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    एक्सपर्ट से जानें, जीवन में सुख-शांति हासिल करने के लिए आशावादी बने रहना क्यों है ज़रूरी?

    By Priyanka SinghEdited By:
    Updated: Mon, 20 Jul 2020 06:29 PM (IST)

    हमारा कल आज से बेहतर होगा। अगर हम इसी आशावादी सोच के साथ जि़ंदगी के रास्ते पर कदम बढ़ाएं तो तमाम बाधाओं के बावज़ूद मंजि़ल तक पहुंचने का उत्साह और खुद पर भरोसा कायम रहेगा।

    एक्सपर्ट से जानें, जीवन में सुख-शांति हासिल करने के लिए आशावादी बने रहना क्यों है ज़रूरी?

    हमारे व्यक्तित्व और विचारों से ही जीवन की दशा प्रभावित होती है। पॉजि़टिव सोच हमेशा हमारी जि़ंदगी को बेहतरी की दिशा में ले जाती है। अब सवाल यह उठता है कि इसका सही तरीका क्या होना चाहिए? क्या कोई ऐसा फॉर्मूला है, जिसके ज़रिए हमें मानसिक शांति मिले?...इसका एकमात्र जवाब यही है कि आशावाद लाख दुखों की एक दवा है।

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    छोटी सी आाशा

    आशा एक ऐसा भाव है, जो हमारे अंतर्मन में शांत रस का संचार करता है। शांत का तात्पर्य यह है कि सभी प्रकार के विकारों का शमन हो जाए। जीवन-स्थितियों या घटनाओं में सकारात्मक परिवर्तन का विश्वास ही आशा है। निराशा को दूर करने के लिए मनोविज्ञान में जो उपचार की पद्धति अपनाई जाती है, वह भी आशा या उम्मीदों पर ही आधारित होती है। 

    कहानियां भी देती हैं खुशी

    इस भाग-दौड़ भरी जि़ंदगी में हमें हर पल तनाव का सामना करना पड़ता है लेकिन आशावादिता स्वाभाविक रूप से भारतीय जनमानस में रची-बसी है। जब भी कोई परेशानी आती है तो उससे उबरने के लिए बातचीत के दौरान अकसर लोग, भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं, जहां चाह, वहां राह, सब्र का फल मीठा होता है, उम्मीद पर दुनिया कायम है, जैसे मुहावरों और कई प्रेरक प्रसंगों या कहानियों का जि़क्र करते हैं। हमारी लोक कथाओं के अंत में भी हमेशा ही संदेश होता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। कहानियां मात्र मन बहलाने का साधन नहीं होतीं, बल्कि वे हमारी मनोदशा में पॉजि़टिव बदलाव लाने की ताकत रखती हैं। 

    निराश न हो मन

    आज पूरी दुनिया में लोग डिप्रेशन और तनाव जैसी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसका मूल कारण यही है कि छोटी-छोटी समस्याओं से घबरा कर वे उम्मीदों का साथ छोड़ देते हैं। पिछले एक दशक में ब्रेन स्कैनिंग और इमेजिंग जैसी तकनीकों के विकास से मस्तिष्क में होने वाली गतिविधियों का विस्तृत अध्ययन संभव हुआ है। अब विभिन्न मानसिक रोगों की जड़ में छिपे असली कारण को समझना संभव है। आशावादी सोच का न्यूरोट्रांसमीटर्स पर क्या असर पड़ता है, इस विषय पर पूरी दुनिया में वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं।  

    भय को दूर भगाएं

    हमें सकारात्मक बने रहने से रोकने वाला मुख्य तत्व है-भय। इससे निपटने के लिए पहले हमें अपने आप से यह उम्मीद रखनी होगी कि हां, मैं यह कार्य कर सकता हूं। भय उत्पन्न होता है, हमारे दिमाग के एक बादाम जैसे छोटे से हिस्से में। जिसे एमिगैडला कहा जाता है। डर का भाव ब्रेन में कुछ ऐसे केमिकल्स पैदा करता है, जिनकी वजह से हृदय गति का तेज़ होना, मांसपेशियों का खिंचाव, सर्दियों में भी पसीना आना और कंपन जैसे लक्षण नज़र आते हैं, जो शरीर को खतरे का संकेत देते हैं। भय हमारे हीलिंग सिस्टम को बाधित कर देता है। इससे उबरने में आशावादी सोच ही मदद करती है। अगर व्यक्ति पुन: स्वस्थ होने की उम्मीद रखे तो चोट या गंभीर बीमारियों से हीलिंग ज्य़ादा तेज़ गति से होती है।     

    अंत में,आशावाद एक ऐसा उपकरण है, जिसका उपयोग किसी भी उम्र में सीखा जा सकता है।

    डॉ. अभिलाषा द्विवेदी (लाइफ कोच)