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Positive India : योग करने वालों को लॉकडाउन में कम हुआ तनाव, बैचेनी और डिप्रेशन

लंबे समय से योग करने वालों का खुद पर नियंत्रण और कोविड से बचने की संभावना अधिक पाई गई। जबकि इसके मुकाबले मध्यकालिक और कुछ समय पहले ही योग करने वालों में यह संभावना लंबे समय से योग करने वालों के मुकाबले कम थी।

By Vineet SharanEdited By: Published: Fri, 19 Feb 2021 08:38 AM (IST)Updated: Fri, 19 Feb 2021 10:05 AM (IST)
Positive India : योग करने वालों को लॉकडाउन में कम हुआ तनाव, बैचेनी और डिप्रेशन
योग करने वालों को लॉकडाउन के चार से दस हफ्ते के दौरान तनाव और डिप्रेशन का सामना कम करना पड़ा।

नई दिल्ली, जेएनएन। योग की ताकत को पूरी दुनिया ने पहचाना, जाना और माना है। यह शरीर को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाने में काफी मददगार है। आईआईटी दिल्ली की एक स्टडी रिपोर्ट के अनुसार योग करने वालों को लॉकडाउन के दौरान चार से दस हफ्ते के दौरान तनाव, बैचेनी और डिप्रेशन का सामना कम करना पड़ा। यही नहीं, इस दौरान योग करने वालों का मानसिक स्वास्थ्य भी काफी अच्छा रहा। योगा एन इफेक्टिव स्ट्रैटजी फॉर सेल्फ मैनेजमेंट ऑफ स्ट्रेस रिलेटेड प्रॉब्लम्स एंड वेलबिइंग नाम से यह अध्ययन आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिकों ने किया है। इस अध्ययन को प्लस वन जनरल में प्रकाशित भी किया गया है।

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ये बनाया आधार

इस अध्ययन में 668 वयस्कों ने कोविड-19 के दौरान (अप्रैल 26 से 8 जून) भाग लिया। प्रतिभागियों को योग करने वाले, आध्यात्मिक जीवन में लीन रहने वाले और दोनों में ही शामिल न रहने वालों के समूह में बांटा गया। इसमें उनके रोजाना के अभ्यास और उसकी प्रतिक्रियाओं को आधार बनाया गया। योग करने वालों को उनके प्रैक्टिस की अवधि- दीर्घकालिक, मध्य कालिक और शुरुआती के आधार पर जांचा गया।

स्टडी में ये आया सामने

लंबे समय से योग करने वालों का खुद पर नियंत्रण और कोविड से बचने की संभावना अधिक पाई गई। जबकि इसके मुकाबले मध्यकालिक और कुछ समय पहले ही योग करने वालों में यह संभावना लंबे समय से योग करने वालों के मुकाबले कम थी। वहीं लंबे समय से योग करने वालों में बैचेनी और डिप्रेशन की दिक्कत नहीं के बराबर थी। उनका मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर था।

पूजा साहनी ने कहा कि कोविड-19 में तनाव से निपटने के लिए योग को सुझाया गया था। पर अभी इसके कई साक्ष्य मिलने शेष हैं, जो इस दावे को पुख्ता करें। यह अध्‍ययन आईआईटी दिल्‍ली के नेशनल रीसोर्स सेंटर फॉर वैल्‍यू एजुकेशन इन इंजीनियरिंग (एनआरसीएफवीएईई) के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किया गया था। इस शोध टीम में डॉ पूजा साहनी, नितेश और मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग, आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर डॉ कमलेश सिंह के अलावा एनआरसीएफवीएईई हेड प्रो राहुल गर्ग शामिल थे।  


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