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जीत की राह : हम बदलेंगे तो बढ़ेंगी ही स्वावलंबी बेटियां, हर क्षेत्र में लहरा रही जीत का परचम

बाधाओं को लांघकर जीतने का यह हुनर उनमें आता कहां से है? सफल बेटियों व अभिभावकों की मानें तो इसमें बेटियों के साथ खड़े होने चलने का धैर्य और उनकी परवरिश का खास योगदान रहा है तभी तो वे स्वावलंबन के साथ लगातार बढ़ रही हैं आगे...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 11 Jun 2022 03:41 PM (IST)Updated: Sat, 11 Jun 2022 03:41 PM (IST)
जीत की राह : हम बदलेंगे तो बढ़ेंगी ही स्वावलंबी बेटियां, हर क्षेत्र में लहरा रही जीत का परचम
अब आश्चर्यचकित नहीं करता बेटियों का देश की सर्वोच्च और कठिन परीक्षा यूपीएससी में अव्वल आना।

सीमा झा। देश की सबसे कठिन परीक्षा में चयनित होने का यकीन था, लेकिन अव्वल आने का नहीं। परिणाम आते ही मां और नानी को खुशखबरी दी। यह सुनकर नानी और मां के खुशी के आंसू रुक नहीं रहे थे। नानी अपनी बेटी को आइएएस बनते देखना चाहती थीं, पर आज नातिन ने उनका सपना पूरा कर दिया। बात हो रही है हाल ही में आए यूपीएससी के परिणाम में आइएएस टापर श्रुति शर्मा की, जिनकी मां रचना शर्मा एमएससी हैं, लेकिन बेटी की सफलता का श्रेय रचना उसकी नानी को देती हैं। रचना के मुताबिक चुनौतियों से लडऩे का जो जच्बा श्रुति में है, वह नानी ने उसे दिया है।

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श्रुति भी मां और नानी को अपनी ऊर्जा व प्रेरणा मानती हैं। दूसरी कहानी है हरियाणा महेंद्रगढ़ की दिव्या तंवर की। तंगहाली में रहते हुए पहले प्रयास में ही यूपीएससी परीक्षा पास करने का श्रेय वह अपनी मां को देती हैं। 438वीं रैंक पाने वाली दिव्या तंवर मानती हैं कि परीक्षा की तैयारी के दौरान उनके पिता के देहांत ने परिवार को दोराहे पर ला खड़ा किया था, लेकिन उनकी मां ने खुद को टूटने नहीं दिया। मजदूरी करके बच्चों को पढ़ाने के प्रयासों से यह जता दिया कि संघर्ष के अंधेरे समय में ही उजाले की आस छिपी है। दिव्या के मुताबिक, उनकी मां ऐसी न होतीं, ये कठिनाइयां, चुनौतियां सामने न होतीं तो उन्हें भी प्रथम प्रयास में कामयाबी हासिल नहीं हुई होती।

तब हो पाएंगी खुद के लिए खड़ी

समाजशास्त्री ऋतु सारस्वत कहती हैं, यदि माता-पिता बच्चों को यह यकीन दिलाते हैं कि आप उनके हर फैसले में साथ हैं तो समाज की सोच बेटियों के प्रति क्या है, यह बात गौण हो जाती है। बेटियां माता-पिता की अंगुली पकड़कर बड़ी होती हैं और उनकी स्नेहिल छांव में पलते-बढ़ते एक दिन खुद के लिए खड़ी हो जाती हैं। भारतीय वायुसेना की पहली पायलट शिवांगी सिंह के पिता हरिभूषण सिंह (जो एक शिक्षक हैं) कहते हैं, शिवांगी को लेकर हम कभी असमंजस में नहीं रहे, क्योंकि उसे मालूम था कि उसको क्या करना है। वह कभी कम में संतोष नहीं करती थी।

सौ प्रतिशत देने का उसका जच्बा हमें संतोष देता था। उसकी मां ने बिटिया की दिनचर्या, सेहत व पढ़ाई का खयाल रखा, हमने आवश्यक सुविधाएं जुटाईं और बिटिया आगे बढ़ती गई। इसी तरह, इस वर्ष यूपीएससी परीक्षा में 17वीं रैंक पाने वाली महक जैन के पिता प्रदीप जैन कहते हैं, यदि बिटिया में प्रतिभा है तो आपको उसकी हर छोटी-बड़ी चीज का खयाल रखना होता है, उसकी जरूरत को समझना होता है, बाकी वह सक्षम है, खुद कर लेगी। महक जब पहली बार प्रारंभिक परीक्षा में सफल नहीं हुई तो हताश हो गई, पर रुकी नहीं। वह और अधिक मेहनत करने लगी और हमने भी पहले से ज्यादा कई समझौते किए। सामाजिक दबाव से उसे बचाया साथ ही घर में अनुकूल माहौल बनाए रखा।

रुचि का हो सम्मान

आज भी यह सोच बरकरार है कि बेटियों के लिए मेडिकल या अध्यापन का क्षेत्र बेहतर है। यदि वे इन दोनों से बाहर कोई और करियर चुनने की सोच रही हैं तो अभिभावकों को उनकी रुचि का सम्मान करना चाहिए। यही बात हरिभूषण सिंह ने भी अपनी बड़ी होती बिटिया शिवांगी सिंह को लेकर महसूस की। वह कहते हैं, शिवानी दसवीं कक्षा में टापर रही, हम उसे लेकर पहले से ही आश्वस्त थे। उसने पहले कंप्यूटर साइंस चुना, तब भी हम साथ थे। हालांकि एक समय जब शिवांगी को लगा कि कंप्यूटर साइंस से बेहतर मैकेनिकल इंजीनियरिंग है तो हमने सबसे मशविरा भर किया और अपनी इच्छा उस पर थोपने के बजाय उसका साथ दिया। इस संदर्भ में थल सेना की पहली महिला कंबैट एविएटर कैप्टन अभिलाषा बराक के पिता कर्नल (अवकाश प्राप्त) ओम सिंह बराक कहते हैं, अभिलाषा पहले डाक्टर बनना चाहती थी तो हमने कहा यह सही रहेगा तुम्हारे लिए। उसके बाद उसकी इच्छा हुई इंजीनियरिंग में जाने की हुई तो तब भी हमने उसका साथ दिया। बाद में उसने भाई को देखकर जब आर्मी में जाने का निश्चय किया तो यह भी हमारे लिए गर्व की बात थी।

सोच पर करें प्रहार

2014 की यूपीएससी टापर ईरा सिंघल की मां अनीता सिंघल के मुताबिक, बेटी हो या बेटा, दोनों एक हैं, दोनों के प्रति नजरिया समान रहे तो चीजें आसान हो जाती हैं। ओम सिंह के अनुसार, अभिभावक भी उसी समाज से आते हैं, जहां बेटे-बेटियों में भेदभाव आमतौर पर देखा जा सकता है। इसलिए वे भी भूलकर बैठते हैं। वह कहते हैं, हम मूलरूप से हरियाणा से हैं। उसी भेदभाव वाले समाज से आए हैं। यह अलग बात है कि आर्मी में जाने के बाद हमारी पुरानी सोच पर प्रहार हुआ। हमें समझ में आया कि जेंडर नहीं व्यक्ति मायने रखता है। अभिलाषा भी यही मानती हंै। ओम सिंह के मुताबिक, बेटियों को आगे बढ़ाने में चुनौती अपने भीतर जमी हुई उसी पारंपरिक सोच पर प्रहार करने की है। अच्छा हो, इसकी शुरुआत हर मां बाप करें ताकि समाज में एक संदेश जाए कि बेटियां सब कर सकती हैं। वे किसी से कम नहीं हैैं।

भर सके ऊंची उड़ान

मधुलता अवस्थी स्कूल के दिनों में एथलेटिक्स में अपने जिले व राज्य (मध्य प्रदेश) में अव्वल आती थीं। बाद में वह स्पोट्र्स टीचर बनीं, पर उनके नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई। दरअसल वह गत वर्ष की यूपीएससी परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल करने वाली जागृति अवस्थी की मां भी हैं। जब उन्हें लगा कि बेटी को उनकी जरूरत है तो स्पोट्र्स टीचर की नौकरी छोड़ दी। एक टापर की मां होने के लिए जो विशेष योग्यता चाहिए, वह क्या है? इस पर वह कहती हैं, उनके लिए परिवार को सबसे सुरक्षित जगह बनाना। ऐसी जगह जहां वे अपने पंख फैला सकें ऊंची उड़ान के लिए। वह कहती हैं, हम पांच बहनें थीं। पिता जी ने सबको बराबर पढ़ाया, अवसर दिए। समाज की परवाह किए बिना हमें आगे बढऩे की सीख दी। हमने अपनी बेटी को और बेहतर परवरिश देने की कोशिश की। उसके मन को समझना, हताशा में साथ खड़ा होना, इससे बड़ा साथ क्या होगा? इस संदर्भ में हरिभूषण सिंह कहते हैं, सभी बच्चे एक से नहीं होते। अभिभावकों को यही ध्यान रखना है। सबके साथ अलग तरीके से पेश आना है, लेकिन सबको भविष्य की मजबूत इमारत खड़ी करने के लिए मजबूत जमीन परिवार के भीतर ही देनी है। हरिभूषण सिंह की दो बेटियां हैं। शिवांगी सिंह की छोटी बहन एमबीए कर रही हैं। हरिभूषण सिंह कहते हैं, एक बेटी हवाई जहाज उड़ा रही है तो दूसरी बेटी को उसमें चढऩे से भी डर लगता है। वह कहती है कि प्लेन छोड़ो, ट्रेन से चलो, पर हम इससे असहज नहीं होते। बेटी के हर डर को समझना चाहते हैं, उसकी छोटी से छोटी बात का खयाल रखना ही हमारा मकसद है।

मन से थकना मना है

ओम सिंह बराक (कैप्टन अभिलाषा के पिता)

अभिलाषा ने शुरू से आर्मी लाइफ को देखा है। वह शुरू से हाइकिंग, हार्स राइडिंग, माउंटेनियरिंग में रुचि लेती रही है। वह जानती है कि संघर्ष हैं तभी जिंदगी है। यहां जो मानसिक रूप से मजबूत है, वही अंतत: जीतता है। उसने अपनी जिंदगी का हर फैसला खुद लिया है। जब वह शारीरिक रूप से थक जाती थी तो हम उससे एक ही बात कहते कि बेटा, शरीर का थकना स्वाभाविक है, पर मन से थकना मना है। मन से थकना यानी रुक जाना। इसलिए चलते रहो।

तुम कर सकती हो

प्रदीप जैन (महक जैन के पिता)

बेटियों में यह भाव भरना सबसे जरूरी है कि तुम कर सकती हो। हालांकि मंजिल पर पहुंचना आसान नहीं होता। बेटियां अपने स्तर पर संघर्ष करती हैं। इस क्रम में कई बार ऐसा वक्त भी आता है जब वे हार मानने लगती हैं। बस उसी वक्त उन्हें थामना होता है। यहीं उसे परिवार की सबसे अधिक जरूरत होती है। आर्थिक मदद से अधिक महत्व रखता है नैतिक बल बनाए रखने में उनकी मदद करना।

चलते रहें साथ

पी. विजया (खिलाड़ी पीवी सिंधु की मां)

मैं और मेरे पति खिलाड़ी रहे हैं। इसलिए सिंधु की हर परेशानी को समझ सके, पर जरूरी नहीं कि हर अभिभावक की परिस्थिति एक जैसी हो। हां, आपकी बेटियों को लगना चाहिए कि आप खराब दिनों में भी उनके साथ हैं।


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