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'मन से योद्धा हैं मेरी मां' : अमीश त्रिपाठी

यदि आप मां के स्‍वरूप को जानना समझना चाहते हैं तो इन दो लेखकों को यहां जरूर पढ़ें।

By abhishek.tiwariEdited By: Published: Fri, 12 May 2017 07:36 PM (IST)Updated: Sun, 14 May 2017 09:05 AM (IST)
'मन से योद्धा हैं मेरी मां' : अमीश त्रिपाठी
'मन से योद्धा हैं मेरी मां' : अमीश त्रिपाठी

मन से योद्धा हैं मेरी मां 

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पूरे परिवार की बुनियाद मेरी मां ऊषा त्रिपाठी हैं। मेरी किताबों की महिला पात्र शक्तिशाली होती हैं। उनकी मजबूती में मेरी मां की मजबूती झलकती है। मैं हमेशा कहता हूं कि योद्धा होना केवल बल से नहीं, बल्कि मन से भी होता हैं और मेरी मां मन से योद्धा हैं। वह मन से बहुत सशक्त हैं। हम तीन भाई, एक बहन है, लेकिन चारों के लिए एक ही कानून होता था। किसी को कम नहीं, किसी को ज्यादा नहीं। मैंने अपनी मां की मेंटल स्ट्रेंथ को खुद में विकसित किया है। वह हमेशा कहती हैं कि कठिनाई किसे नहीं आती, कौन कठिनाई को रोक सकता है। बस उसे मैनेज करना महत्वपूर्ण है कि आप उन्हें सहन कर लेते हैं या टूट जाते हैं। ठोकर किसे नहीं लगती, लेकिन अगर ठोकर लगे और हम गिर भी जाएं तो उठकर चल देना महत्वपूर्ण है। वह कहती हैं हार नहीं मानना है। मेरी जिंदगी के हर पहलू में मां के आदर्शों की छाप नजर आती है। वह प्रैक्टिकल होने पर विश्वास करती हैं।

-अमीश त्रिपाठी, लेखक 

उसूलों पर चलना सिखाया मां ने

मां ने मुझे उसूलों पर चलना सिखाया है। जीवन के प्रति यथार्थवादी नजरिया और चीजों की जो भी समझ है मुझमें, वह मां की बदौलत है। उनकी यादें मेरी सबसे बड़ी दौलत हैं। मुझे याद है जब मैं दिल्ली के मॉडर्न स्कूल में पढ़ता था और दसवीं में फेल हो गया तो यह मुझे बहुत अपमानजनक लगा था। मैं नहीं चाहता था कि मुझे क्लास रिपीट करना पड़े। मेरा साल बर्बाद हो जाएगा यह सोचकर बुरा लग रहा था। इसलिए दूसरे स्कूल में दाखिला लेकर फिर से दसवीं करना चाहता था। पर मां को यह सहन नहीं हुआ। उन्होंने तुरंत कहा, जिंदगी के एक साल भले बर्बाद हो जाए पर इसके लिए मैं नहीं चाहती थी कि तुम अपनी जिंदगी खराब करो। तुम्हारी यह गलती तुम्हारे जीने का नजरिया बदल सकती है। यह बात मुझमें घर कर गई। जैसे-जैसे बड़ा हुआ तो उनकी यह बात गांठ बांध ली। अच्छे मां-बाप अपने बच्चों का साथ निभाते हैं पर उन्हें कभी भी उनकी गलती का साथ नहीं देना चाहिए। गलती को सपोर्ट करना बच्चों को ही भारी पड़ता है। मेरी मां हमेशा कहती थीं कि‍ खाना उतना ही लो, जितना खा सकते हो। बहुत लिया, थोड़ा खाया और छोड़ दिया, यह सही नहीं। अन्न की बर्बादी नहीं करना चाहिए। लेकिन सच यह भी है कि सिर्फ बोलने से बच्चे नहीं सीखते, पैरेंट्स को खुद उदाहरण बनना पड़ता है। आप कहते हैं कुछ, और करते कुछ, तो बच्चे कैसे सीखेंगे? स्कूल में कहते हैं कि आप मूल्यों की शिक्षा देंगे पर मैं कहता हूं कि प्रिंसिपल ही मूल्यहीन, विचारहीन हैं तो कैसे सिखाएंगे बच्चों को। 

-शिव खेड़ा, मोटिवेशनल कोच

प्रस्‍तुति : सीमा झा 


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