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Jallikattu 2020: दो हज़ार साल पुरानी है इस जानलेवा खेल की परंपरा, जानें क्या है जलीकट्टू

Jallikattu 2020 जल्ली/सल्ली का अर्थ ही होता है सिक्का और कट्टू का बांधा हुआ। सांडों के सींग में कपड़ा बंधा होता है जिसे खिलाड़ी को पुरस्कार राशि पाने के लिए निकालना होता है।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Wed, 15 Jan 2020 12:57 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jan 2020 12:57 PM (IST)
Jallikattu 2020: दो हज़ार साल पुरानी है इस जानलेवा खेल की परंपरा, जानें क्या है जलीकट्टू
Jallikattu 2020: दो हज़ार साल पुरानी है इस जानलेवा खेल की परंपरा, जानें क्या है जलीकट्टू

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Jallikattu 2020: तमिलनाडु में कड़े विरोध के बावजूद जलीकट्टू का खेल शुरू हो गया है।  बता दें कि जलीकट्टू यहां कि पारंपरिक खेल प्रतियोगिता है जिसे पोंगल के दिन हर साल ज़ोरो शोरो से मनाया जाता है। इस खेल में लोग बैलों के साथ मैदान में कुश्ती लड़ते हैं। हालांकि यह काफी नुकसानदायक होता है, इस परंपरा को निभाते हुए लोगों के साथ बैल भी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस परंपरा पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए थे लेकिन इसके बावजूद अभी तक यहां इस परंपरा को मनाया जाता है। इस खेल में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले बैल और शख्स को इनाम दिया जाता है।

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जलीकट्टू का मतलब

कहा जाता है कि जल्ली/सल्ली का अर्थ ही होता है 'सिक्का' और कट्टू का 'बांधा हुआ'। सांडों के सींग में कपड़ा बंधा होता है जिसे खिलाड़ी को पुरस्कार राशि पाने के लिए निकालना होता है।

क्या होता है जलीकट्टू

जलीकट्टू तमिलनाडु का चार सौ वर्ष से भी पुराना पारंपरिक खेल है, जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय आयोजित किया जाता है। इसमें 300-400 किलो के सांड़ों की सींगों में सिक्के या नोट फंसाकर रखे जाते हैं और फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींगों से पकड़कर उन्हें काबू में करें। सांड़ों को भड़काने के लिए उन्हें शराब पिलाने से लेकर उनकी आंखों में मिर्च डालने और उनकी पूंछों को मरोड़ा तक जाता है, ताकि वे तेज दौड़ सकें।

कैसे हुई इसकी शुरुआत

प्राचीन साहित्य में इसका नाम इरुथझुवुथल है। इसकी शुरुआत 2000 से भी पहले हुई थी। इस खेल की शुरुआत लड़की के लिए सुयोग्य वर की तलाश के रूप में हुई थी। जो भी व्यक्ति बैलों पर काबू पा लेता था, वहीं भावी वधू का जीवनसाथी चुना जाता था। स्पेनिश बुलफाइट की तरह ही इस खेल में भी योद्धा को बिना किसी हथियार के मैदान में उतरना होता है। उनका लक्ष्य बैलों पर बस काबू पाना होता है, उन्हें जान से मारना नहीं।


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