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Plasma Therapy Risks & Benefits: आखिर क्या है प्लाज़्मा थेरेपी? जानें इसके फायदे और नुकसान...

Risk Benefits Of Plasma Therapy प्लाज़्मा थेरेपी गंभीर और ख़तनाक स्थिति में पहुंच चुके मामलों में काम करती है। इसमें कोरोना वायरस से उबर चुके मरीज़ से एंटीबॉडीज़ ली जाती हैं।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Fri, 01 May 2020 05:30 PM (IST)Updated: Fri, 01 May 2020 07:22 PM (IST)
Plasma Therapy Risks & Benefits: आखिर क्या है प्लाज़्मा थेरेपी? जानें इसके फायदे और नुकसान...
Plasma Therapy Risks & Benefits: आखिर क्या है प्लाज़्मा थेरेपी? जानें इसके फायदे और नुकसान...

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Risk & Benefits Of Plasma Therapy: कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच दुनिया के सभी वैज्ञानिक इसका इलाज ढूंढ़ने में लगे हैं। इसी बीच जो मरीज़ अब बिल्कुल स्वस्थ हो चुके हैं, वो प्लाज़्मा थेरेपी के लिए दान करने को तैयार हैं। बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर से लेकर हॉलीवुड एक्टर टॉम हैंक्स और उनक पत्नी ने भी मरीज़ों के इलाज के लिए प्लाज़्मा डोनेट किया है।

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सिर्फ सिलेब्रिटीज़ ही नहीं बल्कि कोविड-19 के कई मरीज़ जो अब ठीक हो चुके हैं, अपनी एंटीबॉडीज़ डोनेट करने के लिए आगे आए हैं। दुनियाभर में प्लाज़्मा थेरेपी को कोरोना वायरस के नए इलाज की तरह देखा जा रहा है। दिल्ली, लखनऊ और केरल के कई मरीज़ों को प्लाज़्मा थेरेपी के ज़रिए ठीक किया गया है।

कैसे काम करती है प्लाज़्मा थेरेपी?

ये थेरेपी गंभीर और ख़तनाक स्थिति में पहुंच चुके मामलों में काम करती है। इसमें कोरोना वायरस से उबर चुके मरीज़ से एंटीबॉडीज़ ली जाती हैं और उन्हें बीमारी व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है। जिससे शरीर की इम्यूनिटी को नई ताक़त मिलती है और वह इस बीमारी से लड़ पाती है। 

प्लाज़्मा थेरेपी के साकारात्मक नतीजों को दिखते हुए इंग्लैंड और अमेरिका (जहां कोरोना वायरस मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं), जैसे देशों ने भी इस उपचार को इस्तेमाल करने में दिलचस्पी दिखाई है।

क्या हैं फायदें?

एक दिलचस्प बात ये है कि एक स्वस्थ व्यक्ति के दान किए गए प्लाज़्मा सेल्स से दो मरीज़ों का इलाज किया जा सकता है। हमारे शरीर में बह रहे खून का 50 प्रतिशत प्लाज़्मा होता है और इसे कई बार दान भी किया जा सकता है। साल 1918-1920 में स्पैनिश फ्लू महामारी के दौरान भी मरीज़ों के इलाज में प्लाज़्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया था। यहां तक कि, इबोला और एच1एन1 यानी स्वाइन फ्लू के प्रकोप के समय भी WHO ने इसी थेरेपी को अपनाने की सलाह दी थी।  

हालांकि, इस थेरेपी को लेकर काफी रिसर्च की जानी है, लेकिन अपनी तक के नतीजे साकारात्मक देखे गए हैं। शोध में पाया गया कि कॉनवेलेसेन्ट प्लाज़्मा थेरेपी कुछ समय के लिए नए कोरोना वायरस से लड़ने के लिए इम्यूनिटी पैदा करती है।  

क्या हैं इससे जुड़े जोखिम?

प्लाज़्मा थेरेपी हर मरीज़ के लिए उपयोग में नहीं लाई जा सकती, ये मामले और बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करता है। हालांकि, कई देशों में इसे सुरक्षित इलाज की तरह देखा जा रहा है, लेकिन एक अन्य रोगज़नक़ या प्रतिरक्षा ऊतक क्षति के साथ रक्त संक्रमण का ख़तरा हो सकता है।

डॉक्टर्स का मानना है कि प्साज़मा थेरेपी को लेकर ट्रायल ज़रूरी है, लेकिन इसके लिए डोनर्स की भारी कमी है। कोविड-19 के लिए प्लाज़्मा वही डोनेट कर सकता है, जो खुद कोरोना वायरस का मरीज़ रह चुका हो और अब सभी तरह के लक्षणों से मुक्त है। कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक होने के 14 दिनों बाद ही एक व्यक्ति डोनेट करने के लिए फिट माना जाता है। साथ ही जो डोनेट कर रहा है उसकी अच्छी तरह जांच होनी ज़रूरी है, ताकि ये साबित हो सके कि उसका प्लाज़मा एक मरीज़ को स्वस्थ करने के लिए फिट है। 


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