कशिश ने मां को ढांढस बंधाया, दुकान को अकेले जिम्मेदारी संभालने लगी। परिवार की गुजर ठीक हुई तो सुधा को बड़ी बेटी नैंसी की शादी र्की ंचता सताई।
सुधा और कशिश ने पिछले वर्ष नवंबर में नैंसी की शादी भी कर दी।
बेटे की कमी नहीं खली: सुधा कहती हैं कि बेटियां जिस तरीके से मुश्किल हालात में संबल बनीं, उससे
कभी बेटे की कमी ही नहीं खली। आज बेटियां ही परिवार को चला रही हैं।
मुकेश गुप्ता