Bacterial Fungus: कोरोना के उपचार के बाद बैक्टीरियल फंगस से मौत का खतरा अधिक, ICMR रिसर्च
Bacterial Fungus भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक रिसर्च के मुताबिक कोरोना के दौरान या इलाज के बाद जिन मरीज़ों में बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन हुआ उनमें से आधे व्यक्तियों की इलाज के दौरान मौत हो गई।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। कोरोनावायरस लोगों के लिए सबसे बड़ी परेशानी है। इस संक्रमण का उपचार करना मरीज़ों पर भारी पड़ रहा है। कोरोना के उपचार में मरीज़ों को दी जाने वाली दवाईयों में स्ट्राइड का अत्याधिक सेवन मरीज़ों को कई और बैक्टीरियल संक्रमण का शिकार बना रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक रिसर्च के मुताबिक कोरोना के दौरान या इलाज के बाद जिन मरीज़ों में बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन हुआ उनमें से आधे व्यक्तियों की इलाज के दौरान मौत हो गई।
बैक्टीरिया क्या है?
बैक्टीरिया, वायरस, फंगस, पारासाइट इत्यादि सूक्ष्म जीवों को कहते हैं जिनसे न्यूमोनिया, यूटीआई, स्किन डिजीज आदि बीमारी होती हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की रिसर्च में 10 अस्पतालों में कोरोना से मरने वाले रोगियों पर परीक्षण किया गया जिसमें मुंबई के सायन और हिंदुजा अस्पताल भी शामिल हैं। अध्ययन बेहद चौंकाने वाला था। अध्ययन के मुताबिक कोरोना से संक्रमित वह व्यक्ति जो सेकेंडरी बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन से पीड़ित थे, उनमें से आधे व्यक्तियों की मौत हो गई। सेकेंडरी बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन का मतलब कोरोना के दौरान या इलाज के बाद व्यक्ति में बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन होना।
अन्य इंफेक्शन के कारण 56 फीसदी मरीजों की मौत:
रिसर्च में 10 अस्पतालों पर अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि कोरोना रोगी जिन्हें अन्य संक्रमण हो गया, उनमें से 56.7 प्रतिशत की मौत हो गई। हालांकि किसी ठोस नतीजे तक पहुंचने के लिए यह अध्ययन पर्याप्त नहीं हैं। अध्ययन में 10 अस्पतालों में 17,536 कोरोना रोगियों को शामिल किया गया, जिसमें 3.6 प्रतिशत यानी 631 मरीज सेकेंडरी बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन के शिकार हुए। इन 631 मरीजों में से 56.7 प्रतिशत मरीजों की मौत हो गई। दूसरी ओर अगर कोरोना से कुल मौत की दर को देखें तो यह सिर्फ 10.6 प्रतिशत है।
कोरोना के मरीज़ों का इलाज एंटीबायोटिक्स से करना मजबूरी:
आईसीएमआर की सीनियर साइंसटिस्ट कामिनी वालिया के मुताबिक मरीज़ों के लंबे समय तक अस्पताल में रहने के कारण मरीजों को एंटीबायोटिक्स की उच्च खुराक दी जाती है ताकि 10 दिनों बाद जो इंफेक्शन होने वाला होगा, उसपर काबू पाया जा सकेगा। इस लिहाज से अस्पताल में ज्यादा समय रहने वाले मरीजों के लिए यह अध्ययन चेतावनी भरा है। उन्होंने बताया कि सुपरबग के हमले के बाद मरीज को एंटीबायोटिक्स की हैवी डोज देना जरूरी हो जाता है, इस कारण कोरोना के बाद दूसरे इंफेक्शन से जूझ रहे 52.36 प्रतिशत मरीजों को एंटीबायोटिक्स की हैवी डोज दी गई गई है।
बिना जरूरत एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल न करें:
ज्यादातर विशेषज्ञ एंटी फंगल और एंटीबायोटिक्स दवाइयों के ओवरयूज को ब्लैक फंगस का कारण मानते हैं, कोविड -19 पर बने टास्क फोर्स के डॉ राहुल पंडित के मुताबिक शरीर के अंदर असंख्य वनस्पति होते हैं। इनमें असंख्य गुड बैक्टीरिया भी होते हैं जो शरीर की रक्षा करते हैं। लेकिन जब बिना कारण शरीर में एंटीबायोटिक जाता है तो इन गुड बैक्टीरिया का सफाया होने लगता है और बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन का आक्रमण बढ़ने लगता है। इसलिए बिना जरूरत एंटीबायोटिक का इस्तेमाल न करना बुद्धिमानी है।
Written By: Shahina Noor