लॉकडाउन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य के मरीजों की संख्या में 80% की बढ़ोत्तरी
ज्यादातर मरीजों की उम्र 19 से 40 साल के बीच की है और इनमें आधे लोगों को पहले कोई भी मेन्टल समस्या नहीं थी। सबसे ज्यादा चिंता नौकरी छूटने पास में कोविड केस मिलने और लॉकडाउन के कारण दोस्तों और परिवार से न मिल पाने के कारण हुई है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को मानसिक सेहत के प्रति जागरूक करना है। खासकर कोरोना काल में लॉकडाउन के दिनों में इसका महत्व अधिक बढ़ गया है। इस महामारी से लोगों के मानसिक सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ा है। विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना काल में मानसिक पीड़ा सबसे अधिक युवाओं को हुई है। मेन्टल हेल्थ की समस्या बुजुर्ग लोगों से युवा लोगों में शिफ्ट हुई है।
ज्यादातर मरीजों की उम्र 19 से 40 साल के बीच की है और इनमे से लगभग आधे लोगों को पहले कोई भी मेन्टल समस्या नहीं थी। सबसे ज्यादा चिंता नौकरी छूटने, पास में कोविड केस मिलने और लॉकडाउन के कारण दोस्तों और परिवार से न मिल पाने के कारण हुई है। पहले बुजुर्ग लोग मुख्य रूप से अकेलेपन से प्रभावित थे, क्योंकि उनके बच्चे विदेश में रहते थे। आइए जानते हैं कि इस बारे में कंसल्टेंट-क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ श्वेता शर्मा का क्या कहना है-
डॉ श्वेता शर्मा, कंसल्टेंट- क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, पालम विहार, गुरुग्राम, पालम विहार का कहना है कि " हमने मेन्टल हेल्थ के केसेस में भारी वृद्धि देखी है। लॉकडाउन के शुरुआत से अब तक लॉकडाउन मेंटल हेल्थ के केसेस में 80% की वृद्धि हुई है। ज्यादातर मरीज 19 से 40 साल की उम्र के हैं, और उनमे यह समस्या नौकरी जाने, पास में कोविड केस मिलने, और लॉकडाउन के कारण दोस्तों तथा परिवार वालों से न मिल पाने से हुई है।
कई लोगों को डर हैं कि कोविड-19 से लड़ने के लिए बनाये गए हाइजीन प्रोटोकॉल से ऑब्सेसिव-कम्पलसिव डिसऑर्डर (OCD) हो सकता है। रिसीव हुए केसेस में ज्यादातर मरीजों को पहले कोई भी मेन्टल हेल्थ समस्या नहीं थी। अनलॉक के बावजूद भी केसेस की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।" भारत में मेन्टल हेल्थ के मुद्दों का बोझ महामारी से पहले भी काफी अधिक था लेकिन डाक्टरों ने नोट किया है कि मेन्टल हेल्थ की समस्या बुजुर्ग लोगों से युवा लोगों में शिफ्ट हुई है।
डॉ स्वेता शर्मा ने आगे कहा, “पहले बुजुर्ग लोग इस समस्या से ज्यादा पीड़ित थे। मुख्य रूप से वे अकेलेपन से प्रभावित थे क्योंकि उनके बच्चे विदेश में रहते थे। महामारी के दौरान यह चीज बदल गयी। अकेले रहने वाले माता-पिता ने देखा कि उनके बच्चे उनके पास रहने के लिए वापस आये जिससे बुजुर्ग लोगों को ख़ुशी हुई। दूसरी ओर उनके बच्चों पर उल्टा प्रभाव पड़ा। लॉकडाउन के कारण वर्क फ्रॉम होम में अनियमित काम के घंटों से जूझना, नौकरी जाना, पर्सनल स्पेस की कमी के कारण तनाव बढ़ गया। जो लोग हेल्थ सेक्टर में काम कर रहे हैं वे घर पर अपने बच्चों और माता-पिता को वैक्सीन पहुंचाने के लिए उत्सुक है। यह भी उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।