बचपन की यादें : खेल संग पढ़ाई में भी आगे रहीं मनु भाकर
गोल्डन गर्ल मनु भाकर ने हाल ही में कोरिया के दायगू शहर में आयोजित एशियाई जूनियर एयरगन चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण पदक जीते हैं। स्वर्ण पदकों के मामले में उनके नाम कई रिकार्ड हैं। आज जानते हैं इस चैंपियन निशानेबाज के बचपन की बातें...
दोस्तो, गोल्डन गर्ल मनु भाकर ने हाल ही में कोरिया के दायगू शहर में आयोजित एशियाई जूनियर एयरगन चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण पदक जीते हैं। स्वर्ण पदकों के मामले में उनके नाम कई रिकार्ड हैं। आज जानते हैं इस चैंपियन निशानेबाज के बचपन की बातें...
छुटपन से ही चंचल थी। घर हो या बाहर कभी टिकते नहीं थे कदम लेकिन जब भी वे आगे बढ़ते एक नई पहचान के लिए बढ़ते। वह जिद्दी नहीं थीं। पर जीतने की ललक ऐसी कि प्रथम पुरस्कार नहीं आए तो दुखी होकर रोने लगतीं। एक बार स्कूल में दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया। उसमें प्रथम स्थान पर आने से चूक गयीं। पदक तो मिला लेकिन मनु को कोई खुशी नहीं थी। जब मां ने समझाया कि अगली बार प्रथम आने का प्रयास करना, तो मनु ने वही किया। वह प्रथम स्थान पर आईं। उसके बाद से तो प्रथम आने की लगन लग गयी उन्हें। केवल खेल ही नहीं। पढ़ाई और दूसरी प्रतियोगिता में भी भाग लेना पसंद था उन्हें। दूसरी कक्षा में थीं तब उन्हें रीडिंग प्रतियोगिता में सबसे तेज पुस्तक पाठ का रिकार्ड बनाया। आज भी वह बैज उनके पास सुरक्षित है। जो बात उनकी मां को आज भी रान करती है वह है आगे बढ़ने का जुनून है और गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करना।
यह अलग बात है कि आज वह निशानेबाजी में देश-विदेश जाकर कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं लेकिन मुक्केबाजी जैसे दूसरे खेलों में भी वह राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची हैं। मनु को बचपन से चित्रांकन पसंद है। कभी स्केटिंग सीखना है तो कभी जूडो कराटे। चूंकि वह खुद इतनी गंभीर थीं और नई चीजें सीखने की लगन थी तो कोई मना भी नहीं करता था। आज भी जब अवसर मिलता है मनु घर की दीवारों को रंगों से सजा देती हैं। उन्हें खराब हो चुके सामान या वेस्ट चीजों से रचनात्मक चीजें बनाना बहुत पसंद है। पिता मरीन इंजीनियर थे। एक बार शिप पर मनु का पूरा परिवार गया। गर्मी की छुट्टी में मनु को वेस्ट से बेस्ट बनाने की चुनौती दी गयी और मनु ने पूरे शिप पर घूमकर वेस्ट चीजें इकट्ठा कीं और उस चुनौती को पूरा कर दिखाया।
एक बार इस चैंपियन खिलाड़ी और उनके बड़े भाई में खूब झगड़ा हुआ। दोनों ने तकिए से इतनी लड़ाई की कि तकिया फटा और सारी रुई बाहर आ गयी। मां ने नाराज होकर दोनों भाई-बहन को घर से बाहर निकाल दिया। हिदायत दी गई कि जी भर लड़ने के बाद ही अंदर आएं। उस दिन के बाद से मनु ने खुद को समझाया कि ऐसी चीजों से बचना है। वह खुद को कभी खाली नहीं रहने देतीं। वह बचपन से ही कम बोलती हैं पर अपनी वजनदार बातों से हैरान कर देती हैं। एक बार किसी ने उन्हें पिता और माता के नाम से पुकारा। यह मनु को अच्छा नहीं लगा। तुरंत आकर मां से कहा कि मैं मनु भाकर अपने नाम से पहचान चाहती हूं, पिता रामकिशन भाकर या मां सुमेधा भाकर के नाम से नहीं। मैं चाहती हूं मेरे नाम से मेरे मम्मी पापा का नाम हो। मां ने जब यह सुना तो हैरत में पड़ गईं, पर भीतर से बड़ी खुश भी हुईं।
प्रस्तुति : सीमा झा