अनुशासन जबरदस्त लेकिन अम्मी हमेशा से फ्रेंडली रही हैं : सैफ अली खान
अभिनेता सैफ अली खान कहते हैं कि अम्मी का अनुशासन बड़ा जबरदस्त था, लेकिन अम्मी हमेशा से फ्रेंडली रही हैं, हम तीनों बच्चों के साथ...
मम्मी के साथ हमेशा रहा घुलमिलकर
मैं यह बात अक्सर सुन चुका हूं। लोग मुझे छोटे नवाब कहते हैं। मेरे मैनरिज्म्स और बॉडी लैंग्वेज काफी हद तक मेरे वालिद साहब नवाब मंसूर अली खान पटौदी की तरह थे। मुझे भी उन्हीं की तरह क्रिकेट में दिलचस्पी थी। यह लगभग तय हो गया था कि मैं उनकी तरह अपना करियर क्रिकेट में बनाऊं। मेरे बचपन में उन्होंने मुझे क्रिकेट की ट्रेनिंग दी थी, लेकिन उनमें और हम बच्चों में सम्मान और आदर की दीवार हमेशा रही। अम्मी (अभिनेत्री शर्मिला टैगोर) और अब्बा में अगर ज्यादा डिसिप्लिन किसी के पास था तो वह थीं अम्मी। अब्बा का काफी सारा वक्त क्रिकेट मैच, बिलियड्र्स आदि में जाता। अब्बा से गहरा प्यार था, अगर मैं कहूं कि अब्बा के साथ हमारा अनस्पोकेन लव था तो गलत नहीं होगा। अम्मी का अनुशासन बड़ा जबरदस्त था, लेकिन अम्मी हमेशा से फ्रेंडली रही हैं, हम तीनों बच्चों के साथ। अब्बा से बात करने में हम थोड़े डरते थे।
अम्मी ने सिखाया जिंदगी जीना
हमारे पैलेस में हम तीनों बच्चों की परवरिश नवाबी यानी शाही तरीके से हुई, लेकिन अम्मी ने खासतौर पर इस बात का ध्यान रखा कि हममें मानवीय मूल्यों की कोई कमी न हो। अम्मी हिंदू बंगाली तो अब्बा मुसलमान थे, लेकिन अम्मी ने हमें सभी धर्मों के प्रति आस्था और विश्वास रखने की परवरिश दी। हमारे पटौदी महल में सारे त्योहार मनाए जाते थे। सच तो यह है कि जिंदगी हंसी-खुशी कैसे जी जा सकती है, यह अम्मी की देन है। अम्मी का कहना है, जंगल में रहने वाले जानवरों में भी भयंकर झगड़े होते हैं, लेकिन क्या आपने कभी देखा कि जानवर एक-दूसरे से तंग आकर जंगल छोड़कर इंसानों की बस्ती में आए हों। फिर हम तो इंसान हैं। जानवरों से कहीं अधिक बुद्धि हमें ऊपर वाले ने प्रदान की है। फिर हममें आपस में क्यों मनमुटाव होना चाहिए? अम्मा और अब्बा में कभी हमने कोई ऐसा मनमुटाव नहीं देखा, जिसका असर बच्चों पर हो। हो सकता है किसी मुद्दे पर उनमें शिकवें-शिकायतें रही हों, लेकिन हम बच्चों को उसकी भनक तक नहीं लगने दी!
त्योहारों में जींस पहनने पर होती हैं गुस्सा
अम्मी का न केवल व्यक्तित्व ग्रेसफुल है, बल्कि उनके सोच-विचार भी उतने ही ग्रेसफुल हैं। मुझे याद आता है मेरे बचपन में ही उन्होंने यह सिखा दिया था कि किस समय कौन से परिधान पहनने हैं। जब कभी भारतीय त्योहारों में मैंने शेरवानी न पहनकर जींस-टी शर्ट पहन लिया तो अम्मी का गुस्सा होना लाजमी था। इसीलिए मैं कहता हूं जिंदगी जीने का ढंग और जिंदगी दोनों अम्मी की देन हैं।
अम्मी का प्रभाव है हम बच्चों पर
जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, पढ़ाई के लिए मुझे विदेश भेजा गया, लेकिन बच्चों की बढ़ती उम्र में लगाम कब थामनी है और कब छोडऩी है, यह कोई अम्मी से सीखे। अम्मी ने सभी रिश्तों की गर्माहट कायम रखी और हमेशा अपनी गरिमा कायम रखी। मैं, सोहा और सबा किसी के निजी निर्णयों में अम्मी की दखंलदाजी कभी नहीं रही। मेरा और सोहा का अभिनय से जुडऩा अम्मी का ही प्रभाव है। अम्मी ने ऑन स्क्रीन ग्लैमर गर्ल और भारतीय लड़की दोनों किरदारों को एक गहराई दी। अम्मी ने जिस सजीवता से परिवार को जिंदगी दी, शायद ही कोई देगा। अब्बा के जाने के बाद अम्मी ने खुद को रीडिंग और गार्डनिंग में व्यस्त रखा है। इस समय सोहा और कुणाल (खेमू ) के आने वाले बच्चे को लेकर अम्मा खुश हैं। नानी जो बनने वाली हैं अम्मी। अगर अम्मी अभिनय में नहीं होतीं तो किसी भी फील्ड में जातीं तो भी कामयाब होतीं।