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Jallianwala Bagh Massacre: ऐसा है जलियांवाला बाग हत्याकांड का दर्दनाक इतिहास...

Jallianwala Bagh Massacre इस हत्‍याकांड में एक हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे जबकि 1500 से भी ज़्यादा घायल हुए थे। जिस दिन यह क्रूरतम घटना हुई उस दिन बैसाखी थी।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Mon, 13 Apr 2020 01:03 PM (IST)Updated: Mon, 13 Apr 2020 01:03 PM (IST)
Jallianwala Bagh Massacre: ऐसा है जलियांवाला बाग हत्याकांड का दर्दनाक इतिहास...

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Jallianwala Bagh Massacre: आज जालियांवाला बाग हत्याकांड को 101 साल हो गए। देश जालियांवाला बाग की 101वीं बरसी पर शहीदों को याद कर रहा है। साल 1919 में अमृतसर में हुए इस नरसंहार में हज़ारों लोग मारे गए थे लेकिन ब्रिटिश सरकार के आंकड़ें में सिर्फ 379 की हत्या दर्ज की गई। जलियांवाला बाग हत्‍याकांड ब्रिटिश भारत के इतिहास का काला अध्‍याय है। आज से 100 साल पहले 13 अप्रैल, 1919 को अंग्रेज़ अफसर जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में मौजूद निहत्‍थी भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी थीं। 

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इस हत्‍याकांड में एक हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे, जबकि 1,500 से भी ज़्यादा घायल हुए थे। जिस दिन यह क्रूरतम घटना हुई, उस दिन बैसाखी थी। इसी हत्‍याकांड के बाद ब्रिटिश हुकूमत के अंत की शुरुआत हुई। इसी के बाद देश को ऊधम सिंह जैसा क्रांतिकारी मिला और भगत सिंह के दिलों में समेत कई युवाओं में देशभक्ति की लहर दौड़ गई। 

जलियांवाला बाग हत्याकांड का इतिहास

अमृतसर के प्रसिद्ध स्‍वर्ण मंदिर, यानी गोल्‍डन टेम्पल से डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित एक छोटे से बगीचे यानी जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को रॉलेट एक्‍ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी। उस दिन बैसाखी भी थी। जलियांवाला बाग में कई सालों से बैसाखी के दिन मेला भी लगता था, जिसमें शामिल होने के लिए उस दिन सैकड़ों लोग वहां पहुंचे थे। 

उसी समय ब्रिटिश आर्मी का ब्रिगेडियर जनरल रेजिनैल्‍ड डायर 90 सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया। सैनिकों ने बाग को घेरकर बिना किसी चेतावनी के निहत्‍थे बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। वहां मौजूद लोगों ने बाहर निकलने की कोशिश भी की, लेकिन रास्‍ता बहुत संकरा था, और डायर के फौजी उसे रोककर खड़े थे। इसी वजह से कोई बाहर नहीं निकल पाया और हिन्दुस्तानी जान बचाने में नाकाम रहे। 

शहीदी कुआं

जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश आर्मी ने बिना रुके लगभग 10 मिनट तक गोलियां बरसाईं। इस घटना में करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी। बताया जाता है कि सैनिकों के पास जब गोलियां ख़त्‍म हो गईं, तभी उनके हाथ रुके। कई लोग जान बचाने के लिए बाग में बने कुएं में कूद गए थे, जिसे अब 'शहीदी कुआं' कहा जाता है। यह आज भी जलियांवाला बाग में मौजूद है और उन मासूमों की याद दिलाता है, जो अंग्रेज़ों के बुरे मंसूबों का शिकार हो गए थे।

शहीद हुए एक हज़ार से ज़्यादा लोग

ब्रिटिश सरकार के अनुसार इस फायरिंग में लगभग 379 लोगों की जान गई थी और 1,200 लोग ज़ख्‍मी हुए थे, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुताबिक उस दिन 1,000 से ज़्यादा लोग शहीद हुए थे, जिनमें से 120 की लाशें कुएं में से मिली थीं और 1,500 से ज़्यादा लोग ज़ख़्मी हुए थे।

भारतीयों को डराना चाहता था जनरल डायर

जनरल डायर रॉलेट एक्‍ट का बहुत बड़ा समर्थक था, और उसे इसका विरोध मंज़ूर नहीं था। उसकी मंशा थी कि इस हत्‍याकांड के बाद भारतीय डर जाएंगे, लेकिन इसके ठीक उलट ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया। 

डायर को देना पड़ा इस्तीफा

हत्‍याकांड की पूरी दुनिया में आलोचना हुई। आखिरकार दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्‍टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया। कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर का डिमोशन कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया।

हाउस ऑफ कॉमन्स ने डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया, लेकिन हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने इस हत्‍याकांड की तारीफ करते हुए उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। बाद में दबाव में ब्रिटिश सरकार ने उसका निंदा प्रस्‍ताव पारित किया। 1920 में डायर को इस्‍तीफा देना पड़ा।1927 में जनरल डायर की ब्रेन हेम्रेज से मौत हो गई।

भगत सिंह पर कुछ ऐसा हुआ था घटना का असर 

जलियांवाला बाग हत्‍याकांड का भगत सिंह पर गहरा असर पड़ा था। बताया जाता है कि जब भगत सिंह को इस हत्‍याकांड की सूचना मिली तो वह अपने स्‍कूल से 19 किलोमीटर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे थे।


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