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महिलाओं के बिना समाज की कल्पना है अधूरी: गीता-बबीता फोगाट

महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन और सोच में बदलाव से ही बदलेगी स्थिति।

By Srishti VermaEdited By: Published: Sat, 04 Mar 2017 10:06 AM (IST)Updated: Tue, 07 Mar 2017 11:55 AM (IST)
महिलाओं के बिना समाज की कल्पना है अधूरी: गीता-बबीता फोगाट
महिलाओं के बिना समाज की कल्पना है अधूरी: गीता-बबीता फोगाट

 ओलंपियन पहलवान गीता व बबीता फोगाट का कहना है कि महिलाओं के सशक्तिकरण से ही सशक्त होगा समाज। आज भी फैसले लेने का हक नहीं है आधी आबादी के पास। महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन और सोच में बदलाव से ही बदलेगी स्थिति। व्यवस्था ऐसी भी बने कि एक भी बेटी का न हो कोख में कत्ल...

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महिलाओं के इतने संघर्ष के बावजूद सशक्तिकरण का सवाल क्यों बना हुआ है?
गीता: महिलाओं के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती लेकिन आज भी गिनती भर यशस्विनी महिलाओं को छोड़ अधिकांश पुरुषों की गुलामी करने के लिए मजबूर हैं। निर्णय लेने का अधिकार आज भी पुरुषों के ही पास है, चाहे वह महिला के व्यक्तिगत जीवन से ही संबंधित क्यों न हो। यह स्थिति शिक्षित समाज में भी है, कहीं प्रत्यक्ष तो कहीं अप्रत्यक्ष। इस स्थिति को बदलने के लिए महिलाओं को जागना होगा, अपनी उपलब्धियों को इतना बड़ा करना होगा कि कोई तुलना करने की स्थिति न रहे।

और यह जागृति आएगी कैसे?
गीता: हर स्त्री को अपने फैसले खुद लेने का अधिकार है लेकिन पुरुष प्रधान समाज स्त्री को इससे वंचित किया जाता रहा है। यह जरूरी है कि हर महिला अपने जीवन के महत्वपूर्ण फैसले खुद ले। इसके लिए आर्थिक रूप से भी उसका सक्षम होना जरूरी है।

रेसलिंग में शानदार कॅरियर को छोड़ दें तो वो कौन सी बात है जिससे आपको सशक्त होने का एहसास हुआ?
गीता-बबीता: जब हम बहनें अखाड़े में उतरी थीं, उस समय लड़कियों का कुश्ती लड़ना मानो उल्टी दिशा में नदी बहने जैसा था। घर- परिवार भी पक्ष में नहीं था, लेकिन माता-पिता हमारे फैसले के साथ थे। अगर किसी बेटी को उसकी भावनाओं की कद्र करने वाला पिता मिल जाए और इ ̈छाशक्ति मजबूत हो तो उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।

कन्या भ्रूण हत्या, घूंघट प्रथा और दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों के बीच स्त्री सशक्तिकरण की अवधारणा कैसे सच होगी?
बबीता: बेटियों के प्रति अभिभावकों की सोच बदलने से। वंश बेटों से चलते हैं, इस तरह की अवधारणा को अब त्यागने का समय आ चुका है।
गीता: बेटियां भी नाम रोशन कर सकती हैं। जब समाज यह समझने लगेगा तो क्रांतिकारी बदलाव आकर रहेगा।

इसका मतलब सोच बदलने की शुरुआत परिवार से होनी चाहिए? 
गीता: अपनों का साथ होना, सौ समस्याओं का एक समाधान है। हमारा फोकस इसी लक्ष्य पर होना चाहिए।
बबीता: अपनी विचारधारा भी बदलनी होगी। मुझे कभी नहीं लगा कि मैं कुश्ती लड़के के साथ लड़ रही हूं या लड़की के साथ। फोकस हमेशा जीतने पर रहा।

कोई सुपर पॉवर मिले तो...
गीता-बबीता: तो हम एक भी बेटी का कोख में कत्ल नहीं होने देंगी!
प्रस्तुति- भिवानी से बलवान शर्मा


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