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    मामूली समझकर अनदेखा न करें फाइब्राइड की समस्या से, जानिए इसके लक्षण और उपचार

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Tue, 13 Sep 2022 01:20 PM (IST)

    Fibroid Uterus कानपुर के गहलोत हेल्थ केयर की गायनकोलाजिस्ट एवं लैप्रोस्कोपिक सर्जन की निदेशक डा. रेणु सिंह गहलोत ने बताया कि गर्भाशय से जुडी हर परेशानी का कारण नहीं होते हैं फाइब्राइड। दवाओं व सर्जरी में है इनका निदान...

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    Fibroid Uterus: शारीरिक संबंध बनाने में परेशानी होना

    कानपुर, लालजी बाजपेयी। महिलाओं में गर्भाशय फाइब्राइड होना बहुत सामान्य समस्या है। इसलिए इससे ग्रसित होने पर घबराने की जरूरत नहीं है। एक अनुमान के अनुसार, केवल तीन फीसद मामलों में ही यह निसंतानता का कारण बनते हैं। जो महिलाएं इसके कारण निसंतानता से जूझ रही होती हैं, वे भी इसके ठीक होने के बाद सफलतापूर्वक गर्भधारण कर सकती हैं। इसके बहुत ही कम मामलों में स्थिति इतनी गंभीर होती है कि गर्भाशय निकालने की आवश्यकता पडे। हालांकि जिन महिलाओं को निसंतानता की समस्या होती है, उनमें फाइब्राइड अधिक बनते हैं। यह समस्या महिलाओं में रिप्रोडक्टिव पीरियड्स के दौरान अधिक होती है, क्योंकि इस दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रान हार्मोन का अधिक मात्रा में स्रावण होता है।

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    यूटेराइन फाइब्राइड:

    ये फाइब्राइड एक कैंसर-रहित ट्यूमर होता है, जो गर्भाशय की मांसपेशीय पर्त में विकसित होता है। इसे यूटेराइन फाइब्राइड्स, मायोमास या फाइब्रोमायोमास भी कहते हैं। जब गर्भाशय में केवल एक ही फाइब्राइड हो तो उसे यूटेराइन फाइब्रोमा कहते हैं। फाइब्राइड का आकार मटर के दाने से लेकर क्रिकेट की बाल के बराबर हो सकता है। कुछ मामलों में इनमें कैंसरग्रस्त कोशिकाएं विकसित हो जाती हैं, जिसे लियोमायोसारकोमा कहते हैं। हालांकि, इस तरह के मामले काफी कम देखे जाते हैं। फाइब्राइड्स चार प्रकार के होते हैं:

    इंटराम्युराल:

    ये गर्भाशय की दीवार में स्थित होते हैं। ये फाइब्राइड का सबसे सामान्य प्रकार है।

    सबसेरोसल फाइब्राइड:

    ये गर्भाशय की दीवार के बाहर स्थित होते हैं। इनका आकार बहुत बड़ा हो सकता है।

    सबम्युकोसल फाइब्राइड:

    यह गर्भाशय की दीवार की भीतरी परत के नीचे स्थित होते हैं।

    सरवाइकल फाइब्राइड:

    ये गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) में स्थित होते हैं

    सामान्य लक्षण:

    -एनीमिया (पीरियड्स में अत्यधिक रक्तस्राव के कारण)

    -कमर और पैरों में दर्द।

    -कब्ज और पेट के निचले हिस्से में दर्द (विशेषकर जब फाइब्राइड का आकार बड़ा हो)

    -बार-बार यूरिन होना

    -शारीरिक संबंध बनाने में परेशानी होना

    गंभीर लक्षण:

    -प्रसव के समय अत्यधिक दर्द होना

    -गर्भधारण करने में समस्या होना

    -निसंतानता का कारण बनना

    -बार-बार गर्भपात होना

    हालांकि अधिसंख्य महिलाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इसलिए पता ही नहीं चलता कि वे फाइब्राइड से ग्रसित हैं।

    उपचार के विकल्प:

    अगर कोई लक्षण नजर न आए और फाइब्राइड के कारण जीवन प्रभावित न हो तो किसी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। यहां तक कि यदि किसी महिला को पीरियड्स के दौरान अत्यधिक रक्त स्राव होता है, लेकिन जीवनशैली प्रभावित नहीं होती है, तब भी इसके उपचार की आवश्यकता नहीं है। आवश्यक होने पर इसका उपचार दवाओं व सर्जरी द्वारा किया जाता है। सर्जरी का विकल्प भी तब अपनाया जाता है, जब दवाएं कारगर नहीं होती हैं। जब गर्भाशय को निकालने की आवश्यकता होती है तो चिकित्सक हिस्टेरेक्टामी और जब फाइब्राइड गर्भाशय की दीवार में होता है तो मायोमेक्टामी विधि का प्रयोग करते हैं। कुछ मामलों में फाइब्राइड गर्भाशय की अंदरूनी परत में होता है, तब गर्भाशय को सुरक्षित रखकर एंडोमेट्रियल एब्लैशन विधि अपनाई जाती है। लैप्रोस्कोपी तकनीक ने फाइब्राइड के निदान को काफी आसान बना दिया है और यह कम समय में की जाने वाली दर्दरहित सर्जरी है।

    फाइब्राइड और निसंतानता:

    फाइब्राइड का आकार और स्थिति निर्धारित करती है कि वह निसंतानता का कारण है या नहीं। इसके आधार पर ही फाइब्राइड गर्भधारण और प्रसव में बाधा बनते हैं, जैसे:

    -गर्भधारण करने में परेशानी होना

    -गर्भाशय की एनाटामी बदल जाना

    -निषेचन न हो पाना।

    -शारीरिक संबंध बनाने में परेशानी होना।

    -फाइब्राइड के कारण भ्रूण का गर्भ गुहा से न जुड़ पाना

    -फाइब्राइड के कारण संक्रमण होने से निषेचन और गर्भधारण करने में परेशानी आना

    -भ्रूण का अविकसित होना

    बचाव:

    फाइब्राइड क्यों बनते हैं, इसका कारण स्पष्ट नहीं है। हालांकि कुछ दवाएं और हार्मोनल परिवर्तन इसे अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य प्रभावित करते हैं, लेकिन खानपान या व्यायाम से इसे रोका नहीं जा सकता है। अधिक उम्र में गर्भधारण, मोटापा और लाल मांस का अधिक मात्रा में सेवन इसकी आशंका को बढ़ा देता है। शाकाहारियों की तुलना में लाल मांस का सेवन करने वाली महिलाओं में इसकी आशंका तीन फीसद अधिक होती है।

    डा. रेणु सिंह गहलोत