जानें, लॉकडाउन में किस तरह बढ़ी वन्यजीवों की गतिविधियां
वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन का जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव को एंथ्रोपॉज नाम दिया है। वैज्ञानिकों को एंथ्रोपॉज के माध्यम से वन्य जीवों ओर इनसानों के के बारे में जानने का मौका मिला।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। कोरोना महामारी के प्रभाव को रोकने के लिए पूरी दुनिया में लॉकडाउन का सहारा लेना पड़ा। लॉकडाउन के कारण इंसानों की गतिविधियां सीमित हो गईं। दूसरी ओर वन्य जीवों की गतिविधियों में विस्तार होने लगा है। कई ऐसे उदाहरण सामने आए, जिनमें वन्य जीव अपने सीमित आवास से इंसानों की घनी बस्ती में आकर घूमने लगे हैं। दिल्ली से सटे नोएडा जैसी भीड़-भाड़ वाली जगहों पर बारहसिंहे के दर्शन हुए। सहारनपुर की सड़कों पर हिरण, हाथी, लंगूर, मोर, बंदरों के झुंड आदि स्वतंत्र विचरण करते देखे गए। लॉकडाउन के दौरान पशु पक्षियों के इस बदले व्यवहार में वैज्ञानिक को महान अवसर दिखने लगा है।
वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन और इस दौरान अन्य जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव को 'एंथ्रोपॉज' नाम दिया है। नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन जर्नल में छपी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एंथ्रोपॉज के अध्ययन से 21 वीं सदी में इंसानों और वन्य जीवों के बीच संबंधों की गहन पड़ताल करने का एक सुनहरा मौका मिला है। वन्य जीव और इंसानों के बीच संबंधों की गहराई को जानकर यह पता लगाया जा सकता है, भविष्य में पशु-पक्षियों और इंसान के व्यवहार में किस तरह के परिवर्तन आने वाले हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि लॉकडाउन ने पशु-पक्षियों के व्यवहार में महत्वपूर्ण परिवर्तन को जन्म दिया है। इस अवधि में इंसानों का सामान्य व्यवहार जहां सीमित हुआ, वहीं वन्य जीवों के व्यवहार में कई परिवर्तन देखे गए। चिली के सेंटियागो में पूमा को देखा गया। इटली के पानी में दुर्लभ डॉलफिन देखे गए तो इजरायल के पार्क में जैकल टहलने निकल गए।
लॉकडाउन समय का अध्ययन क्यों है महत्वपूर्ण
जर्नल में कहा गया है कि वैज्ञानिक समुदाय के लिए यह एक अविश्वसनीय स्थिति है, जिसमें मानव गतिविधियों का वन्य जीवों पर पड़े प्रभाव का अध्ययन किया जा सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, मानव जनसंख्या लगातार तेजी से वातावरण को परिवर्तित कर रही है। इसमें हम यह समझ सकते हैं कि इंसान वन्य जीवों के व्यवहार के साथ किस तरह जुड़े हुए हैं। यह अध्ययन वैश्विक जैव विविधता को संरक्षित करने, पर्यावरण की शुद्धता को कायम रखने और वैश्विक भूकटिबंधीय संबंधी पूर्वानूमानों में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
Written By Shahina Noor