अपने काम से बांटता हूं खुशी
‘‘मुझे भी भाते हैं सीरियस रोल, पर कॉमेडी भूमिकाएं देती हैं एक अलग संतुष्टि। कॉमेडी से किसी के चेहरे पर मुस्कराहट ला सकूं, तो उससे बड़ी उपलब्धि कुछ नहीं।’’ अरशद वारसी की ताजा फिल्म ‘इरादा’ भी है कुछ उसी मिजाज की।
अरशद वारसी की कॉमिक टाइमिंग लाजवाब है। हालांकि पिछले कुछ अर्से से उनकी कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कामयाबी हासिल नहीं कर पा रही है। उनकी ताजा फिल्म ‘इरादा’ मुद्दापरक है। उसे नवोदित निर्देशक अपर्णा सिंह ने निर्देशित किया है।
‘इरादा’ में किरदार
‘इरादा’ के संदर्भ में अरशद कहते हैं, ‘मुझे इसकी कहानी उम्दा लगी। शुरुआत में मेरा रोल छोटा था। बाद में मेरा किरदार बढ़ गया। यह कैंसर जैसे मुद्दों को छूती है। कहानी पंजाब की पृष्ठभूमि में है। ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ मनोरंजन के साथ संदेशप्रधान थी। ‘इरादा’ भी उसी मिजाज की फिल्म है। इसमें थ्रिलर का भी पहलू है। मैं पुलिस अधिकारी की भूमिका में हूं। ‘सिंघम’ में अजय देवगन के किरदार से पुलिस महकमे की शान में इजाफा हुआ था। मेरे किरदार के साथ वह बात नहीं है। वह दबा हुआ और मजबूर है। थोड़ा भ्रष्ट भी है। रोचक बात यह है कि हमने इसमें ‘सिंघम’ का प्यारा सा रेफरेंस रखा है। यह रियलिस्टिक फिल्म है। लिहाजा सीमित दायरे में रहकर काम करना पड़ता है। फिल्मों में ही पुलिस के तमाम किरदार देख चुका हूं। किरदार की तैयारी के लिए वहीं से रेफरेंस मिल जाता है। फिल्म ‘सहर’ में भी मैंने पुलिस अधिकारी की भूमिका अदा की थी। ’
शिवाजी की बायोपिक करनी है
अरशद किरदार से जुड़ी अपनी ख्वाहिश बताते हैं, ‘मैं छत्रपति शिवाजी महाराज की बायोपिक करने का इच्छुक हूं। दरअसल, लेफ्टिनेंट कर्नल आरके कपूर ने उनकी ऑटोबायोग्राफी लिखी थी। उन्होंने ही फौजी धारावाहिक निर्देशित किया था। कर्नल साहब ने कहा था कि जब यह फिल्म बनेगी तो मुझे उनकी भूमिका जीवंत करनी होगी। मेरी लंबाई और डीलडौल उनसे मेल खाता है। बहरहाल, हमारा देश वीर सपूतों का रहा हैं। उन्हें केंद्र में रखकर ढेरों बायोपिक बन सकती हैं। दुर्भाग्य है कि ऐतिहासिक फिल्में बनने पर उनका विरोध शुरू हो जाता है। उस इतिहास को पर्दे पर देखना रोमांचकारी अनुभव होगा।’
दोस्त हैं नसीर साहब
अरशद बताते हैं, ‘इरादा’ में मुझे फिर से नसीरुद्दीन शाह के साथ अभिनय का अवसर मिला है। हमने ‘इश्किया’ से पहले भी एक फिल्म में साथ काम किया था। इंडस्ट्री में आने के बाद वह मेरी दूसरी फिल्म थी। नसीर साहब अपनी वैनिटी वैन में थे। मैं नवोदित कलाकार था। मुझे लगा कि उनसे मिलने जाना चाहिए। मैं उनसे मिलने गया। मैंने कहा मैं अरशद हूं। उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि तुम अच्छे एक्टर हो। ‘इश्किया’ में हमारी केमिस्ट्री को देखकर सब हमारी दोस्ती के बारे में पूछने लगे। मैंने कहा कि वह मेरे वरिष्ठ हैं। मैं उनका बहुत सम्मान करता हूं। हमारे बीच दोस्ती नहीं है। फिर नसीर साहब का मेरे पास फोन आया। उन्होंने कहा क्यों भाई, हम दोस्त नहीं हो सकते? इस पर मैंने कहा कि यह कहकर आपने मेरा मान बढ़ा दिया है। उसके बाद से उम्र में अंतर के बावजूद मैं उन्हें अपना दोस्त मानता हूं। ‘इरादा’ में हम न दोस्त बने हैं और न दुश्मन। दोनों का मकसद अलग है। अपर्णा ने कहानी को खूबसूरती से लिखा है।’
मुस्कराहट बिखरेना भाता है
अरशद ने कॅरियर की शुरुआत में विविधतापूर्ण किरदार निभाए। ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ के बाद वह कॉमेडी के दायरे में सीमित हो गए। अरशद कहते हैं, ‘हर दस में से आठ फिल्में कॉमेडी आधारित होती हैं। अगर आप उनसे किनारा कर लेंगे, तो घर बैठना पड़ेगा। कुछ फिल्में छोड़ने का दिल नहीं करता। मसलन, ‘गोलमाल’, ‘मुन्नाभाई सीरीज’ और ‘धमाल’। वे सब मजेदार थी। मैंने भी एक बार तय किया कि अब कॉमेडी नहीं सिर्फ ‘सीरियस रोल करूंगा। उसी दौरान शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के एक कार्यक्रम में मैंने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। वहां पर एक ग्रुप ने परफार्म किया था। उसमें एक दृष्टिहीन बच्ची थी। उसने कहा कि मैं आपकी बड़ी फैन हूं। मैं देख नहीं सकती, लेकिन आपकी विशिष्ट शैली है। उससे पहचान लेती हूं। यह सुनकर लगा कि सिर्फ सीरियस रोल करने का फैसला गलत है। मेरे काम से किसी के चेहरे पर मुस्कराहट आए, उससे बड़ी उपलब्धि कुछ नहींहो सकती है।
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