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भारत ही नहीं बांग्लादेश, नेपाल और चीन में भी देख सकते हैं बसंत पंचमी की धूम, जानें इससे जुड़ी खास बातें

तैयार हो जाइए। ऋतुओं का राजा बसंत आने को है। बसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। इस ऋतु में प्रकृति अपना अपूर्व सौंदर्य बिखेरती है। जानेंगे इस त्योहार से जुड़ी कुछ खास बातें।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Mon, 27 Jan 2020 02:33 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jan 2020 09:04 AM (IST)
भारत ही नहीं बांग्लादेश, नेपाल और चीन में भी देख सकते हैं बसंत पंचमी की धूम, जानें इससे जुड़ी खास बातें
भारत ही नहीं बांग्लादेश, नेपाल और चीन में भी देख सकते हैं बसंत पंचमी की धूम, जानें इससे जुड़ी खास बातें

बसंत ऋतु में खेतों में हरे-पीले फूलों के जैसे कालीन बिछने लगते हैं। हर क्यारी पुकारने लगती है। यही वजह है कि बसंत पंचमी के दिन सब कुछ पीला कर देने का रिवाज है। शास्त्रों में बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा को लेकर एक किंवदंती है कि जब ब्रम्हाजी ने सृष्टि की रचना कर संसार को देखा तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई दिया। सारा वातावरण उदास था। किसी की कोई आवाज नहीं आ रही थी। यह देखकर ब्रम्हाजी ने अपने कमंडल में से पृथ्वी पर जल छिड़का। उन जलकणों के पड़ते ही पेड़ों से एक शक्ति उत्पन्न हुई, जो दोनों हाथों में वीणा लिए हुए बजा रही थी। उस देवी को सरस्वती कहा गया। इसलिए बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है।

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बसंत पंचमी से होती है 'फाग उत्सव' की शुरूआत

यह पूजा भारत, पश्चिमोत्तर, बांग्लादेश, नेपाल तथा कई अन्य राष्ट्रों में भी बड़े उल्लास के साथ की जाती है। कहा जाता है कि बसंत का त्योहार चीनी लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। सैकड़ों वर्ष पूर्व चीन में बसंत को 'नियन' कहा जाता था। उस समय नियन का अर्थ भरपूर फसल वाला साल था। हमारे यहां हर त्योहार की कुछ बेहद अनूठी परंपराएं हैं। कुछ प्रदेशों में बसंत पंचमी के दिन शिशुओं को पहला अक्षर सिखाया जाता हे। सरस्वती पूजन के दौरान स्लेट, कॉपी, किताब तथा पेंसिल-पेन का स्पर्श कराया जाता है। इसी तरह गांवों में आज भी बसंत पंचमी के साथ 40 दिनों का 'फाग उत्सव' शुरू हो जाता है। भारतीय संगीत, साहित्य और कला में बसंतु ऋतु का महत्वपूर्ण स्थान है। संगीत में एक विशेष राग बसंत के नाम पर बनाया गया है जिसे राग बसंत कहते हैं।

पीले रंग का महत्व

कहा जाता है कि सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु का प्रिय रंग भी पीला ही है। शास्त्रों के अनुसार भगवान की पूजा और अर्चना के समय पीले रंग के कपड़े पहनने को शुभ माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पीले रंग को गुरु का रंग कहा गया है। प्राचीन समय से ही पीले रंग को ऊर्जावान रंगों की श्रेणी में रखा गया है। हाल ही में अमेरिका में एक शोध में यह बात सामने आई कि पीला रंग इंसान की उमंग को बढ़ाने के साथ-साथ दिमाग को ज्यादा सक्रिय रखता है। यह अध्ययन अमेरिका के 500 से अधिक लोगों पर तीन साल तक किया गया। इसमें पता चला कि जो लोग पीले रंग के कपड़ों को ज्यादा प्राथमिकता देते थे, उनकी कार्यक्षमता और आत्मविश्वास दूसरें लोगों की तुलना में काफी अधिक था। अध्ययन से यह बात भी सामने आई कि इन लोगों ने अपने कार्य के साथ-साथ अपने को स्वस्थ रखने का ध्यान भी अधिक रखा।

शायद कम लोग ही यह बात जानते होंगे कि भारत में गुरुवार को पीले वस्त्र पहनकर पूजा की जाती है। इसका महत्व ऊर्जा से है। पीले रंग से निकलने वाली तरंगें वातावरण में एक औरा (आभामंडल) बनाती हैं, जो किसी को भी प्रभावित कर सकता है। पूजा में पीले रंग के कपड़े पहनने से मन स्थिर रहता है तथा मन में अच्छे विचार आते हैं। पीले रंग के बारे में कहा जाता है कि यदि आप इस रंग पर अपनी नजरें गड़ाए रखें तो यह तुरंत ही आपके मूड को बदलने की क्षमता रखता है। इससे आप दिनभर ऊर्जावान बने रह सकते हैं।


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