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Yoga For Bones: ऑर्थोपेडिक से संबंधित बीमारियों में भी काम आता है योग!

Yoga For Bones आर्थोपेडिक-रिलेटेड लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियां जैसे पीठ दर्द और अर्थराइटिस अन्य बीमारियों जैसे डायबिटीज़ और हायपरटेंशन के मुकाबले तेज़ी से बढ़ रही हैं। जीवन प्रत्याशा बढ़ने से बूढे लोगों की आबादी भी बढ़ रही है।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 03:47 PM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2020 03:47 PM (IST)
Yoga For Bones: ऑर्थोपेडिक से संबंधित बीमारियों में भी काम आता है योग!
योग की मदद से क्रोनिक बीमारी जैसी समस्याओं का इलाज आसान, सस्ता और प्रभावी तरीके से किया जा सकता है।

नई दिल्ली। Yoga For Bones: हाल के दिनों में ऑर्थोपेडिक बीमारी में ट्रॉमेटिक (दर्दनाक) और नॉन-ट्रॉमेटिक (गैर-दर्दनाक) दोनों मामलों में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। सड़क यातायात दुर्घटनाओं से ज्यादा कम्युनिकेबल रोग बढ़ रहे हैं और आर्थोपेडिक-रिलेटेड लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियां जैसे पीठ दर्द और अर्थराइटिस अन्य बीमारियों जैसे डायबिटीज़ और हायपरटेंशन के मुकाबले ज्यादा बढ़ रही हैं। जीवन प्रत्याशा बढ़ने से बूढे लोगों की आबादी भी बढ़ रही है। जिसकी वजह से उम्र से सम्बंधित बीमारियां भी बढ़ रही हैं। ये बीमारियां पैथोलॉजिकल फ्रैक्चर और ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों की भंगुरता) है। एक निश्चित समय के बाद इनका इलाज करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। 

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लगातार मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना सबसे आम ऑर्थोपेडिक समस्याएं हैं। जिससे कोगनिटिव इफेक्ट, न्यूरोडीजेनेरेटिव और कनेक्टिव टिश्यू प्लास्टिसिटी परिवर्तन होता है। कोआर्डिनेटेड माइंड-बॉडी अप्रोच योग का मूल होता है, इससे विशेष रूप से क्रोनिक बीमारी जैसी समस्याओं का इलाज आसान, सस्ता और प्रभावी तरीके से किया जा सकता है।

इस मुश्किल और अनिश्चित समय में स्ट्रेस हमारे दैनिक जीवन में फ़ैल चुका है, और इस वजह से योग को ऑर्थोपेडिक मैनेजमेंट के तौर-तरीकों में शामिल करना ज़रूरी हो सकता है। ऑर्थोपेडिक सर्जरी, विशेषकर पोस्ट-सर्जरी में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सर्जरी के बाद के स्ट्रेस को सफलतापूर्वक कम किया जा सकता है और योग की तकनीक द्वारा इस पर नज़र रखी जा सकती है। योग की यह तकनीक एंटी-साइकॉटिक्स और एंटी-डिप्रेसेंट की तुलना में बड़े पैमाने पर बेहतर साबित हो रही है।

बायोकेमिकल और बायोकेमिकल का रोल

योग से उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमी करने में मदद मिलती है। बुढ़ापा बहुत ही कॉम्प्लेक्स घटना होती है और मुक्त कण (फ्री रेडिकल) और जीनोमिक थ्योरी द्वारा पार्ट में एक्सप्लेन की जाती है। एक्सरसाइज़ से शरीर की मांसपेशियां मज़बूत होती हैं और शरीर में फ्री रेडिकल्स भी कम होते हैं। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के अलावा एक्सरसाइज़ ट्रेनिंग से डीएनए की हानि होना भी कम हो जाता है और डीएनए को रिपेयर होने में सुधार होता है। योग की तकनीक मांसपेशियों और जॉइंट फ्लेक्सिबिलिटी को मज़बूत और ताकतवर बनाने में भी मदद करती है और पोस्टुरल मांसपेशियां भी मज़बूत होती हैं। इस वजह से चाल, पोश्चर (मुद्रा), बैलेंस (संतुलन) और कोऑर्डिनेशन (समन्वय), पीठ और जॉइंट (विकृति) को सही करने में भी मदद मिलती है।

पेन पैथवे मोडिफिकेशन

वृद्धावस्था सेंसरी इनपुट्स को सबसे ज़्यादा कम कर देती है। मसल्स, लिगामेंट और जॉइंट कैप्सूल कांट्रेकटेड (अनुबंधित) और बर्बाद हो जाते हैं, और इस सबसे दर्द के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है। मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम को मज़बूत करके योग कनेक्टिव टिश्यू को बेहतर बनाने में मदद करता है। यह सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम की प्लास्टिसिटी को भी बढ़ाता है और एपिनेफ्रीन को कम करता है जो सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम दर्द में न्यूरो-केमिकल ट्रांसमीटर होता है। योग जॉइंट के ऑस्टियोआर्थराइटिस (जॉइंट का सबसे कॉमन ऑस्टियोआर्थराइटिस) से जुड़े दर्द को भी प्रभावी रूप से कम करता है।  

साइकोलोजिकल स्ट्रेस 

योग दोनों सिम्पेथेटिक और पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम को बैलेंस करता है और स्ट्रेस-रिलेटेड हार्मोन के लेवल को रेगुलेट करने में मदद करता है। कई साइकॉलोजिकल वैरियेबल क्रोनिक दर्द और विकलांगता को अर्थराइटिस और निचले पीठ के दर्द को प्रभावित करते हैं। साइकॉलोजिकल इंटरवेंशन दर्द और विकलांगता की गंभीरता को कम कर सकता है। अर्थराइटिस के कारण क्रोनिक दर्द से पीड़ित मरीज ज्यादा डिप्रेस्ड होते हैं, इससे दर्द और बढ़ जाता है। कई स्टडी से पता चला है कि साइकॉलोजिकल इंटरवेंशन अर्थराइटिस से जुड़े दर्द और विकलांगता को कम किया जा सकता है, विशेष रूप से क्रोनिक ऑस्टियोआर्थराइटिस को। क्रोनिक ऑस्टियोआर्थराइटिस घुटने के दर्द से स्ट्रेस और एंग्जाइटी हो सकती है और फिजकल एक्टिविटी कम हो सकती है। इस वजह से आगे घुटने के जोड़ के आसपास की मांसपेशियां कमजोर हो सकती है जिसकी वजह से इम्प्रोपर लोड बियरिंग (अनुचित भार वहन), जॉइंट डिसफंक्शन और डीफोर्मीटीज (विकृति) हो सकती है। 

कोमोर्बिडिटी 

ज्यादातर क्रोनिक आर्थोपेडिक बीमारी जैसे ऑस्टियोआर्थराइटिस कॉमोरबिड कंडीशन (डायबिटीज, हायपरटेंशन, एंग्जाइटी, आस्टियोपोरोसिस और मोटापा) के साथ बहुत ही कॉमन होती है। इन कॉमोरबिड कंडीशन में स्ट्रेस का रोल बहुत ज्यादा होता है और योग से स्ट्रेस को कम किया जा सकता है। योग कॉमोरबिड कंडीशन की गंभीरता और ऑस्टियोआर्थराइटिस को कम करता है। 

 

एडवांस योग थेरेपी 

एडवांस योग थेरेपी से फ्रैक्चर के घावों को तेजी से भरने में मदद मिलती है और इससे रिहैबिलिटेशन का समय भी कम हो जाता है। यह स्थिति ज्यादातर उन लोगों में होती है जिनका एक्सीडेंट हुआ होता है। फिजकल ट्रॉमा से अक्सर साइकोलोजिकल ट्रॉमा भी हो जाता है और इसका प्रभाव अक्सर लम्बे समय तक रहता है। बहुत सारे लोग अपनी ज़िन्दगी में बहुत से ट्रॉमेटिक घटनाओं से लड़ रहे होते हैं। इनमे से बहुत से कम लोगों में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) का लक्षण देखने को मिलता है। पीटीएसडी हायपरएक्टिव एड्रेनैलिन रिस्पोंस, पेशाब में हाई काटेचोलमीन सेक्रेशन और लो कोर्टिसोल सेक्रेशन और हायपोथेलेमिक-पिचुईटरी एडेर्नल एक्सिस में एबनॉरमालिटीज़ के कारण होता है। कोगनिटिव और बिहैविरियल थेरेपी के साथ-साथ मेडिकेशन और योग इस समस्या के लिए बहतु ही बेहतर इलाज होता है। आर्थोपेडिक फिजिशियन और सर्जन अपने ट्रीटमेंट में योग को शामिल कर सकते हैं और यह अल्टरनेटिव मेडिसिन और कन्वेंशनल हेल्थकेयर के बीच मज़बूती प्रदान कर सकता है।

जिंदल नेचरक्योर इंस्टीट्यूट की चीफ मेडिकल ऑफिसर के डॉ. बबीना एनएम द्वारा इनपुट


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