झूठी बात करता तो गले में सुर नहीं होता
नफरत के नालों के बीच सरहद पार से प्यार का संदेशा लाते और संगीत को एक सच्चाई बताते हैं गुलामअली...
मौसिकी की बात हो, गजल का अहसास हो और गुलाम अली का जिक्र न हो ऐसा हो नहीं सकता। हिंदुस्तान में आकर वे यहां के लोगों के प्यार की बात न करें, यह भी नहीं हो सकता। नफरत के नालों के बीच सरहद पार से प्यार का संदेशा लाते और संगीत को एक सच्चाई बताते हैं गुलामअली... सुर, संगीत और सरहद के बारे में उन्होंने विस्तार से बात की यशा माथुर से...
गलत सी रहे संगीत के टेलर
आजकल लोग स्टेज म्यूजिक को ज्यादा पसंद करते हैं। उन्हें दूसरी तरह का म्यूजिक समझ में नहीं आता है। न्यू यॉर्क में जब किशोर उम्र के बच्चे मुझसे कहते हैं कि अंकल, हम आपको बहुत सुनते हैं, हमें बहुत मजा आता है, तो सुनकर अच्छा लगता है। यह लगाव की बात है। आज भी
म्यूजिक वही है, सरगम वही है। कोमल, तीव्र स्वर वही हैं, जिसमें पूरी दुनिया का संगीत समाया है। आजकल जिसे नया म्यूजिक कह रहे हैं वह इसके टेलरों पर निर्भर करता है। जो इसे सीने वाले टेलर हैं न, वे गलत सी रहे हैं। इसकी डिजाइनिंग गलत है। म्यूजिक कंपोजर, सिंगर और फिल्मों की बात करूं तो मैं मानता हूं कि लोगों को अच्छा संगीत देना चाहिए। गालिब की गजलें गाने के लिए अक्ल चाहिए, जो आज नहीं है।
हाय-बाय से म्यूजिक नहीं चलता
गजल गाने वाले ही नहीं, सुनने वाले भी कम हो रहे हैं। गजलों का चलन घटा है तो इसका कारण यह है कि गजल के सुर और ताल बहुत मेहनत केबाद साधे जा सकते हैं। गाने से पहले लद्ब्रजों की अदायगी समझना और उन पर यकीन करना जरूरी है। मैं जो भी गजल गाता हूं, वह मेरे दिल के
करीब होती है। वैसे सिखाने वाले और गजल सीखने का जुनून रखने वाले कम हो गए हैं। अपने बेटे और पोतों को जब मैं समझाता हूं कि गजल ऐसे गाई जाती है और क्लासिकल यह है तो वे मेरी बात समझते हैं। यह माहौल की बात होती है। अब अगर माहौल ही हाय-बाय का है तो इस हाय-बाय से म्यूजिक नहीं चलता, म्यूजिक तो म्यूजिक से ही चलता है।
सच का नाम है सुर
आजकल फिल्मों में लोक संगीत को आसान करके ले लिया जाता है, जिसमें पोयट्री कहीं नहीं होती। यह हर आदमी को जल्दी समझ में आ जाता है। जिन्हें लोक संगीत का पता ही नहीं है, उन्हें सही या गलत क्या समझ आएगा? हर दौर में हमेशा हल्की बात ज्यादा लोकप्रिय हुई है या सच के मुकाबले झूठ ज्यादा लोकप्रिय होता है लेकिन मैं तो उसे झूठ ही कहूंगा। मैं झूठी बात का कायल नहीं हूं।
अगर मैं झूठी बात करता तो मेरे गले में सुर नहीं होता। यह आने वाले कलाकार भी सुन लें कि जो आदमी सच को पसंद करेगा, उसमें ही सुर बसेगा। सुर सच का नाम है। जब भी कोई गाए तो पहले सीखे। पानी, पानी... जैसे गाना किसी को समझाने की जरूरत नहीं है। सब पानी में चले जाते हैं। वह तो आसान म्यूजिक है। आसान म्यूजिक सुनने में भी आसान होता है। दूसरे म्यूजिक सुनने में अक्ल लगती है। मेरा मुझसे सुनो जब मुझसे कोई कहता है कि आप उस गायक का गाया सुनाएं तो मैं कहता हूं आप उसका उसी से जाकर सुनना। मेरा मुझसे सुनो। साठ साल हो गए मुझे परफॉर्म करते हुए। इतने सालों में मैंने आज तक किसी का गाया गाना नहीं गाया। मेरी किसी रिकॉर्डिंग में किसी की कॉपी नहीं है। सहगल साहब से लेकर बेगम अख्तर और फरीदा खानम, मेंहदी हसन साहब, जगजीत जी। सब कमाल हैं लेकिन मैंने किसी की चीज नहीं गाई जबकि मुझे उनकी सारी गजलें याद हैं। मैं उन्हें पसंद करता हूं लेकिन गाता नहीं हूं।
एक बार फौज के कार्यक्रम में जनरल ने किसी और सिंगर की गजल गाने को कहा तो मैंने कहा कि मुझसे गड़बड़ हो जाएगी। आप उनसे ही सुनें। एक जिद भी होती है अपने काम के साथ, प्यार की जिद। अपने काम के साथ जितना प्यार करेंगे, उतनी ही पहचान बढ़ेगी। आवाज की सरहद नहीं आवाज की कोई सरहद नहीं है। जैसे परिंदे नहीं रुकते, वैसे ही आवाज भी नहीं रुकती। मुझे कोई कितना भी काबू कर ले, एक कमरे में बिठा दे लेकिन मेरी आवाज तो सुनी जाएगी। संगीत को कोई नहीं बांध सकता।
यह तो रूहानी चीज है, चाहे यह कहीं का भी हो, घुस जाता है दिलों में जाकर। हमारे जमाने में लोग मेहनत करते थे, सीखते थे। सीखना तो बहुत जरूरी है हर आदमी के लिए। यह एक संदेश है। मौसिकी में अपने काम को सीखकर आगे आएं। जो मेहनत करेगा, वह सुना जाएगा। सच बात सामने से मुश्किल लगती है लेकिन बाद में वह अच्छी लगने लगती है।
नफरत है तो प्यार भी
अगर नफरत करने वाले लोग हैं, तो हर जगह प्यार करने वाले भी कम नहीं। हिंदुस्तान में आते-आते मुझे 34-35 साल हो गए हैं। पाकिस्तान में मुझे जो प्यार मिला, उसकी वजह से ही तो मुझे हिंदुस्तान बुलाया गया। मुझे दोनों जगह इतना प्यार मिलता है कि मैं इसे कम-ज्यादा नहीं कह सकता। यहां लोग ज्यादा हैं तो ज्यादा प्यार मिला। हिंदुस्तान में आकर परफॉर्म करना हर कलाकार के लिए खास होता है। यहां फनकार को जो मुहब्बत और इज्जत मिलती है, वह कहीं और नहीं मिलती।
अभी तक स्टूडेंट हूं
मुझे साठ साल हो गए लेकिन अभी भी मैं अपने आपको स्टूडेंट ही समझता हूं। कोई क्लासिकल राग या ऐसी चीज जिसे नहीं सुना हो तो उसके पीछे पड़ जाता हूं कि इसे करना ही है। एक दिन लंदन में अपने दोस्त के यहां सितार की एक रिकॉर्डिंग सुनी, जिसमें शाम का राग पूरिया कल्याण बज रहा था। वह मुझे याद नहीं था लेकिन फिर मैं उसे याद करके ही पीछे हटा। कुछ नोट्स अगर बचपन में सीखे हों तो नई चीज भी याद हो जाती है।
यशा माथुर