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समय के साथ जरूरी है कि आपका बच्चा भी बनें ऑलराउंडर

आज की भागमभाग वाली जीवनशैली में हर माता-पिता की दिली ख्वाहिश होती है कि उनके बच्चे सबसे अलग और अच्छे नजर आएं। ऐसा तभी संभव है जब आप उनकी परवरिश सही तरीके से करेंगी..

By Srishti VermaEdited By: Published: Sat, 15 Apr 2017 01:04 PM (IST)Updated: Sat, 15 Apr 2017 01:19 PM (IST)
समय के साथ जरूरी है कि आपका बच्चा भी बनें ऑलराउंडर
समय के साथ जरूरी है कि आपका बच्चा भी बनें ऑलराउंडर

क्वालिटी टाइम दें
आज के भागमभाग वाले दौर में यह संभव नहीं रह गया है कि आप अपने बच्चों को क्वांटिटी टाइम दें, लेकिन यह बहुत जरूरी है कि आप दोनों अपने बच्चों को क्वालिटी टाइम जरूर दें। भले ही आप अपने बच्चों को चौबीस घंटे में से केवल पंद्रह मिनट ही दें, लेकिन उन पंद्रह मिनट में आप उन्हें अच्छे विचारों और अच्छे संस्कारों की सीख दें। इससे आप द्वारा दिया गया थोड़ा समय भी सार्थक काम करेगा। यह तो आपको भी पता ही होगा कि बच्चों की अच्छी परवरिश में क्वालिटी टाइम ही महत्व रखता है।

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बनें दोस्त
बाल मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों और माता-पिता के बीच अनुशासन के लिहाज से थोड़ी दूरी होनी भी जरूरी है, लेकिन यह दूरी इतनी भी न हो कि बच्चों और माता-पिता के बीच संवाद ही स्थापित न हो। अगर आप अपने बच्चों को सही दिशा देना चाहती हैं तो किसी बात को लेकर उन्हें समझाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है उनसे संवाद स्थापित करना। बच्चों से आपका सही संवाद तभी होगा, जब उनके प्रति आपका रवैया मित्रवत होगा।

समझें मनोभावों को
बहुत से माता-पिता की आदत होती है कि वे छोटी-छोटी बातों या गलतियों पर बच्चों को डांटने-फटकारने लगते
हैं या उन्हें उपदेश देने लगते हैं। बाल मनोवैज्ञानिकों काकहना है कि बच्चों को डांटने और उपदेश देने की बजाय उनकी जरूरतों, भावनाओं और समस्याओं को समझने की कोशिश करें। हो सकता है कि आपके मन में यह ख्याल आए कि बच्चों को क्या समस्या हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं है। आपकी नजर में जो बातें छोटी-छोटी हैं, हो सकता है कि बच्चों की नजर में वे काफी बड़ी नजर आती हों। अपनी समस्याओं का निदान जब बच्चे अपने माता-पिता से नहीं पाते हैं तो उनके भटकने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।

कारण जानने का प्रयास
बच्चों से अगर कोई भूल या गलती हुई है तो पहले उसका कारण जानने की कोशिश करें कि वह गलती उन्होंने जान-बूझकर की है या भूलवश हो गई है। अगर भूल से उनसे कोई गलती हुई है तो उसे अपने पास बिठाकर प्यार
से समझाएं। हां, यदि उन्होंने जान-बूझकर गलती की है तो उन्हें हिदायत दे सकती हैं कि ऐसी गलती दोबारा नहीं होनी चाहिए। बालमनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अपने बच्चों से संबंध इतने सहज होने चाहिए कि वे गलती करने पर भी अपनी बातें आपसे शेयर कर सकें। अगर आप बच्चों की हर बात से वाकिफ रहेंगी तो उसे समय पर सही राय दे सकती हैं। इससे वे अपने में सुधार करने की पूरी कोशिश करेंगे।

जरूरी है निगरानी
बाल मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि चाहे आप दोनों कामकाजी हों या दोनों लोग ही बहुत व्यस्त रहते हों तो भी यह बात बहुत महत्व रखती है कि बच्चों को अपनी निगरानी में रखें। यह कहना कि आप दोनों के पास समय नहीं है या हम अक्सर घर से बाहर रहते हैं तो यह सोच सही नहीं है। चाहे आप घर में हों या बाहर, बच्चों के संपर्क में रहकर आप उनकी सभी बातों से वाकिफ हो सकते हैं।

खुद चलें सही राह
हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनके बच्चे सही राह पर ही चलें। बालमनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे सही राह पर चलें तो सबसे पहले अपने जीवन से आपको क्रोध को बाहर निकालना होगा। जब तक बहुत जरूरी न हो बच्चों के सामने क्रोध न करें। हमेशा अपने से बड़ों का सम्मान करें, छोटों को स्नेह दें और अपने मित्रों से मर्यादा में रहकर बातचीत करें। याद रखिए बच्चे वैसी ही हरकतें और बातें करते हैं, जैसी वे अपने से बड़ों को घर में करते हुए देखते हैं।

जरा ठहरें और सोचें
बालमनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों की परवरिश में अक्सर माता-पिता यह गलती करते हैं कि वे अपनी इच्छाएं अपने बच्चों पर थोपने की कोशिश करने लगते हैं। इसलिए प्रत्येक माता-पिता को यह चाहिए कि बच्चों के संदर्भ में कुछ भी निर्णय करने से पहले उनकी रुचि जरूर पता कर लें। उदाहरण के लिए आपके बच्चे को फुटबाल खेलना पसंद है, लेकिन आप उसे क्रिकेटर बनाना चाहती हैं या आपके बच्चे को पेंटिंग का शौक है, लेकिन आप उसे स्विमिंग करने को बाध्य करती हैं...। याद रखिए जिस खेल में बच्चे की रूचि नहीं होगी तो उसका परिणाम क्या होगा।लदरअसल हर बच्चे में एक विशेष गुण छिपा होता है और उसे सफलता तभी मिलती है, जब वह स्वतंत्र रूप से अपनी रूचि के कामों को अंजाम दे पाता है।

-डॉ. निशा प्रभाकर

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